योग : कर्म, ज्ञान और आत्मसंयम का अद्भुत संगम

संजय राय, “शेरपुरिया”

योग शब्द सामने आते ही, हमें समाधी लगाए हुए बाबा नजर आने लगते है, जिसकी आज के ज़माने में सारे युवाओ को एलर्जी है I लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है  योग का अर्थ संकृत के “यज” धातु से होता है, जोड़ना I योग हमें, उच्च-नीच, रंगभेद, जाती-पाति, भाषा, सम्प्रदाय से ऊपर उठाकर मानवता, समानता और सह-अस्तित्व में जीना शिखाता है I मन की संकुचित परिघि को तोड़कर, वह उसे असीम और सर्वभोम बनाता है I योग से हमारे मन पर अंकुश रहेता है I लुप्त इन्द्रियों को संयमित करने में यह मदद करता है I योग हमें, तन, मन, प्राण और आत्मा की कार्यप्रणाली की सम्पूर्ण जानकारी देकर स्व-शासित और स्व-नियंत्रित करता है I योग के मार्ग पर चलकर, समाज का हर व्यक्ति अपने जीवन को इश्वर की पूजा बना शकता है I योग का मतलब सिर्फ, आसन, प्राणायाम और सूर्य नमस्कार ही नहीं है, लेकिन भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है की, “योग: कर्मसु कौशलम”, मतलब की अपने कर्म में कुशलता भी योग है I योग का मतलब है, आत्मा को परमात्मा से जोड़ना, अर्थात जन्म और मृत्यु से मुक्ति प्राप्त करना I हमारे जीवन रूपी बूंद को परमात्मा रूपी सागर में समा देना I योग से मनुष्य, अपने तन, मन, और प्राण को मिलाकर, अपने जीवन में संतुलन और नियमन स्थापित कर शकता है I

हमारे वेद-उपनिषद ने कहा है की, “शरीर स्वस्थ तो मन स्वस्थ, और मन स्वस्थ तो बुध्धि स्वस्थ”I इसका अर्थ ही यही है की, अगर हमें हमारे मन और बुध्धि को श्रेष्ठ बनाना है, तो शरीर को स्वस्थ और सुद्रढ़ बनाना बेहद जरुरी है I भगवद गीता के प्रचारक एवं तत्वज्ञानी प.पू. पांडुरंग शास्त्री जी ने कहा है की, भगवद गीता के अनुसार, योग तिन प्रकार के होते है, ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग I मनुष्य इस तिन में से कोई एक या तो तीनो पथ पर चल सकता है I लेकिन गीता के अनुसार, कर्म में कुशलता को मनुष्य जीवन में प्राधान्य दिया गया है I लेकिन यह तीनो में सबसे पहेला है, ज्ञान योग I मनुष्य ध्यान और आसन का संतुलन करके यह योग को सिध्ध कर शकता है I महर्षि पतंजली, योग के धाता है I उनके अनुसार, “योग का मतलब है, चित्रवृतियो को नियंत्रित करना”I यहाँ पर वृति का मतलब विचार है I हमारे सारे शरीर को हमारा मन और बुध्धि ही नियंत्रित करता है I हम हमारे शरीर के लिए तो, कई प्रकार के उपचार करते रहेते है, डॉक्टर-वैध्य का भी इस्तमाल करते है, पर हमारे मन और बुध्धि की शुध्धि के लिए, कभी कोई कुछ काम नहीं करता I अगर हमारे पास गाड़ी है तो, हम उसकी हर महीने सर्विस करवाते है, घर की हर साल मरम्मत करवाते है, शरीर का दिन-प्रतिदिन ख्याल करते है, लेकिन यह सब को नियंत्रित करनेवाले मन और बुध्धि को सतेज करने के लिए बिलकुल ख्याल नहीं करते I

