कल्कि अवतार (दसवां अवतार)

अब तक हमने भगवान विष्णु के नव अवतारों के बारे में जाना। हमारा प्रयास था की हर अवतार के बारे में प्रचलित कहानियां तो सभी जगह जानने को मिल जाएगी, किन्तु उस अवतार रूप में जो उनका कार्य था या उन्होंने कार्य किया उसके बारे में बताने का प्रामाणिक प्रयत्न किया गया है। हम यह तो नहीं कहते हम संपूर्ण है। किंतु जब भगवान स्वयं अवतार लेके धरा पर आते है तब कालांतर उस पर धुल की परत तो आही जाती है। हम उस धुल को साफ करके उस छवि को स्पष्ट दिखने का प्रयास कर रहे है। जितना मुमकिन हो सका है अर्थ सभर और ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर यह सब बाते बताने का प्रयास किया गया है। इस लिए शब्दों की त्रुटियों को ध्यान में न रखते जो बाते बताने का प्रयास किया है उसका मर्म समजने की कोशिश करे।

भगवान के इस भारत की धरा पर नव अवतार हो चुके है। इस बात की साक्षी सभी धर्म ग्रंथो में देखने को मिलती है। फिर वो बौद्ध धर्म हो मुस्लिम धर्म हो या सिख धर्म हो। इन सभी धर्म ग्रंथो में इन बातो का उल्लेख नजर आता है। भगवान का दशवा अवतार यानि संभवित ऐसा कल्कि अवतार। जो अभी हुआ नहीं है किंतु होने वाला है। भगवान ने गीता के चौथे अध्याय के आठवे श्लोक में कहा है, ‘परित्रणाय साधूनां विनाशाय च दुष्कृताम् —-’ यानि जब जब धर्मा भी मुख लोगो पर अत्याचार बढेगा तब तब उस अत्याचार से मुक्त कराने, और उन अत्याचारियों को मारने में मदद करने हेतु में पृथ्वी पर अवतरित होऊंगा।

अवतार का कार्य ही होता है मानव जीवन को सुसंस्कृत करके उनका नैतिक जीवन का मूल्य बढ़ाना। साथ में आध्यात्मिक जीवन को ऊपर उठाने कोई कोशिश अपने भत्तफ़ो को सहायता हेतु ही होता है। जब जब पृथ्वी पर, धर्म पर अराजकता फैलने लगती है, तब तब मानव का नैतिक, पारमार्थिक और दैवी जीबन से विमुख होता जाता है। तब-तब समाज में शांति और समाज की स्वस्थता नष्ट होती है। और समाज के लोग अपना दैवी और नैतिकता पूर्ण जीवन छोड़ जड़वादी विचारो के आधीन होने लगते है। तब भगवान को लगता है अब अवतार लेने का समय आ गया है।

जैसा हम आज साम्प्रत समाज में देख रहे है। समाज में भत्तफ़ो की या भक्ति की कमी नहीं है। मंदिरों में भत्तफ़ो की भीड़ उमट पड़ी है। सभी लोग अपने आप को बड़ा भक्त बताने की कोशिश में लगे हुए है। दूसरे को पछाड़ कर अपना स्वार्थ साधने में कोई कमी नहीं छोड़ रहे है। बगुला भगत बनने में सब लगे हुए है। किंतु शायद भगवान भी अपने मंदिर के गर्भ द्वार पर एक काच का शीशा लगाके बैठे है। जैसे हम चोपाटी पर जाते है गाड़ी में बैठे आइसक्रीम खा रहे है और कोई मांगने वाला आ जाए तो तुरंत अपनि गाड़ी का शीशा चढ़ा लेते है। भगवान भी यही करते है। क्योंकि समाज में सब भ्रांत भक्ति ही चल रही है। छिलके की सब पूजा कर रहे है। भगवान ने गीता के 18 वे अध्याय के 68/69/70/ 71/72 वे श्लोक में स्पष्ट शब्दों में लिखा है। मेंरी यह सब बाते जो समाज के अंतिम व्यक्ति तक पहुचाने के लिए जायेगा और वह काम करेगा वो ही भक्त मुझे प्रिय है। और उसके आलावा कोई नहीं। मानव पर निस्वार्थ प्रेम और वेदों की बाते कहने घर घर, गांव-गांव जाना। लोगों को भगवान के सम्मुख लाने का काम करना यही तो है भगवान का सही मायने में काम। यह काम करने वाले भक्त ही भगवान को प्रिय है। भगवान ने भक्ति की सारी बाते भी बताई है। और उसे छोड़ अगर हम सिर्फ कर्म कांड पर ही ध्यान देने लगेगे तो वह अधूरी भक्ति कहलाएगी। यही सारी बाते परम पूज्यनीय पांडुरंग शास्त्री आठवले जी ने भी अपने गीता के प्रवचनों द्वारा और अपने कार्य द्वारा सिद्ध की हुई है।

कहते है भगवान का दसवां अवतार कल्कि अवतार संबल (मुरादाबाद) नामक गाव में, विष्णु दत्त नामक ब्राह्मण के घर जन्म लेंगे। जो कल कलियुग और सतयुग का संधि काल होगा। वे अपने एक हाथ में विचार और दूसरे हाथ में प्यार लेके घोडे सवार होकर आयेंगे और समाज में चल रही उन सब बदी ओको मिटाकर फिर से सुनियोजित संस्क्रुति क धरोहर का पुनरुत्थान करेंगे।

धर्म हमेशा पांच बातों पर आधारित होता है। इश्वर वादी बिचार, कुटुंब संस्था, अर्थ कारण, राज कारण, और आंतर राष्ट्रीय राजनीति। यदि यह सब बाते सही ढंग से चल रही होती है, तभी धर्म और संस्कृति की पताका लहराती है। और इन सब बातो से समाज में फिर से बौद्धिक समाजवाद निर्माण होके फिर से धरती रसवंती बन जाती है। और फिर से समाज की गाड़ी धर्म की पटरी पर चलनी शुरू हो जाती है। अवतारवाद का रहस्य ही यही होता है। समाज में कर्मयोगी और धर्म के आचरण करने वाले लोगों के अविश्रांत परिश्रम से फिर से समाज पर छाई यह अकर्मण्य की काली परत मिटाने का काम कर कर उस जहाज की दिशा बदलने में सफलता मिलती है तब फिर से धर्म की संस्थापना होती है। तब फिर से विश्व में जय घोष के साथ वापस कृष्णम वंदे जगत गुरु का दुदुम्बी नाद सुनाई देगा। शायद इसी जन्म में भगवान का यह अवतारी रूप देखने को मिले तो जीवन कृत कृत्य हो जाये।

-संजय राय

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