35. सी. सुब्रह्मण्यम -भारतरत्न 1998

35. सी. सुब्रह्मण्यम -भारतरत्न 1998

(30 जनवरी, 1910 को जन्म-)

“सी. सुब्रह्मण्यम की दूरदृष्टि और प्रभाव के कारण कृषि सम्बन्धी यह महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है। किसी भी कार्य के लिए जो राजनीतिक निर्णय लिये जाते हैं, उनको लागू करने में पूर्ण प्रयत्न किया जाना चाहिए। गेहूं के रिकॉर्ड उत्पादन के लिए जिस कार्य की आवश्यकता थी, वह 1964-67 के उस काल में हुआ, जब सी. सुब्रह्मण्यम राजनीतिक परिदृश्य को बदलने का प्रयत्न कर रहे थे।”

नोबेल पुरस्कार विजेता डॉ. नार्सन बोरलाग

1947 में देश आज़ाद तो हो गया था, लेकिन अपने पैरों पर खड़े होने के लिए देश को जिस आर्थिक निर्भरता की ज़रूरत थी, वह महान हरित क्रान्ति से बहुत हद तक पूरी हुई। हरित क्रान्ति का मुख्य श्रेय सी. सुब्रह्मण्यम को ही जाता है।

कोयम्बटूर जिले के पोलावी में 30 जनवरी, 1910 को जन्मे सी. सुब्रह्मण्यम बड़े होकर देश को अपने पैरों पर खड़ा होना सिखाएंगे, यह किसी को पता नहीं था। कोयम्बटूर तमिलनाडु का ही एक हिस्सा है। सी. सुब्रह्मण्यम की प्रारम्भिक शिक्षा पोलावी के एक स्कूल में हुई। उसके बाद उच्च शिक्षा मद्रास से पूरी की। 1932 में मद्रास विश्वविद्यालय से क़ानून की डिग्री प्राप्त की । देश इस समय स्वतन्त्रता आन्दोलनों में जुटा हुआ था। नौजवान जोश में आकर इन आन्दोलनों में कूद रहे थे। सुब्रह्मण्यम भी इनसे बड़े प्रभावित थे। उन्होंने 1936 में कोयम्बटूर में वकालत शुरू की। इस समय तक वह स्वतन्त्रता आन्दोलनों से पूरी तरह जुड़ चुके थे। उनकी सक्रियता के कारण उन्हें अंग्रेज़ सरकार ने गिरफ़्तार कर लिया। इसका असर यह हुआ कि वह पूरी तरह स्वतन्त्रता आन्दोलन की धधकती आग में कूद पड़े। 1941 में उन्हें फिर से गिरफ़्तार कर लिया गया।

उस समय देश में महात्मा गांधी के नेतृत्व में कई बड़े नेताओं ने ज़ोर-शोर से आज़ादी के लिए संघर्ष का बिगुल बजा रखा था । सी. सुब्रह्मण्यम भी इस संघर्ष में जूझ रहे थे। 1942 के ‘भारत छोड़ो’ आन्दोलन में कई बड़े नेता जेल चले गए। उनके साथ अनेक नवयुवकों ने भी जेल-यात्रा की। सी. सुब्रह्मण्यम भी भला इस गिरफ़्तारी से कैसे बच सकते थे। वह भी जेल चले गए। उनका प्रभाव कोयम्बटूर ज़िले में महत्त्वपूर्ण कांग्रेसी नेता के रूप में बढ़ने लगा। वह कोयम्बटूर की कांग्रेस समिति के अध्यक्ष चुने गए। इसके साथ ही तमिलनाडु कांग्रेस की कार्यसमिति में भी महत्त्वपूर्ण स्थान मिला। 1946 में सी. सुब्रह्मण्यम संविधान सभा के सदस्य बन गए। इस अन्तरिम संस्था के वह 1952 तक सदस्य रहे । उनका सामाजिक और राजनीतिक जीवन और अधिक फैल गया। 1952 में ही वे मद्रास (तमिलनाडु) विधानसभा के सदस्य चुने गए और उन्हें प्रदेश मन्त्रिमंडल में भी शामिल कर लिया गया।

आज़ादी के बाद दक्षिण की कांग्रेस पार्टी में सी. सुब्रह्मण्यम बहुत असरदार साबित हुए। इसलिए उन्हें 1952-62 तक राज्य सरकार के महत्त्वपूर्ण मन्त्रीपद दिए गए और राज्य के वित्तमन्त्री, शिक्षामन्त्री और विधिमन्त्री की ज़िम्मेदारियों का बड़ी ख़ूबी के साथ निर्वाह किया। अपने दस वर्ष के कार्यकाल में उन्होंने राज्य में शिक्षा के विस्तार और विकास के महत्त्वपूर्ण कार्य किए। उन्हीं के प्रयासों से तमिलनाडु उन गिनती के राज्यों में शामिल हो पाया, जिनमें बच्चों की प्राइमरी शिक्षा निःशुल्क आरम्भ कर दी थी । निःशुल्क शिक्षा पाने वाले निर्धन बच्चे ही थे, इसलिए सी. सुब्रह्मण्यम ने उन्हें दोपहर का खाना भी मुफ़्त देने की योजना शुरू की। इस योजना में उन्हें जनता का भरपूर सहयोग मिला।