मन और बुध्धि को सतेज करने का मतलब है, उसका शुध्धिकरण I मनुष्य जीवन जीते हुए, हमारे सामने कई प्रकार की समस्या, कई प्रकार के द्वेष भाव, कई उलज़ने आती रहेती है I आज मनुष्य जरा सी तकलीफ आने पर मायुश हो जाता है, क्योकि उसका अपने मन और बुध्धि पर कोई कंट्रोल नहीं है, मन और बुध्धि की साधना कभी उसने नहीं की I योग हमें, हमारे मन और बुध्धि को सतेज करने में, हमारे प्राण और संयम को नियंत्रित करने में मदद करता है I योग में मुख्य रूप से दो क्रियाओ का उपयोग होता है, आसन और चित एकाग्रता I आसन सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं है, लेकिन आसन के माध्यम से शरीर के, पैर से लेकर मस्तिस्क तक के सभी अंगो को सतेज और नियंत्रित किया जा सकता है I भगवान कोई हमारे धनजीभाई-मनजीभाई नहीं है, की हमें मंदिर में जाकर प्रणाम किया, फुल चढाया और प्रसन्न हो गए I परमात्मा एक अलौकिक शक्ति है, जिसके पास जाने के लिए, एक निश्चित मार्ग हमारे वेद-उपनिषद ने तय किया है, और वो मार्ग है “चित एकाग्रता” I हमारी पांच कर्मेन्द्रिया, पांच ज्ञानेन्द्रिया और ग्यारहवा मन, यह ग्यारह चीजो को नियंत्रित करके ही, परमात्मा की उपासना की जाती है, मन और बुध्धि को नियंत्रित किया जा सकता है I योग में इतनी ताकत है, की महर्षि पतंजलि अनुसार, अगर योग – ध्यान करते हुए मनुष्य यह बात हमेशा महेसुस करे की मेरे भीतर एक हाथी जितनी शक्ति है, तो सालो की उपासना के बाद, यह सिध्ध हो सकता है और मनुष्य सही में एक हाथी जितना ताकतवर हो सकता है I

गोस्वामी तुलसिदास जी ने कहा है की,

अलि, पतंग, मृग, मीन, गज जरत एक ही आंच I

तुलसी वे कैसे जिये, जिन्ही सतावे पांच II

इसका मतलब है की, हर प्राणी-पक्षी में एक प्रकार की वासना –विकार होता है, लेकिन मनुष्य एक ही ऐसा है की, जिसमे पांचो प्रकार की वासना-विकार होती है I यह वासना और विकार जब तक मनुष्य के भीतर से बहार नहीं जाता, नियंत्रित नहीं होता, तब तक मनुष्य अपने मन और बुध्धि को श्रेष्ठ नहीं बना सकता I जैसे, शरीर की भूख को मिटाने के लिए हमें खाना जरुरी है, वैसे ही मन और बुध्धि की भूख मिटाने के लिए, योग, आसन, सूर्यनमस्कार एवं चित एकाग्रता जरुरी है I

योग और आसन क्या है यह जानने के लिए तो कई सारी किताबे है, हम उनमे से यह ज्ञान प्राप्त कर सकते है I और हम यहाँ पर इसकी विस्तृत चर्चा इसलिए भी नहीं कर सकते, क्योकि आसन 60 प्रकार के होते है, प्राणायाम 8 प्रकार के होते है, सूर्यनमस्कार में 12 मुद्राए होती है, और हम यहाँ पर इतनी सारी बाते एक लेख में नहीं कर सकते I आसन, प्राणायाम, सूर्यनमस्कार और चित एकाग्रता (ध्यान) यह चारो बाते मनुष्य जीवन में सोने (GOLD) से भी ज्यादा कीमती है I यह नियमित करने से हमारे शरीर के साथ ही, हमारा मन और बुध्धि अलौकिक बनता है I और यह चार बाते, भारतीय संस्कृति की धरोहर है, जिसका आज हमें अभिमान शायद नहीं है, पर विश्व के कई देशो ने यह बातो को श्रेष्ठतम मानते हुए, अपनी पढाई में, अपनी मुख्य बातो में समावेश किया है I

