चारित्र्य ही व्यक्तित्व का गहना…………..

चरित्र मनुष्य जीवन का एक अनमोल गहना है। चरित्र से व्यक्ति का व्यक्तित्व जाना जाता है। हमारे वेद-उपनिषद ने लिखा है कि, “तस्तेन जगत्यकीर्तिपटहो गोत्रे मसी कुर्चकः, चारित्र्यस्य जलांजलिः गुणगणारामस्य दावानलः। अर्थात जिसने अपने चरित्र को लुप्त किया, उसने अपने कुल पर कलंक लगा दिया और अपकीर्ति को प्राप्त कर लिया।

चरित्र, मनुष्य के जीवन का अनमोल धन है। हर उपाय से इसकी रक्षा करनी चाहिए। किसी की धन-सम्पति, जमीन-जायदाद, व्यवसाय, व्यापार चला जाए, तो वह उद्योग करने से पुनः प्राप्त हो सकता है, किन्तु जिसने प्रमाद अथवा असावधानी वश एक बार भी अपना चारित्र्य खो दिया, तो फिर वह जीवन भर के उद्योग से भी अपने उस धन को वापस नहीं पा सकता। आगे चलकर वह अपनी भूल सुधार सकता है, अपना सुधार कर सकता है, अपनी सत्यता और चरित्र के लाख प्रमाण दे सकता है, किन्तु फिर भी वह एक बार का लगा हुआ कलंक जीवन से नहीं हटा सकता। उसके लाख संभल जाने, सुधर जाने पर भी समाज उसके उस पूर्व पतन को भूल नहीं सकता और इच्छा होते हुए भी उस पर विश्वास नहीं कर सकता। एक बार का चारित्रिक पतन मनुष्य को जीवन भर के लिए कलंकित कर देता है। इसलिए तो विद्वानों का कहना है कि मनुष्य का यदि धन चला गया तो कुछ नहीं गया, स्वास्थ्य चला गया तो कुछ चला गया, किन्तु चारित्र्य चला गया तो सब कुछ चला गया। इस लोकोक्ति का अर्थ यही है कि, धन-दौलत तथा स्वास्थ्य आदि को फिर पाया जा सकता है, किन्तु गया हुआ चारित्र्य किसी भी मूल्य पर दुबारा नहीं पाया जा सकता। इसलिए मनुष्य का प्रमुख कर्तव्य है कि संसार में मनुष्यता पूर्ण जीवन जीने के लिए हर मूल्य पर, हर प्रकार से, हर समय, अपने चारित्र्य रक्षा के लिए सावधान रहें।

एक रूसी कहावत है कि हथौड़ा कांच को तोड़ देता है, पर लोहे का कुछ नहीं बिगाड़ता। इसका तात्पर्य है कि सुदृढ़ और सद्कर्माे पर चलने वाला व्यक्ति अपने चारित्र्य के साथ कभी समझौता नहीं करता। कहते हैं कि योग्यता की वजह से सफलता मिलती है और वह योग्यता चारित्र्य ही है, जो सफलता को संभालता है। जो सफल व्यक्ति अपने चरित्र को नहीं निखारते सफलता भी उनके पास ज्यादा देर तक नहीं टिकती। ऐसे लोग शीघ्र ही गुमनामी के अंधेरों में गुम हो जाते हैं।

आध्यात्मिक रुझान से, न सिर्फ व्यक्ति का चरित्र सुदृढ़ होता है, बल्कि उसके अंदर धैर्य, ईमानदारी, परोपकार आदि सद्गुणों का भी विकास होता है। वर्तमान समय में चरित्र का मजबूत होना अत्यंत आवश्यक है।

हमारे वेदों में भगवान से एक प्रार्थना की गई है— “असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योतिर्गमय, मृत्योर्मा अमृतं गमय्,” इसका अर्थ ही यही है कि हे ईश्वर, मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो। असत्य और अंधकार का सम्बन्ध मनुष्य की चरित्र हीनता अर्थात असत्य मार्ग से ही है। सच्चरित्र मनुष्य अपने शुभ कर्मों से इसी भूमि पर स्वर्ग का निर्माण करता है।

हम सब ने स्वामी विवेकानंद जी की बारे में तो सुना ही है, वो हर एक स्त्री को माँ और बहन कहकर ही संबोधन करते थे, उनका मानना था कि हमारी पत्नी के सिवा जो भी स्त्री समाज में हैं, वो हमारे लिए वन्दनीय है। एक बार अमेरिका में उनका प्रवचन सुनने के बाद एक स्त्री ने उनके पास आकर कहा कि  मैं आपसे और आप के विचार और चरित्र से बहुत प्रभावित हो गई हूँ और मैं आपसे शादी करना चाहती हूं, मैं चाहती हूँ की मैं आप के जैसा एक चरित्रवान बेटा पैदा करू, तो कृपया आप मुझसे शादी कर लीजिये।’’ उस स्त्री की ये बात सुनकर स्वामी विवेकानंद जी ने कहा की आप की इच्छा का मैं सम्मान करता हूँ, और आप ऐसा चाहती हो कि मेरे जैसा आपका बेटा हो तो उसके लिए इतनी लम्बा इंतजार करने की कोई आवश्यकता नहीं है, आज से मैं ही आप का बेटा हूँ, आप मुझे, अपने बेटे के स्वरूप में स्वीकार कीजिये। धन्य है ऐसे चारित्र्यवान महापुरुष। इंग्लैंड में जब उन्होंने संबोधन किया, “मेरे प्यारे भाइयों और बहनों—” तब वहां के लोग दंग रह गए। आज भी हमारे पास एक ऐसा चारित्र्यवान लीडर है, वो है हमारे प्रधानमंत्री, श्री नरेन्द्र मोदीजी। ऐसी ही तेजस्विता, ऐसी ही खुमारी, ऐसी ही त्वरित निर्णय शक्ति और ऐसा ही चारित्र्य। इसलिए तो समग्र देश के लोग, उनकी हर बात को मानते हैं।

