शिर्डी के साईं बाबा

शिर्डी के साईं बाबा

भगवान ने जब इस पृथ्वी की रचना की तब उन्होंने यह कभी नहीं सोचा होगा की उसकी ही संताने उन्हीं को धर्म के नाम पर बांट के आपस में इतनी क्रूर हो जाएगी कि एक दूसरे को मरने मारने पर उतारू हो जाएगी। गॉड यानि ईश्वर अल्लाह, हम जो भी मानते है आखिर एक ही तो है। GOD का अर्थ ही है, G-Generator, O-Operator और D-Destroyer- फिर इसे हम ब्रह्मा, विष्णु, महेश मान लें, अल्लाह मानले या गॉड आदिम सुप्रीम पावर अंत में एक ही है। यही बात हमारे सभी धर्म सिखाते है। धर्म हमें जाती भेद या रंग भेद नहीं सिखाता वो तो सिर्फ काम और निस्वार्थ प्रेम करना ही सिखाता है। बाकी की सारी बाते तो हम अपने आप करने लगते है, अपने नीजी स्वार्थ को इंधन डालने के लिए। यही बात समझा समझा कर थक गए थे, शिर्डी के साईं बाबा। जिन्होंने अपने जीवन काल में, लोगो को केवल दो ही मंत्र दिए। श्रद्धा और सबूरी। अल्लाह मालिक है। सबका मालिक एक है। धर्म के नाम पर झगड़े तो इंसान करते है। बस इंसान अगर इतनी बात समझ ले कि, वह इन्सान की औलाद है, वह एक अच्छा इंसान ही बने यह काफी है। फिर चाहे वो हिंदू हो या मुस्लिम। एक अच्छा इंसान बने यही वेद भी कहते है। क्योंकि इंसान को ही कहना पड़ता है, तू इंसान बन। उसे हर बार उसका आइना दिखाना पड़ता है। जिसको भी मानो, पूरी श्रद्धा और विश्वास के साथ समर्पित होकर, करे तभी उसका परिणाम उसे देखने को मिलेगा। यही सारी बाते आम लोगों को उनके जीवन में लाने के लिए और उनको समझाने के लिए ही साईं बाबा ने अपनी पूरी जिंदगी इन्हीं कामों में गुजार दी।

शिर्डी का साईं मंदिर वैसे तो भारत ही नहीं पूरे विश्व में श्रद्धा का और आस्था का स्थान है। उनके दरबार में हिंदू और मुस्लिम दोनों धर्म के लोग आते है, इतना ही सिद्दत और श्रद्धा से अपना सर झुकाते है। साईं ने अपने भत्तफ़ो को कभी कोई धर्म के लिए आग्रह ही नहीं किया, उन्हें पता था दोनों एक ही सुप्रीम पावर के दो नाम है। आदिम शक्ति एक ही है। मान लो एक इंसान अपने ऑफिस में बॉस है। लेकिन वही अपने घर में अपने माता-पिता का बेटा है, बहन का भाई, पत्नी का पति और अपने बच्चों का पिता भी है। है तो एक ही इंसान। किंतु जिसको जिस रुप में दीखता है, वो उसे उस नाम से पुकारता है। तो क्या रूप बदलने से, इंसान बदल जाता है? नहीं। तो ईश्वर अल्लाह गॉड को आप जिस मन से पुकारोगे, वो उस रूप में नजर आएगा फिर उस रूप को लेकर इतने झगडे़ क्यों?

लोग मानते हैं, साईं बाबा मुस्लिम थे, तो कोई कहते है वो हिंदू थे। लेकिन क्या आपको पता है, वो मस्जिदों में भी जाकर शिवलिंग बनाते थे, और मंदिरों में भी जाके इबादत करते थे। आिखर क्यों? क्योंकि वो राम-रहीम का फर्क मिटाना चाहते थे। भगवान एक ही है, यही समझाना चाहते थे। साईं को लेकर लोगो में बहुत सी गलत मान्यताओं ने घर कर रखा है। लेकिन हाल ही में  सिंतबर 2014 में, साईं ट्रस्ट ने मुंबई के कांदिवली की कोर्ट में एक अपील दाखिल की है, जिसके मुताबिक साईं का जन्म 27 सितंबर 1837 में,  हाल के हैदराबाद के परभनी के पाथरी गाव में, दोपहर को बारह बजे एक हिंदू परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम गंगा बावडिया और माता का नाम देवगिरी अम्मा माना जाता है। वे दोनों शिव-पार्वती के उपासक थे।  शिव कृपा से ही यह संतान उनके यहां जन्मी थी। किन्तु पिता को मन में ब्रह्म की खोज की तीव्र अभिलाषा के कारण अपनी पत्नी के साथ वह जब जंगल से गुजर रहे थे, तब बालक का जन्म हुआ तब वहां से गुजर रहे एक मुस्लिम फकीर को बालक सौंप कर चले गए। मुस्लिम फकीर ने उनका नाम बाबा रखा था। उन्होंने उनका लालन पालन किया था। किंतु एक मुस्लिम के यहा बड़े होने के कारण, वह मंदिरों में भी जाते मस्जिदों में भी लोगों के ताने सुनकर उन्होंने साईं को गाव से निकाल दिया।

शिर्डी में कहते है उन्होंने 16 साल की उमर में आगमन किया था। यहां वह एक नीम के पेड़ के नीचे बैठते। कोई कहते है चाँद पाटिल नामक एक बंदे के विवाह में वो शिर्डी आए थे, बारात वापस निकल गई लेकिन वो वहीं रुक गए। उन्हें वो जगह पसंद आई और एक जीर्ण मस्जिद में वो रहने लगे थे। वहां एक व्यक्ति जो बाद में बाबा का परम भक्त बना महालसापती, उसे उनमें एक अजीब सी तेजस्विता दिखी और उसने बाबा को साईं के नाम से हॉक मारना यानि बुलाना शुरू किया। ऐसे वो साईं बाबा बन गए। उस वक्त वहां मराठी-उर्दू और फारसी मिश्रित भाषा का प्रयोग होता था। इसलिए साईं का अर्थ होता है, फकीर या सूफी संत या पावन कारी संत। उनका बिज मंत्र ही था, सबका मालिक एक। उन्होंने अपना पेट पालने के लिए, तो पूरी जिंदगी गांव में, भिक्षा ही मांग के गुजारा किया था।

उनके भक्त में से कई हिंदू उन्हें, दतात्रेय का अवतार कोई शिव का अवतार तो कोई कबीर का अवतार मानते है। मुस्लिमों की नजर में वो पाक फकीर थे। वह अपने जीवन काल में अष्टांग योग और योग विद्या के प्रखर उपासक माने जाते थे। उनके मंदिर के ट्रस्टियो के अनुसार वह ब्राह्मण हिंदू थे, मुस्लिम फकीर ने बाद में उन्हें एक हिंदू गुरु वैकुंशा जी को सौंपा था। उनका नाम हरिभाऊ रखा था।

जो भी सत्य हो लेकिन आज तो उनके नाम पर देश विदेशों में हजारों मंदिर बनाये गए है। और उनके ट्रस्टी और पुजारी उनके नाम का फायदा उठा रहे हैं। जिन्होंने अपनी पूरी जिंदगी भिक्षा मांगकर राम-रहीम का फर्क मिटाने में लगा दी आज उन्हीं के नाम पर लोग वही मसला उठाकर फिर से धर्म को बांटने पर तुले है। भगवान उन सबको सदबुद्धी दे और साईं का काम और कार्य सफल हो यही प्रार्थना करते हैं।

-संजय राय

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