भारत के उत्सव
भारत के उत्सव

प्रस्तावना – भारत के उत्सव

Man is made in the image of God” मशहूर कवी और साहित्यक शेक्सपियर यह बात कही है| ऐसा कहके उन्होंने इस धरा पर मानव का महत्व बढ़ाया है। इतना ही नहीं भगवान खुद गीता में अपने मुख से मानव जाति को बिरदाते हुए “ममैवंशो जिव लोके ….” कहा है। यानि भगवान की उत्कृष्ट ऐसी कलाकृति यानि मनुष्य।  भगवान ने जब इस पृथ्वी का निर्माण किया, तब कहते है सबसे पहले पेड़ पौधे नदी समुद्र पहाड़ वगेरे बनाया। उसके बाद पशु पक्षी जलचर और भुमिचर बनाये। फिर उसको याद आया की ये सारे तो मेरी बनाई हुई सृष्टि और प्रकृति का आनंद नहीं ले सकते इसलिए उन्होंने मानव का निर्माण किया। जिसे मन बुध्धि देकर उसके उपभोग्य बनाया। फिर भी कुछ कमी लगी तब उन्होंने स्त्री का निर्माण किया। यानि भगवान की लेटेस्ट कलाकृति यानि स्त्री। उसमें भगवान ने अपनी पहले की सारी कमियाँ पूरी कर दी।

मानव जीवन रोज का काम करते करते एक तरह की जिंदगी से उब न जाए और उसके जीवन में कुछ नयापन, कुछ ताजगी महसूस करने को मिले यह सोच हमारे ऋषियों ने मानव जीवन को त्योहारों से भर दिया। भारतीय महीनो के अनुसार हर महीने में कोई न कोई त्योहार आता ही है। वैसे भी भारत को उत्सवों का देश कहा जाता है। हमारे देश में हर धर्म और हर जाती के लोगों का त्योहारों को उतने ही उत्साह से मनाया जाता है।

क्योंकि त्यौहार मानव जीवन में उत्साह और परिवर्तन लाता है। रोजाना जिंदगी में आने वाली कठिनाइयों को और तकलीफों को थोड़े समय के लिए पोज करने का साधन यानि त्यौहार। अगर हम भारतीय त्योहारों के बगैर अपने जीवन की कल्पना करे तो मानो लगेगा छप्पनभोग तो लगा है किंतु उसमें स्वाद नहीं है। क्यों ? क्योंकि नमकीन में नमक नहीं है और मिष्टान्न में मीठा नहीं है। यह जो नमक और मीठे की जो कमी है वो हमारे भारतीय त्यौहार है। अब तो आप हमारे जीवन में त्योहारों का महत्व क्या है यह बात समझ तो गए ही होंगे। मानवी जीवन से अगर त्योहारों को मायनस किया जाए तो केवल शून्य ही बचेगा। त्यौहार ही तो है मानवी जीवन को फिर से उत्साह पूर्ण और जिवंत बनता है।

हमारे देश में त्योहारों के कई प्रकार है। जिसमे धार्मिक त्यौहार हमें धर्म का महत्व समजाते हुए, हमें प्रभू मे अपनी आस्था और निष्ठा बढ़ाने का महत्व समझाती है। तो राष्ट्रिय त्यौहार हमें देश के प्रति अपने कर्तव्यों को याद दिलाती है। तीसरा भाग अगर हम बना डाले तो व्यक्ति पूजा का है। जिसमें हमारे गुरु, ऋषियों और समाज में बदलाव लाने में अपना महत्वपूर्ण योगदान देने वाले महापुरुषों को याद करने का दिन हम मनाते है। जो हमें ऐसे लोगो के प्रति हमारी कृतज्ञता जताने का कम सिखाती है।

ऐसे त्यौहार अगर सच्ची और सही समझ और सही तरीके से मनाये जाए तो यह बाते हमारी संस्कृति को पुनर्जीवित करने का काम कर सकती है। उसके लिए हमें हमारी बुद्धि के दरवाजे खोलने पड़ेंगे। त्योहारों के सही मायने हमें समझने होंगे और इसे हमारी भावी पीढियों को समझाने होंगे ताकि हमारी परंपरा हमारे रीती रिवाज इन सब का सही धरोहर से हम उनको अवगत करा सके। इन सब सही बातों से ज्ञानित होकर,  सही मायने में नई पीढ़ी उसे अपनाने में बिना कतराए उसे उठा ले और उसे अपने जीवन में कार्यान्वित करे। ताकि हमारे ऋषियो की हुई अथाग महेनत और परिश्रम निष्फल न जाये।

  • संजय राय, “शेरपुरिया”

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