गीता

कृतज्ञताः सद्गुणों के विकास की आधारशिला

क्या पता, भगवान ने वह मनुष्य का पेट भरने के लिए ही हमें सम्पति दी हो, क्या पता कि 200-500 लोगों का घर चलाने के लिए ही भगवान ने मुझे फैक्ट्री का मालिक बनाया हो, क्या पता की लोगों की मदद करने के लिए ही भगवान ने मुझे धनवान बनाया हो। इसलिए हमें इस बात का अभिमान नहीं परन्तु गर्व करना चाहिए कि भगवान ने मुझे दूसरे लोगों की मदद करने के लिए ही यह सब कुछ प्रदान किया है। और इसलिए हमें अपना केंद्र सम्पति या धन-दौलत पर नहीं परन्तु भगवान के प्रति शुक्रिया कर करना चाहिए।

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सत्य की खोज ही ज्ञान…

सत्य की खोज ही ज्ञान...,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,

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कर्मफल की इच्छा के त्याग

त्यागः संपूर्ण भौतिक ऊर्जा भगवान की है और यह उनकी खुशी के लिए है। इसलिए, संसार की ऐश्वर्य किसी के भोग के लिए नहीं है। बल्कि ईश्वर की सेवा में उपयोग करने के लिए है। इस समझ में स्थिर होना ही त्याग है। वैसे तो इस संसार में मनुष्य का भोगों के प्रति आकर्षण स्वाभाविक है। पर विचारने पर दृष्टिगत ...

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पूजन प्रक्रिया में क्षमा मांगने का नियम….

क्षमा या सहनशीलताः यह प्रतिशोध की आवश्यकता महसूस किए बिना, दूसरों के अपराधों को सहन करने की क्षमता है। क्षमा के माध्यम से, व्यक्ति दूसरों के कारण हुए भावनात्मक घावों को ठीक करता है जो अन्यथा मन को विचलित और परेशान कर सकते हैं। क्षमा मांगना और किसी को क्षमा कर देना व्यक्तित्व का सबसे अच्छा गुण है, क्षमा का ...

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क्षमा या सहनशीलता-ताकत या शक्ति……

लोभ का अभावः लालच शरीर के रखरखाव के लिए वैध रूप से जरूरत से ज्यादा जमा करने की इच्छा है। इसके प्रभाव में, लोग बड़ी मात्र में धन और संपत्ति अर्जित करते हैं, हालांकि वे जानते हैं कि मृत्यु के समय सब कुछ पीछे छूट जाएगा। इस तरह के लोभ से मुक्ति संतोष और आंतरिक शांति की ओर ले जाती ...

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तपस्या का महत्व, केवल धर्म एवं अध्यात्म तक ही सीमित नहीं….

बलिदान इसका अर्थ है अपने वैदिक कर्तव्यों और सामाजिक दायित्वों को पूरा करना, भले ही वे आनंद दायक न हों। जब भगवान की प्रसन्नता के लिए किया जाता है तो बलिदान को पूर्ण माना जाता है। दूसरे अर्थों में बलिदान किसी नेक सामाजिक कारण हेतु मृत्यु या हत्या को प्राप्त होना होता है। जैसे पृथ्वीराज चौहान, गुरु तेग बहादुर, बन्दा ...

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हिंदू सनातन धर्म में, पांच प्रकार के दान…..

किसी भी कार्य को सम्पन्न होने में वक्त लगता है विकास की प्रत्येक प्रक्रिया एक निश्चित समय लेती है। उतावला होकर, अधीर होकर कोई काम नहीं करना चाहिए। गीदड़ के जल्दबाजी के कारण कभी बेर नहीं पकते। बीज को अंकुरित होने, पेड़ के रूप में विकसित होने और फिर उसमें फल लगने में वक्त लगता है। बीज एक दिन में ...

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धैर्यः धैर्य ऐसी शक्ति है, जो मानव के आत्मा को सबल बनाती है।

आध्यात्मिक विभूति आनंदमयी मां कहा करती थीं कि, मन को वश में करने का उपाय यह है कि हम शरीर और संसार की जगह आत्मा को जानने का प्रयास करें। मन को पवित्र एवं उत्कृष्ट विचारों के चिंतन में लगाए रखें। इसके लिए नेत्रें, कानों और जि“वा का संयम आवश्यक है। न बुरा देखें, न बुरा सुनें और न बुरा ...

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मनुष्य में इच्छित गुण…..

गीता के 16वें अध्याय के श्लोक  1 से 3 में, कहा गया है की- अभयं सत्त्वसंशुद्धिर्ज्ञानयोगव्यवस्थितिः। दानं दमश्च यज्ञश्च स्वाध्यायस्तप आर्जवम्।1।। अहिंसा सत्यमक्रोधस्त्यागः शान्तिरपैशुनम्। दया भूतेष्वलोलुप्त्वं मार्दवं ”हीरचापलम्।।2।। और तेजः क्षमा धृतिः शौचमद्रोहोनातिमानिता । भवन्ति सम्पदं दैवीमभिजातस्य भारत।।3।। सर्वेश्वर के इस कथन में कहा गया है कि दिव्य प्रकृति से संपन्न लोगों में, अनेक गुण होते हैं जैसे- निर्भयता, मन ...

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भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं…..मन को संतुलित….कैसे रखते है……

अनुकूल और प्रतिकूल परिस्थितियों में सुख और दुख का अनुभव करना बुद्धि की प्रतिक्रिया है। लाभ और हानि मन की कल्पनायें हैं जिससे किसी चीज को लेकर खुशी और गम होना स्वाभाविक है। लालसा किये गए सामान और वस्तु हासिल करने पर खुशी और नहीं मिल पाने पर गम होना स्वाभिवक है। भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं मनुष्य के जीवन में ...

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