संत तुकाराम महाराज

भारत की भूमि वैसे भी संत महापुरुषो की धरा है। प्रयोगशाला में अगर प्रयोग करना है तो उसके अनुकूल वातावरण बनाना पड़ता है। वैसे ही अगर सुप्रीम पावर को भी अपना कोई भी  प्रयोग करना है तो उसके अनुकूल  वातावरण और धरा भी मिलनी  चाहिए। वो शायद भारत के अलावा इस भू तल पर कही नहीं है। क्योंकि, यही सृष्टि के सारे नियम उसके मुताबिक चलते है। जैसे की सभी ऋतुएं, सभी मौसम, इतनी नदिया, ऐसी फलद्रुप जमीन। सात्विक और धार्मिक लोग। शायद इसी वजह से इस धरा पर दस अवतार हुए है। संस्कृति को बचाने  के लिए इतने ऋषियों ने  अपना लहू बहाया, संतोने इतने कष्ट सहन कर भी उस परम पिता परमेश्वर का संसार सुंदर बनाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। इस देश के हर कोने में कोई माँ कोई संत, ऋषियो ने अवतार लिया है। जिसमें महाराष्ट्र की भूमि भी संत और वीरो की भूमि रही है। जहा लोग जमीनी हकीकत से जुड़ के कम करनेवाले लोग थे और है। यहा पर अगणित संत महापुरुष हो गए। जैसे  संत एकनाथ, ज्ञानेश्वर, नामदेव, जनाबाई और आज हम जिनके बारे में जानेगे  वो संत तुकाराम महाराज। ऐसे और अगणित नाम है इस धरा के।

तुकाराम महाराज का नाम सामने आते ही उनके अभंग और भजन सामने आते है। कहते है उनका कार्यकाल पन्द्रहवीं सड़के अंत से सोलहवी सदी के मध्य का था। फागुन माह की द्वितीय को उनके आराध्य देव विठोबा उन्हें वैकुंठ में ले जाने के लिए स्वयं विमान लेके आये थे ऐसी गाथाएँ इतिहास में दर्ज है। महाराष्ट्र के पुणे के पास देहु गाव में मोरे खानदान में जन्मे तुकाराम के माता पिता का नाम बोल्होबा और कनकाई था। उनके दो भाई और भी थे, वो मजले थे। उनके बड़े भाई साउजी  को संसार से विरक्ति थी इस लिए उन्होंने संसार का त्याग कर दिया था। और छोटा भाई कान्होबा छोटा था,  इसीलिए घर की पूरी जिम्मेदारी तुकाराम पर ही थी। तुकाराम  महाराज का खानदानी पेशा शाहुकारी और खेती का था। उनके दादा और पिता गाव म लोगोको व्याज पे पैसे देने का कम करते थे।लेकिन उन्हें हाथ में यह कारभार आते ही उन्होंने सारे लोगोको साहूकाऋ के  ऋण से मुक्त कर दिया और सब के कागज  और लिखा पटी को इद्रायनी नदी में बहा दिया था। वैसे उनके कुल में आठ पीढ़ी से भगवान विठ्ठल की उपासना की जाती थी। यानि पंढरपुर महाराष्ट्र के विठोबा के भक्त थे।  तुकाराम के युवा काल ( 17/18 ) में ही उनके माता पिता का अवसान हो गया था। माता-पिता के अवसान के साथ उस काल में उनके गाव में भीषण अकाल पड़ा था। जिसके कारण उन्हें बहोत विपत्तियों का सामना करना पड़ा था, कामकाज भी गया, पशु भी चले गए  और उसी अकाल में उनकी पत्नी रुखमा और बेटा संतु मृत्यु के शरण हो गए। तब उन्हें संसार से विरक्ति सी हो गई, और वो पास वाले भंडारा पर्वत पे विठ्ठल की उपासना करने चले गए। शायद यह दुनिया का एसा पहला संत था जिसने अपने कर्जदारों का कर्ज माफ कर दिया था। वह सब को भगवान का अंश मानते थे। इसीलिए उनकी नजरमे  भगवान के सामने सब एक जैसे थे। वो सभी खुदा के बंदो को श्रीमंत ही मानते थे। उनकी अभिलासा थी की सब बंदे श्रीमंत हो जाए और प्रभु  का  काम करके उसके प्यारे बनके अपना परमार्थ साधले। अपने जीवन काल में  उन्होंने उनसे जो हो सका और जो हो पाया वो सब दिया। लेकिन तत्कालीन समाज तो ऐसे लोगोको पागल ही समजती है, और उसकी खिल्ली ही उड़ाती है। तुकाराम के साथ भी ऐसा ही हुआ उस काल में उनके विरूद्ध बहुत से षडयंत्र रचे, उन्हें बहोत सी वेदना और यातना ए भी दी। किंतु तुकाराम अपनी भक्ति और अपने कार्य से विमुख नहीं हुए। समाज उन्हें उनकी भक्ति और श्रध्दा को हरा नहीं पाया। उनकी तो बस एक ही तमन्ना थी भगवान आपका संसार मुझे अच्चा बनाना है। अवधाची संसार सुखाचा करीन। यही उनका ध्येय था। भगवान से विमुख हुए लोगोको उनकी तरफ आकृष्ट करना ही उनका कर्तव्य बन गया था। वो हमेंशा कहा करते थे  भगवान की रची इस सृष्टि में सभी में समता होनी चाहिए। पुणे शहर के पास वाघोली गाव के रामेश्वर भट्ट ने उन्हें संस्कृत वेदोका अर्थ प्राकृत भाषा में समजाया और फिर इसी कार्य और समता भाव के कारण उन्होंने अभंग (कबीर के दोहे जैसे मराठी में दोहे ) लिखना शुरू किया। लगभग 4 हजार अभंग उन्होंने लिखे है। उनके जीवन काल में वह सुख-दुःख से परे हो गए थे। उन्होंने अपने अभंग के माध्यमसे तत्कालीन समाज के लोगो में  मौलिक द्रष्टि प्रदान कर मार्गदर्शन करने का काम किया। वो यही मनानेवालो मेसे थे की भगवान जो भी समय और संजोग देगा  उसे प्रसाद मान स्वीकार कर उसी में संतोष मान जीना सीखना ही मानव जीवन की सार्थकता है।

