वैदिक संस्कृति

संत कवियत्री मीराबाई

संत कवियत्री मीराबाई

वेदों में कहा गया है शुचिनाम श्रीमंताम गृहे योग भ्रष्ट जीव ही जाता है। गीता के कर्म के सिद्धांत के अनुसार कर्म फल के अनुरूप ही जन्म मिलता है। लेकिन इनमें अपवाद रूप ऐसे हमारे ऋषि मुनि भी है, क्योंकि वो तो समाज की जागृति की जरूरत के मुताबिक इस धरा पर भगवान का काम करने के लिए आए हुए ...

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संत ज्ञानेश्वर

हमें आयुष्य कितना मिला है, या हम कितने साल जिये यह बात महत्वपूर्ण नहीं है, किंतु हम जितने भी साल जिए उतने सालों में कितना जिए और कैसे जिए यह महत्वपूर्ण है। कौनसा ऐसा काम करके गए जिनसे आगे हमें लोग याद रखेंगे यह बात ज्यादा मायने रखती है। कहते है अगरबत्ती, धूप, दिया, बाती, फुल इन सबकी आयु बहुत ...

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संत तुकाराम महाराज

भारत की भूमि वैसे भी संत महापुरुषो की धरा है। प्रयोगशाला में अगर प्रयोग करना है तो उसके अनुकूल वातावरण बनाना पड़ता है। वैसे ही अगर सुप्रीम पावर को भी अपना कोई भी  प्रयोग करना है तो उसके अनुकूल  वातावरण और धरा भी मिलनी  चाहिए। वो शायद भारत के अलावा इस भू तल पर कही नहीं है। क्योंकि, यही सृष्टि ...

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संत रैदास/रविदास

खळ खळ अविरल बहती नदियों में, गंदा पानी कभी नहीं भरता। नाहीं उसमें से कभी दुर्गंध आती है। शायद इसी वजह से गम में या दुखो में डुबा हुआ इंसान, अगर बहती नदी या सागर के किनारे जाकर बैठता है, तो वह अपना दर्द भूल जाता है। कुदरत के पास यही तो खासियत है कि, उसके पास निस्वार्थ भाव से ...

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संत तुलसीदास

जननी जन्मभूमि स्वर्ग से भी महान होती है, और वो भी जब भारत जैसी हो। जो मस्तक पर लगते ही पवित्र कर देती है। शायद इसीलिए जनेऊ बदलते समय यही मिट्टी माथे पर लगाकर यही प्रार्थना करते हैं कि मेरे पापों का निर्मूलन करो। क्योंकि इसी धरा पर राम और कृष्ण ने अवतार लिया है। जिस धरा की संस्कृति बचाने ...

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संत एकनाथ महाराज

समाज में जब जब भ्रांत और पंगु भक्ति अपने पैर पसारने लगती है, तब-तब उस काल में धर्म और भक्ति को बचाने के लिए लिए भगवान किसी न किसी रुप में अवतरित होते हैं। जब तक काम उनके संत या ऋषि मुनियों से हो जाता है, तब तब उन्हीं के माध्यम से अपना काम सही करा लेते है। उस वक्त ...

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महर्षि जमदग्नि ऋषि

भगवान ने खुद स्व-मुख से कही गीता में ग्यारहवें अध्याय में अपने एश्वर्य का खजाना अर्जुन के सामने खोल दिया था। पृथ्वी पर किस किस चीज में वो विराजमान है यह बताया था। वैसे तो गीता के कथन के अनुसार हर जिव मात्र उसका अंश है। किंतु जिनमें वह स्वयं आकर बैठे है उन्हीं को हम याद करते है और ...

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महर्षि कश्यप

गीता में भगवान ने कहा है, “अहमात्मा गुडाकेश सर्व भूताशय स्थित:”, किंतु भारत की भूमि पर तो,  ऐसे कई उत्तुंग हिमालय जैसे जीवन है, जिनको देखकर लगता है की, भगवान स्वयं ही उनका रूप लेकर इस धरा पर आए हैं। ऐसे महान चरित्रों की बात जब हम कहते है, तब लगता है, मानो उस सागर की बात एक लोटी में ...

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महर्षि अत्री और सती अनसूया

समाज में हमेशा दो तरह के लोग रहते है, एक भोगवादी, और दूसरा ज्ञानवादी। समाज का ज्यादातर हिस्सा पहले हिस्से में आता है। क्योकि ज्ञान वादी लोग ज्यादातर अहंम वादी, अलगाववादी और अपनी ज्ञान की उत्क्रांति में लगे रहते हुए मिलते है। लेकिन ज्यादातर ऐसे ज्ञानी लोगो की बाते उनके विचार सह्जिकता से सामान्य जन के पल्ले नहीं पड़ते, क्योंकि ...

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मनु महाराज

सनातन धर्म के अनुसार इस धरा की पहली संतान अर्थात प्रथम पुरुष यानि “मनु” महाराज थे। शायद इसीलिए उनकी संतानोत्पत्ति को मानव कहा जाता है। इसी कहानी को दूसरी भाषा में आदम और ईवा कहते है। यानि इस धरती पर भगवान द्वारा बनाए गए पहले स्त्री और पुरुष। जैसे धरती का प्रलय एक मन्वंतर के बाद होता है। वैसे आज ...

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