आसन, सूर्यनमस्कार, प्राणायाम और चित एकाग्रता करने के लिए, ब्रह्म मुहर्त में उठना जरुरी है I प्रथम प्रहार में ही यह क्रिया करने से उसका लाभ मिलता है I हमें यह लगता है की, इतना जल्दी उठकर हमें अपने दिन को ख़राब क्यों करना है ? लेकिन इतना जल्दी उठकर, अगर हमने यह कर लिया तो, समजो की हमारा दिन प्रफुल्लित और मन-बुध्धि अव्वल रहेगा I इसका उदहारण हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी है, जो 12-15 घंटा काम करते है फिर भी थकते नहीं, इसका कारण है योग I यही कारण है की मोदी जी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी यह समजाया की, योग और ध्यान का कितना महत्त्व है, इतना ही नहीं, आज का जो दिन है, “विश्व योग दिन”, जो हर साल 21 जून को मनाया जाता है, वो इसके ही कारण है I कोई एक दिन मनाने से या एक दिन सब प्रवृति कर लेने से कुछ भी नहीं होता, यह क्रिया हमारे जीवन की निरंतर करनेवाली क्रिया है I हम सब टीवी सीरियल, फिल्मे देखते है, कई जगह पर पढ़ते है की, यह महर्षि को यह ज्ञान था, इतनी शक्ति थी, तब हमें यह एक कथा लगती है, पर यह बात बिलकुल सच है की, योग और साधना से शक्ति तो क्या, इश्वर भी मिल सकता है I

सही माने तो योग और साधना को हमारे स्कुल-कोलेजो के पाठ्यक्रम में लाना बेहद जरुरी है I अगर यह शिक्षा बच्चे को प्रारंभ से ही दी गई तो, उसे कभी बोलना नहीं पड़ेगा की, योग-साधना करना जरुरी है I तो बच्चे को हमें समजाना नहीं पड़ेगा की, सुबह में 4 से 5 बजे के बिच में उठना है I आजकल तो मोबाईल और इंटरनेट का जमाना है, बच्चे और युवाओ रात को 12-1 बजे तक मोबाईल में लगे रहेते है, फिर सुबह में जल्दी कैसे उठ सकते ? दिमाग में दुनिया भर का कचरा अगर डाला है तो उसे साफ भी करना पड़ेगा, और यह साफ करने का अंतरिम उपाय है, “योग और साधना” I

अगर हम को हमारा जीवन श्रेष्ठ बनाना है, हमारे मन और बुध्धि को सतेज और सर्वोतम बनाना है, तो आज के “विश्व योग दिन” के अवसर पर हमें तय करना होगा की, आज से और अभी से, मुजे अपने जीवन में आसन, प्राणायाम, सूर्यनमस्कार और चित एकाग्रता को महत्त्व देना है, वेद-उपनिषद की दिखाई गई यह श्रेठ और नैतिक रह पर चलना है, और “योग ही जीवन है”, यह वाक्य को सिध्ध करना है I ” योग हमें उन चीजो को ठीक करना शिखाता है, जिसे सहा नहीं जा सकता और उन चीजो को सहना शिखाता है, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता” I

योग वह विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन, आत्मा और पूरे ब्रम्हांड को एकाकार करने की क्षमता रखती है। इसके नियमित अभ्यास से व्यक्ति शांति और आनंद प्राप्त करता है जिससे उनका नॉलेज और कोंसंसनियस बढ़ता है। इससे व्यक्ति के व्यवहार और विचार में सकारात्मक परिवर्तन आते है। योग में आसन और प्राणायाम का काफी महत्व है। आसान एक तरफ शरीर को लचीला और स्वस्थ बनता है, तो प्राणायाम के माध्यम से हम श्वास को नियंत्रित करने का अभ्यास करते है।