आज के जमाने में चारित्र्य के अंदर जो प्रदूषण फैल गया है उसकी वजह है सोशल मीडिया। आज दूसरी भी एक बात हो रही है, हर स्त्री घर के बाहर जाकर नौकरी करना चाहती है, वो बात तो अच्छी है पर काम की जगह पर जो स्त्री-पुरुष संबंध का अनुशासन चाहिए वो रह नहीं पाता। एक बार जहां स्त्री पुरुष का व्यवहार कार्य के सिवा अलग रास्ते पर जाने लगता है तब सब मुश्किलें चालू होती हैं। हमारे देश में तो फिर भी ये बात बहुत ही कम हो रही है पर अमेरिका जैसे देशो में यह दूषण ज्यादा है। सोशल मीडिया पर किस व्यक्ति के साथ क्या बात करनी चाहिए और कितनी हद तक करनी चाहिए, वो समझने का महत्त्व ज्यादा है। हमारी एक छोटी सी भूल हमें बर्बाद कर सकती है, हमारा जीवन छिन्न-भिन्न कर सकती है। कुछ समय पहले अमेरिका में वकीलों का एक सम्मलेन हुआ था और उस सम्मलेन में से एक बात का निष्कर्ष आया कि अमेरिका में बहुत ज्यादा डिवोर्स केस में से 70 % से ज्यादा केस, सोशल मीडिया के कारण ही हुए हैं। जो भी मनुष्य अपने काम की जगह पर, अपने रिश्तेदारों के बीच, अपने समाज में, चरित्रवान नहीं रहता, उसकी कभी अपने जीवन में प्रगति नहीं होती। स्कूल में जब हम पढ़ते थे, तब एक ही प्रतिज्ञा सबसे बुलवाई जाती थी जिसमें सब से पहले आता था कि फ्भारत मेरा देश है और सब भारतीय मेरे भाई-बहन हैं— उसका महत्त्व आज समझ में आता है।

हमारी भारतीय संस्कृति में एक ताकत है कि, यह समग्र विश्व का मार्गदर्शन कर सकती है। आज हम सब भगवान राम को एक उत्कृष्ट चारित्र्य के लिए हर पल याद करते हैं, जो राजा थे, चाहते तो सीता का त्याग करने के बाद, और कई शादी कर सकते थे। लेकिन श्री राम ने अपने जीवन में चारित्र्य का गुण संपन्न करके, हम सब भारतीयों को, ऐसा जीवन जीने की प्रेरणा दी।

आज हमें पता ही नहीं है कि हमारे धर्म और संस्कृति का क्या मूल है, जो हमें जीवन जीने की सच्ची राह दिखाता है और हमारे भीतर जरूरी गुणों को सम्पन्न कर सकता है। जब गांधीजी अफ्रीका से लौटकर भारत आये और उनको देश की आजादी के लिए राह नहीं दिख रही थी तब उन्होंने लिओ टॉलस्टॉय को एक खत लिखा और पूछा कि मैं भारत को आजादी दिलाना चाहता हूँ पर योग्य मार्ग नजर नहीं आता, तब टॉलस्टॉय ने उनको एक ही वाक्य में उत्तर दिया था, उस व्यक्ति के पास सब कुछ आता है, जो ये जानता है कि इंतजार कैसे करना है, मतलब कि आपके हिन्दू धर्म और संस्कृति में देखो तो आप को राह मिल जाएगी, उसके बाद गांधीजी ने सत्य और अहिंसा का मार्ग अपनाकर आजादी का काम चालू किया और परिणाम तो हम सब को पता ही है। ऐसी है हमारी संस्कृति।

जब स्वामी विवेकानंद अमेरिका गए, वहा पर लोगों ने उनके कपड़े देखकर उनका मजाक बनाया। एक आदमी ने उनके पास आकर पूछा कि क्या आप के देश में ढंग के कपड़े नहीं है? क्या आप ऐसी पर्सनालिटी को मानते हैं, जो दूसरों को देखना भी पसंद नहीं? तब स्वामी विवेकानंद ने उसका उत्तर देते हुए कहा कि, भाई ऐसा है कि आप के देश में लोग शरीर के बाहर की पर्सनालिटी को मानते हैं, और हमारा देश मनुष्य के शरीर की भीतर की पर्सनालिटी को मानता है। हमारी संस्कृति नीतिमत्ता और चरित्र के आधार पर टिकी हुई है, जो हमारे पास है वो आप के पास नहीं है।

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