उन्होंने दूसरी शादी उन्होंने पुणे के पास के गाव के अप्पाजी गुळवे की बेटी जिजाई आवली के साथ की। जिनसे उन्हें दो बेटे और दो बेटिया थी। कन्या भागीरथी और काशी और पुत्र नारायण और महादेव। तुकाराम महाराष्ट्र के वारकरी संप्रदाय के अनुयाई थे। वो मराठी वेपारी के लड़के थे और खानदानी साहूकारी करने वाले और किराना की दुकान और खेती सब था। लेकिन उनकी उदारता वादी स्वभाव के कारण वो सब लोगो में सारी चीजे बाट देते थे। उनकी दुकान पर सामान लेने आने वालो को वो अभंग सुनाया करते थे। उनके इसी सालस स्वभाव का लोग गलत फायदा उठाते थे। जिसकी वजह से उनका व्यापर ठीक से चल नहीं पाता और घरमे खाने के लाले पड जाते। इसी कारन उनकी दूसरी पत्नी जिजाई बहोत गुस्सा करती थी उन्हें डाट देती थी। और लोग उन्हें कर्कसा के नाम से पुकारने लगे थे। किन्तु तुकाराम को इसकी कोई चिंता नहीं थी। वो तो अपने जिवन में होने वाली हर घटनाओं को भगवान की लीला समज हर संजोग में खुश रहने का तरीका खोज लेते। ऐसे थे महान तुकाराम। ऐसे भक्त का तो भगवान को भी इंतजार रहता है। जिसके स्वागत के लिए  वो  सदा तत्पर रहता है, और विमान लेके खुद लेने आ जाता है।

-संजय राय

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