31, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम- भारतरत्न 1997

31, ए.पी.जे. अब्दुल कलाम- भारतरत्न 1997

(जन्म-15 अक्टूबर 1931 को धनुषकोडी गाँव (रामेश्वरम, तमिलनाडु) .मृत्यु-27 जुलाई 2015 (उम्र 83) शिलोंगमेघालयभारत

“मैं नहीं चाहता कि दूसरों के लिए कोई उदाहरण बनूं, लेकिन मुझे विश्वास है कि कुछ लोग मेरी इस कहानी से प्रेरणा ज़रूर ले सकते हैं और जीवन में सन्तुलन लाकर वह सन्तोष प्राप्त कर सकते हैं, जो सिर्फ आत्मा के जीवन में ही पाया जा सकता है ।”

– ए.पी.जे. अब्दुल कलाम

अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर, 1931 में तमिलनाडु के रामेश्वर के निकट धनुषकोडि नामक गांव में हुआ था। ‘मिसाइल मैन’ के ख़िताब से देश के ‘राष्ट्रपति’ बनने की यात्रा करने वाले इस महान व्यक्तित्व का पूरा नाम अब्दुल पाकिर ज़ैनुल आबदीन अब्दुल कलाम है।

कलाम के पिता का नाम ज़ैनुल आबदीन, दादा का नाम पाकिर तथा परदादा का नाम अब्दुल था। इनकी माता का नाम आशियम्मा था। माता- पिता दोनों ही धार्मिक विचारों के थे। कलाम का परिवार रामेश्वरम का आदर्श परिवार माना जाता था। घर में दादा, दादी, माता, पिता और बच्चे थे। बच्चों में चार लड़के और एक लड़की के नाम जुड़े थे। बचपन से ही उनके व्यक्तित्व में ऐसी सरलता और मिलनसारिता थी कि कोई भी बच्चा उनकी ओर आकर्षित हो जाता था और उनसे दोस्ती करना पसन्द करता था। उनके पक्के दोस्त केवल तीन थे रामनाथ शास्त्री, अरविन्दन और शिवप्रकाशन। ये तीनों ब्राह्मण परिवारों के थे।

वह बचपन से ही प्रकृति को बहुत प्यार करते थे। प्राकृतिक दृश्यों को देखकर उनका दिल आनन्द से भर जाया करता था । उनका जन्म ही ऐसे स्थान हुआ, जो प्राकृतिक सौन्दर्य, आध्यात्मिक रुचियों और सद्विचारों का केन्द्र था। अब्दुल कलाम के परिवार ने अपने परिवेश से वह सब-कुछ ग्रहण किया था, जो आदर्श था। वैसे ही गुण अब्दुल कलाम में भी विकसित हुए। अच्छे विचारों के प्रति उनकी भूख बचपन में ही जाग गई थी। उनके पिता इतने बुद्धिमान और अनुभवी थे कि मिलने-जुलने वालों को कुछ-न-कुछ समझाते ही रहते थे । अब्दुल कलाम को बचपन में पिता का पूरा साथ मिला। वह जहां भी जाते, उन्हें अक्सर अपने साथ ले जाते । भारतीय संस्कृति के महान मूल्यों अहिंसा, दया, ममता और आत्मीयता की भावनाएं कलाम के भीतर गहरे तक रच-बस गई थीं

रामेश्वरम के समुद्र तट पर स्थित होने से वहां रहने वालों को समुद्र से जुड़े व्यवसायों से आजीविका चलानी पड़ती थी। कलाम के पिता बहुत परिश्रमी और जीवट वाले व्यक्ति थे। उनके लिए काम ही पूजा थी। खाली रहना उन्हें ज़रा भी पसन्द नहीं था। किसी-न-किसी काम में हर वक़्त जुटे रहना उन्हें बहुत अच्छा लगता था ।

एक दिन समुद्र में भीषण तूफ़ान आया। सौ मील प्रति घंटे से भी ज़्यादा रफ़्तार वाला तूफ़ान था। उस समय कुछ नावें किनारे पर थीं और कुछ तीर्थयात्रियों को ले जा रही थीं। सारी नावों को समुद्र ने अपनी ऊंची-ऊंची लहरों में समेट लिया और उन्हें निगल गईं । समुद्र का यह विनाशकारी रूप अब्दुल कलाम के सामने पहली बार आया था। वह दुखी हो उठे। उन्हें तो समुद्र जीवन और सौन्दर्य का भंडार लगता था । तूफ़ान गुज़र जाने के बाद समुद्र पहले की तरह शान्त हो गया, परन्तु बालक अब्दुल कलाम के मन में अनेक दिल दहला देने वाले प्रश्न छोड़ गया। इसी के साथ उन्हें परिवार की ग़रीबी और उससे निरन्तर लड़ते रहने की स्थिति का अहसास भी हुआ।