आजकल योगासन की क्रिया के बीच प्राणायाम का चलन बढ़ता जा रहा है। इसमें आसन के अभ्यास के दौरान सांस को भी नियंत्रित करना शामिल है, जबकि प्राणायाम अपने आप में श्वास की प्रक्रिया का एक अलग व्यायाम है, जो आमतौर पर आसन करने के बाद किया जाता है। योग प्रक्रिया में हठ योग का काफी महत्व है। हठ योग में ह का अर्थ है – हकार अर्थात सूर्य नाडी (पिंगला) और  ठ का अर्थ है – ठकार अर्थात चन्द्र नाडी (इडा)। योगासन व प्राणायाम के माध्यम से हम इन दोनों को संतुलित करते हैं।

महर्षि पतंजली ने योगदर्शन में योग का अर्थ जोड़ना बताया है जो आजकल काफी प्रसिद्ध हो चला है। महर्षि पतंजली के अनुसार योग का मतलब है जीवात्मा का परमात्मा से एकाकार हो जाना। मनुष्य द्वारा चित्त को एक ही जगह स्थापित करना योग है, ‘योगश्च चित्तवृत्ति निरोध‘। उन्होंने योग सूत्र में कहा है ‘स्थिरम सुखम आसनम‘ जिसका मतलब आसन के प्रयाश के पश्चात विश्राम जो हमारे जीवन के हर पहलू में संतुलन प्रदान करता है। यह मुख्य रूप से हमें समर्पण के साथ प्रयास करना सिखाता है और परिणाम से मुक्त होने का ज्ञान प्रदान करता है।

योगासन की प्रक्रिया सजगता के साथ साँसों से तालमेल बिठाकर करना चाहिए। कहने का अर्थ है की योग की क्रिया के दौरान जब हम हाथों को उठाते हैं, तो पहले अपने हाथों के प्रति सजग होते हैं फिर इसे धीरे-धीरे उठाते हैं और सासों के साथ तालमेल बिठाते हुए योगासन करते है। योगासन के दौरान शरीर को उसकी क्षमता से थोड़ा अधिक स्ट्रेच करने पर इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे मन मस्तिष्क पर पड़ता है और इसका विकास होता है।

योगासन की प्रक्रिया विभिन्न मुद्राओं में बैठ कर करना ज्यादा लाभप्रद है जिनमें मुख्या रूप से पद्मासन प्रमुख है, जिसे कमल मुद्रा भी कहते है। इसमें हम जांघों के ऊपर पैरों को टिकाकर क्रॉस-लेग रखते है। इस मुद्रा में शारीरिक संतुलन काफी अच्छा होता है। बड़े बड़े ऋषि मुनि इसी मुद्रा में योगासन का अभ्यास करते थे। दूसरा है सिद्धासन जिसे संपूर्ण या पूर्ण मुद्रा भी कहा जाता है। इसमें अपने एक पैर की एडी को मूलाधार के नजदीक लाकर पैरों को क्रॉस-लेग रखते हुए दूसरा पैर ऊपर टिकाते है। और तीसरा है वज्रासन जिसे वज्र मुद्रा भी कहा जाता है। इसमें पैरों के तलवे और घुटने को जमीन पर रखकर नितंबों को एड़ी पर टिकाकर बैठेते हैं।

योग के माध्यम से विभिन्न बीमारियों का इलाज किया जाता है जिनमें शारीरिक और मानसिक व्याधियां भी शामिल हैं। इसके नियमित अभ्यास से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है और एक स्वस्थ जीवन शैली प्राप्त होती है तथा शरीर में नई-ऊर्जा का संचार होता है। योगासन और प्राणायाम शरीर को शक्तिशाली, लचीला, तनाव रहित रखता है जो हमारी दैनिक जीवन के लिए आवश्यक है।

