सकारात्मक सोच की ताकत………………….

जीवन के सफर में चलते-चलते हम कई प्रकार के कार्य करते हैं और यह सभी कार्यों को करने में हमें कोई न कोई मुश्किल तो जरूर ही आती है। लेकिन सही अर्थों में मुश्किलों के बिना जीवन ही अधूरा है। हम सब ने एक गाना जरूर सुना है, फ्कुछ शिकवे भी हों, कुछ शिकायत भी हो, तो मजा जीने का और भी आता है।’’ यह गाना हमारे जीवन के लिए उत्तम है। जिंदगी सरलता से चलती जाए, तो उसमें मजा ही क्या?— हम लोग हृदय का ई-सी-जी- करवाते हैं। तब हमने देखा है कि हमारा ई-सी-जी- हमेशा ऊपर-नीचे ही होता है, सीधा ई-सी-जी- होने पर व्यक्ति को मृत घोषित किया जाता है। ऐसे ही जीवन में भी उतार-चढ़ाव ना हो तो जीवन अधूरा है। मुश्किल तो हर व्यक्ति के जीवन का अभिन्न हिस्सा है और वह व्यक्ति उस मुश्किल का सामना कैसे करता है यह देखना खास जरूरी है। जब व्यक्ति की सोच हमेशा के लिए सकारात्मक होती है तब वह जीवन में आई हर मुश्किल का सामना आसानी से कर सकता है। हम अगर गाड़ी लेकर कही जा रहे हैं और रास्ते में पंचर हो जाए तो, फ्अरे यार यह क्या हो गया, मुझे देर हो रही है— ऐसा सोचने के बजाय, शायद अभी आगे मेरे लिए कोई बड़ी मुश्किल होगी इसलिए भगवान ने मेरी गाड़ी का पंचर करके मुझे यहीं पर रोक लिया होगाय्— ऐसा सोचे तो हमें वह मुश्किल आसान लगने लगेगी। कुछ साल से हम सब कोरोना की महामारी से गुजर रहे हैं और इस दौरान हम सभी अपने-अपने घरो में रहें।

ज्यादातर लोग यह लॉकडाउन के दरमियान यही सोचते रहे कि हमारा काम बिगड़ रहा है, लेकिन इस बात में भी अगर सकारात्मक सोच रखते हैं तो, हम देख सकते हैं कि अनगिनत लोगों को अपने परिवार के साथ शांति से रहने का मौका मिला। अपने बच्चों के साथ खेलने-कूदने का मौका मिला। नई-नई किताबें पढ़ने का शौक पूरा हुआ। कितने परिवार ऐसे थे कि जहाँ पर पति-पत्नी को एक-दूसरे के साथ समय बिताने का मौका ही नहीं मिलता था, वो मौका सभी लोगों ने महीनो तक पाया। देखा जाए तो खोया कुछ नहीं है, लेकिन पाया बहुत कुछ है। हमने अगर यही सोच रखी तो, हम सुखी हो सकते हैं। वैसे देखा जाए तो 10 दुख ऐसे हैं, जिसमें से हम सब के जीवन में कोई न कोई दुख तो आता ही है। हर किसी के घर में कोई न कोई बीमार हो सकता है, आर्थिक मुश्किल भी कभी कभी आ जाती है, एक्सीडेंट भी हो सकता है, परीक्षा में फेल भी हो सकते हैं, नौकरी-धंधे में तकलीफ भी आ सकती है, कोई धोखा भी दे सकता है, और यह कोई नई बात नहीं है। लेकिन इन सब बातों के बीच में किसी भी मुश्किल आने पर हम उसके बारे में कैसा सोचते है, वह बात मुख्य है।