1962 में सी. सुब्रह्मण्यम ने लोकसभा का चुनाव लड़ा। सफल होने के बाद उन्होंने 1962-65 तक कैबिनेट स्तर के मन्त्री के रूप में कार्य किया । इस्पात मन्त्रालय की ज़िम्मेदारी उन पर थी। 1963-64 तक इस्पात मन्त्रालय के साथ खाद्य और भारी इंजीनियरिंग मन्त्रालय की भी देखरेख की। 1964-65 में खाद्य और कृषि मन्त्रालय सौंपा गया। 1966-67 में सामुदायिक विकास और सहयोगिता विभाग का भी कार्यभार मिल गया। इस्पात मन्त्री के रूप में उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई ।

खाद्य और कृषि मन्त्रालय के समय बीज की विभिन्न किस्मों के प्रयोगों को अपनाने पर ज़ोर दिया, जिससे खाद्य उत्पादन बढ़ने लगा। उनके बताए रास्ते पर चलने से देश खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर हो गया। उनकी कृषि नीतियों के कारण 1972 में खाद्यान्न का रिकॉर्ड उत्पादन हुआ, इसे हरित क्रान्ति की संज्ञा दी गई और उन्हें हरित क्रान्ति का जन्मदाता माना जाने लगा।

उनकी कृषि नीतियों को दुनिया-भर में सराहा गया। नोबेल पुरस्कार विजेता और खाद्यान्न विशेषज्ञ डॉ. नार्थन बोटलाग का कहना है कि “सी. सुब्रह्मण्यम की दूरदृष्टि और प्रभाव के कारण कृषि सम्बन्धी यह महत्त्वपूर्ण परिवर्तन हुआ है।” 1964-67 में गेहूं का भी रिकॉर्ड उत्पादन हुआ। देश के अनाज भंडार खाद्यान्नों से भर गए। 1967-68 के मध्य सी. सुब्रह्मण्यम को भारत सरकार द्वारा स्थापित ऐरोनॉटिकल इंडस्ट्री का अध्यक्ष बनाया गया। 1979-80 में उन्होंने रक्षा मन्त्री का पद-भार भी संभाला।

इसके बाद 15 फ़रवरी, 1990 को महाराष्ट्र के राज्यपाल का पद-भार संभाल लिया और तीन वर्ष तक इस पद पर रहकर कार्य किया। केन्द्रीय मन्त्रिमंडल से अवकाश लेने के बाद भी सी. सुब्रह्मण्यम ने अनेक ऐसे कार्य किए, जिनके कारण उन्हें अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त हुई। उन्होंने अनेक संस्थाओं की स्थापना की, जैसे इंस्टिट्यूट ऑफ़ मैथेमैटिकल साइंस तथा मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवलपमेंट स्टडीज़। वह देश की संस्थाओं में सक्रिय भागीदारी तो करते ही रहे, साथ ही अंतर्राष्ट्रीय संस्थाओं के साथ भी उनका विशेष जुड़ाव रहा। संयुक्त राष्ट्र संघ के विश्व खाद्य संगठन और यूनेस्को में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सामाजिक संस्थाओं, जैसे भारतीय विद्या भवन से उनका अटूट रिश्ता बना । इसके वह अध्यक्ष रहे, तो अंतर्राष्ट्रीय विद्या भवन के सभापति के रूप में काम किया। जय तुलसी फ़ाउंडेशन से जो एक लाख रुपए की राशि सम्मान में प्राप्त हुई, उसे भारतीय विद्या भवन को सौंप दी, ताकि छात्रों को उनके आदर्श चरित्र के लिए पुरस्कार दिया जा सके। 1970 में वह राष्ट्रीय कृषि आयोग के अध्यक्ष भी बने। वह मनीला और मैक्सिको के अधिवेशनों में भी गए। ये अधिवेशन खाद्य अनुसंधान से संबंधित थे। राजनीति और समाज-सेवा के बाद उनकी रुचि खेलों में थी। ख़ासकर क्रिकेट और टेनिस में। अखिल भारतीय लॉन टेनिस एसोसिएशन के तो दो बार अध्यक्ष भी चुने गए। इस तरह खेलों को बढ़ावा देने का काम भी किया।

इस बीच उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण पुस्तकें भी लिखीं। उनकी पुस्तकों के नाम हैं: ‘वार एंड पावर्टी’, ‘द न्यू स्ट्रेटेजी इन इंडियन एग्रीकल्चर’, ‘सम कंट्रीज़ विच आई विज़िटेड राउंड द वर्ल्ड’ तथा ‘द इंडियन ऑफ़ ड्रीम्स’ । उन्होंने इनके अलावा अपने जीवन के विचारपूर्ण संस्मरण भी लिखे। वास्तव में वह अपने विषय के विद्वान थे और जिन कामों को करने का बीड़ा उठाते, उनके साथ गहरा भावनात्मक लगाव रहता ।

उन्हें जय तुलसी फ़ाउंडेशन द्वारा आदर्श चरित्र के लिए सम्मान और एक लाख रुपए पुरस्कार में दिए गए, जिसे उन्होंने भारतीय विद्या भवन को समर्पित कर दिया। उन्हें प्राप्त पुरस्कार और सम्मानों में शान्ति पुरस्कार, राष्ट्रीय एकता के लिए किए गए कार्यों का वाई.एस. चौहान पुरस्कार भी उल्लेखनीय है। 1998 में भारत के सर्वोच्च सम्मान भारतरत्न से भी उन्हें विभूषित किया गया।

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