सावधानियां

योगासन सामान्यतः खुली एवं ताजी हवा में करना उचित होता है। पर शहरी वातावरण में यह सभी जगह संभव नहीं है, तो कहीं भी खाली जगह पर किया जा सकता है। योगऋषि बाबा रामदेव कहते हैं योगासन और प्राणायाम के लिए ३ग६ फुट का स्थान पर्याप्त है। योगासन और प्राणायाम सीधे फर्श पर बैठकर नहीं करना चाहिए। इसके लिए जमीन पर कालीन या दरी अवश्य बिछा लें। योगासन करने के तुरंत बाद स्नान नहीं करना चाहिए क्योकि योगासन और प्राणायाम करने के बाद शरीर गर्म रहता है, ऐसे में स्नान करने से सर्दी-जुकाम, बदन दर्द जैसी समस्या पैदा होने की सम्भाना बढ़ जाती है। इसके लिए आधा से एक घंटे का अंतर अवश्य होना चाहिए। यदि संभव हो तो योगासन के बाद मालिस अवश्य करें इससे शरीर में रक्तसंचार बढ़ता है और योगासन तथा प्राणायाम का अधिक लाभ प्राप्त होता है। हो सके तो योगासन और प्राणायाम स्नान करे के बाद करे।

कुछ प्रमुख योगासन और उनके फायदे

अर्धमत्स्येन्द्रासन:

प्रक्रियाः पैरों को आपस में मिलाकर रीढ़ को सीधा रखते हुए पैरों को सामने की ओर रखकर बैठें।बाएं पैर को मोड़ें और एड़ी को दाहिने कूल्हे के पास रखें। दाहिने पैर को बाएं घुटने के ऊपर ले जाएं। बाएँ हाथ को दाएँ घुटने पर और दाएँ हाथ को अपने पीछे रखें। इस क्रम में कमर, कंधों और गर्दन को दायीं ओर मोड़ें और दाएं कंधे के ऊपर देखें। रीढ़ को सीधा रखें। धीरे-धीरे लंबी सांसों के साथ अंदर और बाहर करते हुए रुकें और साँस लेना जारी रखें। फिर साँस छोड़ते हुए, पहले दाहिने हाथ को छोड़ें (आपके पीछे का हाथ), कमर, फिर छाती, अंत में गर्दन को ढीला करते हुए आराम से सीधे बैठें। यही प्रक्रिया दूसरी तरफ भी दोहराएं। सांस छोड़ते हुए वापस सामने की ओर आएं और आराम करें।

 

फायदेः यह रीढ़ को लचीला बनाता है। छाती को खोलता है और फेफड़ों में ऑक्सीजन की आपूर्ति बढ़ाता है। इससे पीठ दर्द में आराम मिलता है तथा बाहों, कंधों, ऊपरी पीठ और गर्दन में तनाव कम होता है। यह पेन्क्रियाज के लिए लाभदायक है जिससे मधुमेह जैसी बीमारी से छुटकारा मिलता है। यह कब्ज, सर्वाइकल स्पॉन्डिलाइटिस, मूत्र विकार, मासिक धर्म की परेशानियों से छुटकारा दिलाता है।

सावधानियाँः इसे गर्भावस्था और मासिक धर्म के दौरान, और गंभीर बीमारी में नहीं करना चाहिए। हार्ट, स्टमक या ब्रेन का ऑपरेशन हुआ हो तो इसका अभ्यास नहीं करें।

पद्मासनः

Padmasana yogaप्रक्रियाः रीढ़ को सीधा रखते हुए फर्श या चटाई पर पैरों को सामने फैलाकर बैठ जाएं। दाहिने घुटने को मोड़कर बायीं जांघ पर रखें। तय करें कि पैरों के तलवे ऊपर की ओर हों और एड़ी पेट के पास हो। अब यही स्टेप दूसरे पैर से भी दोहराएं। दोनों पैरों को क्रॉस करके पैरों को विपरीत जांघों पर रखते हुए, अपने हाथों को घुटनों पर मुद्रा की स्थिति में रखें। सिर और रीढ़ को सीधा रखें। धीमी लंबी सांसों को अंदर और बाहर करते हुए रुकें।