अगर हर किसी भी मुश्किल में सकारात्मक सोच रखें तो जीवन सरल तरीके से चल सकता है। वरना हम हमेशा ही दुखी रहेंगे। विश्व में ऐसा कोई व्यक्ति है ही नहीं जिसके जीवन में कोई मुश्किल न आई हो। विश्व के महान दार्शनिक और टेम्पलटन अवार्ड पाने वाले भारतीय संत, पांडुरंगशास्त्री आठवले जी हमेशा यह कहते थे कि, व्यक्ति को अगर अपना जीवन सरल और सुगम तरीके से जीना है तो उसे सब से पहले अपने आप पर, फिर दूसरे व्यक्तियों पर और बाद में भगवान पर विश्वास होना चाहिए। हम हमारी सोच को सकारात्मक तब ही रख सकते हैं, जब हम खुद पर भरोसा करें। मैं कर सकता हूँ, मैं बन सकता हूँ, यह हौंसला हमें जीवन भर रखना पड़ेगा। दुनिया में अशक्य नाम की कोई चीज है ही नहीं, मैं चाहूं तो हर काम अपने आप कर सकता हूँ, यह विश्वास ही हमें एक अलग और सकारात्मक सोच तक लेकर जा सकता है। सकारात्मक सोच के लिए दूसरी महत्त्व की बात है, हमारी आदतें और हमारे मन-बुद्धि का विकास। जीवन में हर व्यक्ति की बुरी या अच्छी आदतें होती है, लेकिन अपने खुद के जीवन से बुरी आदतों को ना बोलना (say no to bad habits) हमें सीखना पड़ेगा। उसके साथ-साथ ही हमें अपने मन और बुद्धि को स्वच्छ रखना पड़ेगा, क्योंकि उसका हमारे शरीर और स्वास्थ्य पर बहुत ही असर होता है।

स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि जैसे हमें अपने शरीर को पोषण देने के लिए अच्छा खाना पीना चाहिए, वैसे ही हमारे मन और बुद्धि का शुद्धिकरण करने के लिए, उसे भी अच्छे विचारों का, अच्छी संगत का और आध्यात्मिक ज्ञान की खुराक चाहिए। व्यक्ति कितना भी पढ़ा-लिखा हो, लेकिन अगर उसके भीतर यह सब बातें नहीं है, धर्म और अध्यात्म का संग नहीं है तो उसकी सोच कभी भी सकारात्मक नहीं बन सकती। स्वामीनारायण संप्रदाय के एक संत ने कहा था कि, हमें अपने आप से कुछ प्रश्न करने है। क्या हमारे पास अपना छोटा सा परिवार और हंसते-खेलते बच्चे हैं?— क्या हमारे पास एक अपना छोटा सा फ्रलैट-मकान है, जिसके भीतर हम आसानी से जिन्दगी गुजार सकते हैं?— क्या हमारे पास एक स्कूटर या गाड़ी, हमारे घूमने फिरने के लिए है?— क्या हम महीने में 25-50 हजार रुपये कमा लेते हैं, जिससे हमारे घर का गुजारा आसानी से हो सके?—- क्या हमारा और परिवार के अन्य सदस्यों का स्वास्थ्य अच्छा रहता है?—- क्या हमारे पास पहनने के लिए 15-20 अच्छे कपड़े हैं?— क्या हमारे पास आने-जाने के लिए और संबंध रखने के लिए 25 परिवार उपलब्ध है?— क्या हमें दिन में तीन टाइम अच्छा सात्विक भोजन खाने के लिए मिलता है?— क्या हम हमारे बच्चों को अच्छी पढ़ाई करा सकते हैं?— अगर इन सभी प्रश्नों का उत्तर फ्हाँय् है तो, हम दुनिया के सबसे अधिक भाग्यवान लोगों में से है, क्याेंकि विश्व में 97% लोगों के पास यह सब कुछ नहीं है। इसलिए हमारे पास यह नहीं है, हमारे पास वो नहीं है ऐसी बातें करने के बदले हमें भगवान का उपकार मानना चाहिए कि इतनी सारी चीजें हमारे पास है, जो दुनिया में अनगिनत लोगों के पास नहीं है, और यही तो है सकारात्मक सोच का पहला कदम! हमारी मुश्किल यह है कि हर व्यक्ति को अमेरिकन सैलरी, ब्रिटिश हाउस, जर्मन कार, चाइनीज फूड और इन्डियन वाइफ चाहिए।