इनके पिता ने बहुत कम पढ़ाई की थी और आर्थिक रूप से भी बेहतर नहीं थे, हालांकि माता आशियम्मा ने औपचारिक रूप से विद्या ग्रहण की थी।

पिता शहर के दक्षिणी छोर पर मछुआरों को कश्तियां दिया करते थे । यही रोज़ी-रोटी का साधन था ।

अब्दुल कलाम को परिवार में बड़ा प्यार मिला। उनके पड़ोसी कहते हैं कि बचपन से ही वह अपने में डूबे रहने वाले अन्तर्मुखी स्वभाव के थे। पढ़ने में उन्हें बहुत ज़्यादा रुचि थी, लेकिन जिस माहौल में उनका लालन-पालन हुआ, वहां किताबें कम ही थीं। उनके पड़ोसी एस.टी. आर. मानिक्कम ने उनकी पढ़ने की रुचि को काफ़ी बढ़ावा दिया। वह कहते हैं, “मेरी निजी लाइब्रेरी में अब्दुल घंटों बैठा रहता । वह हर तरह की किताबें पढ़ता था।” एक और व्यक्ति ने उन्हें खूब प्रभावित किया। वह था रामेश्वर समाचार-पत्रों का विक्रेता । उससे उन्हें ढेरों तरह की जानकारियां मिला करती थीं। आज़ादी की लड़ाई के बारे में भी उसी ने बताया था ।

वह हमेशा खाना अपनी मां के साथ ज़मीन पर बैठकर ही खाते थे। शुरू में उन्होंने शाकाहारी रहने का फ़ैसला किया, जो कि आर्थिक तंगी की वजह से था, लेकिन बाद में उन्होंने इसे अपनी आदत बना लिया। कलाम का कहना है कि ईमानदारी तथा स्वानुशासन का सबक़ उन्हें अपने पिता से मिला, जब कि अच्छाई में विश्वास और दयालुता जैसे गुण मां से सीखने को मिले

डॉ. अब्दुल कलाम ने अपनी स्कूली पढ़ाई स्मियार में शुरू की और रामनाथपुरम के श्वार्ट्ज हाईस्कूल में विज्ञान की पढ़ाई जारी रखी, फिर तिरुचिरापल्ली के सेंट जोज़फ कॉलेज में विज्ञान-स्नातक की पढ़ाई पूरी कर ली। उसके बाद मद्रास इंस्टिट्यूट ऑफ़ टेकनोलॉजी में एयरोनोटिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा कोर्स किया। 1958 में डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट ऑर्गनाइज़ेशन (डी.आर.डी.ओ.) में चले गए। इनका पहला प्रोजेक्ट एक होवरक्राफ्ट था । इस होवरक्राफ्ट का नाम नन्दी रखा गया। 1962 में डी.आर.डी.ओ. संस्थान छोड़ दिया और इंडियन स्पेस रिसर्च संस्थान (आई.एस.आर.ओ.) में शामिल हो गए।

तिरुअनन्तपुरम में जुलाई, 1980 में भारतीय उपग्रह रोहिणी अन्तरिक्ष में छोड़ा गया। उस समय अब्दुल कलाम एस.एल.बी.-3 प्रोजेक्ट के संचालक थे। तब विक्रम साराभाई जैसे मुख्य अधिकारी ने इन्हें काफ़ी प्रोत्साहन दिया था ।

अब्दुल कलाम आगे हैदराबाद के डिफेंस रिसर्च डेवलपमेंट प्रोग्राम में शामिल हो गए तथा देश की सम्पूर्ण मिसाइल विकास परियोजना का बीड़ा उठा लिया। वह भारत के इतिहास में सबसे बड़ा और पूरी तरह सफल डिफेंस सम्बन्धी रिसर्च प्रोग्राम था। इसकी रिपोर्ट उस समय के रक्षा मन्त्री आर. वेंकटरमन को समर्पित की गई।

डॉ. कलाम ने बारह यूनिवर्सिटियों, तीस रक्षा प्रयोगशालाओं, सी.एस.आई. आर., आई.एस.आर.ओ. तथा दर्जनों सरकारी तथा गैरसरकारी संस्थाओं को इस कार्यक्रम में शामिल कर लिया था । इस कार्यक्रम की पांच मिसाइलों के नाम हैं: पृथ्वी, नाग, आकाश, त्रिशूल और अग्नि।