पद्मासन शरीर में ऊर्जा के प्रवाह को उत्तेजित करती हैं और अभ्यास करने पर आश्चर्यजनक प्रभाव पड़ते हैं। यदि आपको अपने दोनों पैरों को ओवरलैप करने और पद्मासन में बैठने में समस्या है, तो किसी एक पैर को विपरीत जांघ पर रखकर अर्ध-पद्मासन (आधा कमल मुद्रा) में भी बैठ सकते हैं।

फायदे: पाचन में सुधार करता है। मांसपेशियों के तनाव को कम करता है और रक्तचाप को नियंत्रित करता है। दिमाग को आराम देता है। प्रसव के दौरान गर्भवती महिलाओं की मदद करता है। मासिक धर्म की परेशानी को कम करता है।यह पाचक अंगों को उत्तेजित करता है और कब्ज से राहत दिलाता है।

सावधानियां: टखने या घुटने की चोट में इसे किसी अनुभवी शिक्षक की देखरेख में ही करें।    कंधों में चोट या दर्द हो तो ना करें। अपनी शारीरिक क्षमता से अधिक जोर न लगायें।

भद्रासनः 

भद्रासन करने का तरीका और फायदे - Bhadrasana

भद्रासन करने का तरीका और फायदे – Bhadrasana

प्रक्रियाः यह एक बेहद सरल और उपयोगी आसन हैं। इसे करने के लिए पैर आगे की ओर रखें, हाथों को शरीर के बगल में रखते हुए गर्दन सीधी और शरीर का ऊपरी हिस्सा आगे की ओर लाएं। अब पैरों को फर्श के संपर्क में रखते हुए घुटनों को बाहर की ओर और पैरों के तलवों को आपस में मिलाकर रखें। पैरों के पंजे बाहर की ओर इशारा करते हुए, जनन अंग के करीब लाएं। एड़ी को शरीर के करीब लाने के लिए पैरों को पकड़ें। हाथों को संबंधित घुटनों पर नीचे दबाकर रखें। शरीर के ऊपरी हिस्से और गर्दन को सीधा रखें। श्वास बनाए रखते हुए इस स्थिति में 6 सेकंड तक रहें। साँस छोड़ते हुए, पैरों को धीरे-धीरे फैलाते हुए प्रारंभिक स्थिति में लौट आएं।

फायदेः ध्यान में बैठने के लिए भद्रासन उपयोगी हैं। इससे एकाग्रता बढ़ती हैं, मन की चंचलता कम होती है और दिमाग तेज होता हैं। प्रजनन व् पाचन शक्ति ठीक रहती हैं तथा पैर के स्नायु मजबूत होते हैं। इससे सिरदर्द, कमरदर्द, आँखों की कमजोरी, अनिद्रा जैसी समस्या में आराम मिलता हैं।

सावधानियांः घुटने में दर्द होने पर इसे न करें। अगर यह आसन करते समय कमर दर्द होती है तो न करें। पेट की समस्या में भी इसे नहीं करना चाहिए।

भुजंगासन

भुजंगासन करने का तरीका और फायदे

भुजंगासन करने का तरीका और फायदे

प्रक्रियाः पेट के बल फर्श पर लेट जाएं, तलवे ऊपर की ओर हो, माथे को जमीन पर टिकाएं। पैरों को एक साथ पास रखें, पैर और एड़ी को मिलाएं। दोनों हाथों को इस तरह रखें कि हथेलियां आपके कंधों के नीचे जमीन को छूये, कोहनी समानांतर धड़ के करीब हो। गहरी सांस लेते हुए धीरे-धीरे सिर, छाती और पेट को ऊपर उठाएं। नाभि फर्श पर रखें। हाथों के सहारे धड़ को पीछे खींचे। दोनों हथेलियों पर समान दबाव रहे। रीढ़ को मोड़ते हुए जागरूकता के साथ सांस लेते रहें। सिर पीछे लटकाये और ऊपर देखें। 4-5 सांसों तक समान रूप से मुद्रा बनाए रखें। अब सांस छोड़ें और धीरे से अपने पेट, छाती और सिर को वापस फर्श पर लाएं और आराम करें। यह प्रक्रिया ३ से ४ बार दोहराएं।