लेकिन मिलती है इंडियन सैलरी, चाइनीज हॉउस, जर्मन फूड, अमेरिकन कार और ब्रिटिश वाइफ। जब यह सब चीजे मिलने के बावजूद भी हम सोच को सकारात्मक रखते हैं और सोचते हैं कि, मेरा जैसा कर्म होगा वैसा ही भगवान ने मुझे दिया होगा, तो हम जो भी जीवन है उसे सरलता से जी सकते हैं और हर मुश्किल का सामना कर सकते हैं। एक वैज्ञानिक सर्वे के अनुसार सकारात्मक सोच वाले लोगों की आयु ज्यादा होती है और उनके सफलता का ग्राफ भी उंचा होता है। ऐसे लोगों का अगर जीवन देखा जाए तो, वे लोग हमेशा कार्यरत (always working) रहते हैं। अपने निजी जीवन और व्यवसाय की हर चीजों में हमेशा बदलाव लाने का प्रामाणिक प्रयत्न करते हैं। वे लोग हमेशा हर बात को आसान और सही तरीके से समझने और करने का ख्याल रखते हैं। अपनी निजी जिन्दगी को खुशियों से भरा हुआ रखते हैं। ऐसे लोग रात को जल्दी सो जाते हैं और सुबह में जल्दी उठकर अपने शरीर और मन को स्वस्थ रखने की कवायद करते हैं और भय-निराशा-शंका से हमेशा कोसों दूर रहते हैं। ऐसे लोग स्वयं पर और भगवान पर पूर्ण विश्वास रखते हैं। ऐसे व्यक्तियों के भीतर एक बात दृढ़ होती है कि जो होने वाला है वो होकर ही रहेगा और जो नहीं होने वाला वो कभी नहीं होगा। इसलिए जो व्यक्ति अपनी सकारात्मक सोच के साथ अपने निश्चय को दृढ रखता है, उसके लिए सफलता खुद अपने पैरों पर चलकर आएगी। हमने देखा ही है कि जब हम काला चश्मा पहनते हैं तो हमें सब कुछ काला दिखाई देता है और जब हरा चश्मा पहनते है तो सब कुछ हरा ही दिखता है, वैसे ही अपने जीवन के हर पहलू को अपनी हर मुश्किल को हम कैसा चश्मा पहन कर देखते है यह हमारे ऊपर ही निर्भर है और यही हमारी सफलता का आधार होता है।

यह एक विचारणीय प्रश्न है कि हम अपनी सोच को सकारात्मक कैसे बनाएं? इसके लिए हमें हर घटना का जिम्मेदार खुद को ही मानना पड़ेगा और दूसरों की गलतियां ढूँढना एवं हर नाकामयाबी का श्रेय दूसरे व्यक्ति या दूसरी परिस्थिति को देना बंद करना पड़ेगा। भगवद गीता में भी लिखा है कि सकारात्मक सोच वाला व्यक्ति हमेशा दूसराें की गलतियों को माफ कर देता है और हर गलती से कुछ न कुछ नया सीखता रहता है। ऐसा व्यक्ति अपने जीवन में सुधार करने के लिए हमेशा तैयार होता है, उनको कोई एक जगह का मोह नहीं होता, कोई एक व्यक्ति का मोह नहीं होता, वो हमेशा नए नए रास्ते ढूंढता रहता है। ऐसे व्यक्ति किसी के प्रति इर्ष्या और दोष की भावना नहीं रखता, जिसका सीधा असर उसके मन और बुद्धि पर पड़ता है।

सकारात्मक सोच से हमारे भीतर एक सकारात्मक ऊर्जा उत्पन्न होती है, जो हमें सफलता की राह पर लेकर जाती है। श्रीला रूप गोस्वामी ने सकारात्मक ऊर्जा और सफलता की राह पर जाने के लिए एक श्लोक में कहा है कि-

