गीता

सन्यासी और कर्मयोगी के पांच संयम : सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह

सन्यासी और कर्मयोगी के पांच संयम : सत्य, अहिंसा, अस्तेय, ब्रह्मचर्य और अपरिग्रह

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भगवत गीता – एक अमृत धारा….शरीर, वाणीऔर मन पर नियंत्रण करो ……

शरीर, वाणीऔर मन पर नियंत्रण करो …… भगवत  गीता, ज्ञान का एक समुद्र है जहां पर मनुष्य जीवन जीने के लिए और इसे सार्थक बनाने के लिए सभी प्रकार के उपाय मौजूद है I गृहस्थ जीवन जीना हो या सामाजिक जीवन, आध्यात्मिक वृद्धि चाहते हो या आर्थिक वृद्धि, मन की शांति चाहिए या शरीर की, खाने के तरीके चाहिए या ...

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अपनी इच्छाओं को नियंत्रण में रखो, उसके गुलाम मत बनो ….. !

अपनी इच्छाओं को नियंत्रण में रखो, उसके गुलाम मत बनो ..... !

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निष्काम कर्म करो और परिस्थिति के गुलाम मत बनो-

निष्काम कर्म करो और परिस्थिति के गुलाम मत बनो-.........................

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विकास की अंधी दौड़ में वासना और विकारों  से दूर रहिए…….

विकास की अंधी दौड़ में वासना और विकारों  से दूर रहिए.......

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स्वयं को पहचानो…………..

जीवन में सफल होने के लिए, सबसे जरूरी बात है स्वयं को पहचानना............................

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सकारात्मक सोच की ताकत………………….

व्यक्ति को अगर अपना जीवन सरल और सुगम तरीके से जीना है तो उसे सब से पहले अपने आप पर, फिर दूसरे व्यक्तियों पर और बाद में भगवान पर विश्वास होना चाहिए....श्री पांडुरंग शास्त्री आठवले जी....

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व्यक्तित्व विकास……………

  हर व्यक्ति का व्यक्तित्व अलग होता है और व्यक्तित्व के ऊपर से ही व्यक्ति की सही पहचान होती है। आज जमाना व्यक्तित्व का ही है। कोई भी व्यक्ति जब कोई साक्षात्कार (Interview) देने के लिए जाता है, तब उनके प्रवेश से लेकर बाहर जाने तक, उसके हर तरह के व्यक्तित्व को देखा जाता है, जैसे कि, उसकी अन्दर आने ...

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मनुष्य की बौद्धिक शक्ति……

जिसने अपने मन और बुद्धि पर काबू कर लिया वह दुनिया का श्रेष्ठ मनुष्य बन सकता है

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प्रामाणिकता एवं नैतिकता (ETHICS)

संस्कार, मनुष्य जीवन के लिए लाइफ टाइम सिक्योरिटी है और प्रामाणिकता, मनुष्य का गहना है।............

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