उनकी योग्यताओं को देखते हुए उन्हें टेक्नोलॉजी, इन्फॉरमेशन, फ़ॉरकास्टिग एंड एसेसमेंट काउंसिल (टी.आई.एफ.ए.सी.) का मुख्य अधिकारी होने के साथ भारत सरकार का मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार नियुक्त किया गया और कैबिनेट मन्त्री का दर्जा दिया गया। डॉ. अब्दुल कलाम ने सेटेलाइट लांच विहिकिल के विकास में भी बड़ा योगदान किया। इसकी वजह से रोहिणी उपग्रह अन्तरिक्ष में छोड़ना सम्भव हो सका। उन्होंने देश के वैज्ञानिक तथा तकनीकी क्षेत्र से जुड़े हर मामले में अपनी सलाह दी तथा उसके विकास में भरपूर सहायता की। डॉ. कलाम को भारतीय मिसाइल का जनक कहा जाता है।

बचपन से ही अब्दुल कलाम लम्बे पंखों वाली समुद्री चिड़िया की उड़ान की तरफ़ बहुत आकर्षित रहे। उनकी यही रुचि उन्हें विमान चालकता अभियन्ता की डिग्री प्राप्त करने तक ले गई। उन्होंने तमिल भाषा में कविताएं भी लिखीं तथा वीणा को बजाना भी सीखा।

अब्दुल कलाम ने अपनी सारी ज़िन्दगी भारत के जल-सीमान्त क्षेत्रों के पास बिताई। अरब सागर के नज़दीक थम्बा अन्तरिक्ष केन्द्र में रामेश्वरम के इस लड़के ने अपने बीस साल अन्तरिक्ष में अव्वल होने के स्वप्न के साथ बिताए। अगले बीस साल बंगाल की खाड़ी के पास चांदीपुर में बिताए, जहां मिसाइलों की उड़ान का निरीक्षण किया जाता था। इसी बीच उन्होंने अन्तरिक्ष से वातावरण में आने वाले पदार्थों की जांच-पड़ताल भी की ।

डॉ. कलाम को 1981 में पद्मभूषण, 1990 में पद्मविभूषण तथा भारतरत्न पुरस्कार से 26 नवम्बर, 1997 को सम्मानित किया गया।

कलाम ने योजना बनाई है कि वह 2020 तक भारत को जगाने, तकनीकी के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने तथा युवाशक्ति को देश को आगे बढ़ाने के अभियान से जोड़ने में लगे रहेंगे। इसलिए कहा जा सकता है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतन्त्र डॉ. कलाम जैसे धुनी-गुनी हस्ती के रहते किसी से पीछे रहने वाला नहीं। ऐसे में पूरी आशा है कि देश की जन-शक्ति और नेतृत्व के तालमेल से यह स्वप्न अवश्य पूरा होगा ।

ज्यों ही रामेश्वरम के लोगों को पता लगा कि वहां की मिट्टी में जन्मे और पले-बढ़े कलाम भारत के राष्ट्रपति चुन लिये गए हैं, तो वे खुशी से झूम उठे । सारे रामेश्वरम में मिठाइयां बांटी गईं । रामेश्वरम मन्दिर में विशेष पूजा की गई और डॉ. कलाम का पुश्तैनी मकान बधाई देने वालों से भर गया। उसी दिन उनके मोहल्ले की गली वाली मस्जिद में भी विशेष नमाज़ अता की गई। कलाम के परिवार वालों की प्रसन्नता का वर्णन तो शब्दों में भी सम्भव नहीं है।

25 जुलाई, 2002 को डॉ. कलाम को भारत के राष्ट्रपति पद की शपथ दिलाई गई और वह एक ऐसे घर में रहने लगे, जहां आम लोगों का पहुंचना आसान नहीं था। वह था भारत के प्रथम नागरिक का घर, यानी राष्ट्रपति भवन, लेकिन इस घर में आकर उन्होंने-अपने आप को इसकी दीवारों में क़ैद नहीं कर लिया, बल्कि देश-भर में खुद जाकर या राष्ट्रपति भवन में बुलाकर युवाओं और बच्चों को विकास का पाठ पढ़ाते हुए उनसे दोस्ती और पक्की कर ली।

About Narvil News

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

*

x

Check Also

33. अरुणा आसफ़ अली -भारत-रत्न 1997

अरुणा आसफ अली, द अनसंग फायरब्रांड जो भारत छोड़ो आंदोलन की हृदय थीं