‘उत्साह निश्चया धैर्यात तत तत कर्म प्रवर्तनात्।

संग त्यागत सतो वृत्ते सभिर भक्ति प्रसिध्यति।।

अर्थात- हमें हमेशा अपने जीवन में हर कार्य के प्रति उत्साह, धैर्य और दृढ़ निश्चय रखना चाहिए। उत्साह से व्यक्ति की कार्यक्षमता बढ़ती है और नई नई बातों को साकार करने का एक अवसर मिलता है। वैसे ही धैर्य से हमारी गलितयों को हम आसानी से सुधार सकते हैं एवं दूसरों के मन में हम अपने प्रति अपना मान बढ़ा सकते हैं, क्योंकि धैर्य से किया हुआ हर काम हमें यश दिलाता है। हमें सफलता की जो राह पर चलना है, उसके लिए एक दृढ़ निश्चय का होना जरूरी है। दृढ़ निश्चय से व्यक्ति का मनोबल बढ़ता है और कार्य के प्रति प्रेम उत्पन्न होता है और वो मनोबल और प्रेम ही हमें सफलता तक लेकर जा सकता है। क्योंकि जैसा हमारा कर्म होगा वैसा ही हमें फल भी मिलेगा और इसका वर्णन भगवद् गीता में भी है। अगर हमें अपने विचारों को सकारात्मक होने के रास्ते पर ले जाना है तो, हमें कुसंग का त्याग करना होगा और अच्छे संग का साथ लेना होगा। व्यक्ति के जीवन में संगत का महत्व भी बहुत है। एक कहावत है कि, जैसा संग वैसा रंग। बुरे लोगों की संगत में रहेंगे तो हमारी सोच कभी भी अच्छी और सकारात्मक नहीं बन सकती।

असफलता से निराश होकर कुसंग का साथ नहीं देना है, क्याेंकि दुनिया का ऐसा नियम है कि जो गिरता है वह फिर खड़ा हो सकता है, बस उसके लिए चाहिए सिर्फ दृढ निश्चय। इसका एक उदाहरण है अमेरिका के 16वें राष्ट्रपति अब्राहम लिंकन। विश्व के प्रसिद्ध व्यक्तियों में से एक अब्राहम लिंकन ने अपने जीवन में कई मुश्किलों का सामना किया। अमेरिका का राष्ट्रपति बनने ओर यहां तक पहुँचने के लिए उन्हें लगातार 16 बार असफलता का स्वाद चखना पड़ा। लेकिन कहते हैं असफलता ही सफलता की कुंजी होती है। अब्राहम लिंकन ने लाख मुश्किलों के बावजूद कभी भी कभी हार नहीं मानी और दृढ़ निश्चय से अपने लक्ष्य की ओर अग्रसर होते रहें। उनके जीवन से यह प्रेरणा मिलती है कि सोच अगर सकारात्मक है और निश्चय दृढ़ है तो हम किसी भी हार का सामना कर सकते हैं और उसे जीत में प्रवर्तित कर सकते हैं।

सकारात्मक सोच का विषय इतना गहन है कि हम इसके बारे में जितना चाहे उतनी बातें कर सकते हैं लेकिन हमारी एक मर्यादा है, इसलिए हम अंत में इस बात को सुनिश्चित करते हैं कि हमें अपनी सोच सदा के लिए सकारात्मक ही रखनी है। इसके लिए हमें अपने जीवन और कार्य प्रणाली में सुधार करना है, उत्साह और धैर्य से कार्य करना है, अपने आप पर विश्वास करना है। अपने मन और बुद्धि को हमेशा सही खुराक देना है। हर घटना की जिम्मेदार खुद को मानकर भगवान के दिए हुए हर दुःख को स्वीकार करना है और इससे बाहर निकलने का सही रास्ता ढूँढना है।

 

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