फायदेः यह छाती और कमर की मासपेशियो को लचीला बनाता है और कमर में आये किसी भी तनाव को दूर करता है। मेरुदंड से सम्बंधित रोगियों के लिए भुजंगासन बहुत लाभकारी है। कंधे और गर्दन को खोलता है, पेट को टोन करता है, पूरी पीठ और कंधों को मजबूत करता है, थकान और तनाव को कम करता है।

सावधानियाँ: यह आसन क्षमता के अनुसार ही करना चाहिए। जिन्हें पेट के घाव या आंत की बीमारी है वो इसे ना करें। पीछे की तरफ ज्यादा ना झुकें।

चक्रासन

Chakrasana

प्रक्रिया: पीठ के बल लेटें। घुटनों को मोड़ें ताकि पैर फर्श पर सपाट हों, कूल्हों से लगभग एक फुट की दूरी पर पैरों को फर्श पर मजबूती से दबाएं। हाथ की उंगलियों को कंधों के सामने रखते हुए हाथों को कंधों के ठीक पीछे रखें। हाथों से दवाते हुए शरीर को चटाई से ऊपर उठाएं, सिर के मुकुट को फर्स पर हल्के से टिकाएं। पैरों को दबाएं और जांघों को सक्रिय करते हुए, पैर, कमर और पेट को फर्स से ऊपर उठाएं। पैरों से ऊपर पुश करें, वजन अपनी हथेलियों में लाएं। चटाई को मजबूती से दबाते हुए बाहों में ताकत और स्थिरता बनाए रखें। सिर को पीछे लटका दें, ध्यान रहे गर्दन पर दबाव न पड़े। 5-10 सांसों तक रुकें। वापस आने के लिए, धीरे-धीरे बाहों और पैरों को कम करें और रीढ़ को वापस फर्स पर ले आएं।

फायदे: यह ऊर्जा और गर्मी बढ़ाता है, हाथ, पैर, रीढ़ और पेट को मजबूत करता है, छाती खोलता है, कंधों को फैलाता है, हिप फ्लेक्सर्स और कोर को स्ट्रेच करता है, जांघों को मजबूत करता है तथा रीढ़ में लचीलापन बढ़ाता है

सावधानियांः पीठ की समस्याएं, कंधे की चोट, गर्भावस्था तथा उच्च या निम्न रक्तचाप में ना करें।

प्रमुख प्राणायाम और उनके फायदे

कपालभातिः 

कपालभाति योग आपको देगा पॉजिटिव सोच

कपालभाति योग आपको देगा पॉजिटिव सोच

प्रक्रियाः रीढ़ को सीधा करके आराम से बैठें। हाथों को घुटनों पर रखें और हथेलियां आसमान की ओर खुली रहें। गहरी सांस अंदर लें। जैसे ही साँस छोड़ते हैं, तो नाभि को वापस रीढ़ की ओर खींचें। जितना हो सके आराम से करें। पेट की मांसपेशियों के संकुचन को महसूस करने के लिए अपना दाहिना हाथ पेट पर रख सकते हैं। जैसे ही नाभि और पेट को आराम देते हैं, सांस अपने आप आपके फेफड़ों में चली जाती है। इसका कम से कम २० चक्र पूरा करने के बाद, आँखें बंद करके आराम करें और अपने शरीर में संवेदनाओं को मह्सुश करें।

फायदे: यह चयापचय दर को बढ़ाता है और वजन घटाने में सहायक है। फेफड़ों की क्षमता को बढ़ाता है और उन्हें मजबूत बनाता है। नाड़ियों को साफ करता है। पेट के अंगों को उत्तेजित करता है इस प्रकार यह मधुमेह में बेहद उपयोगी है। रक्त परिसंचरण में सुधार करता है और चेहरे पर चमक लाता है। पाचन तंत्र में भी सुधार करता है।

सावधानियांः उच्च रक्तचाप में अभ्यास कम करना चाहिए। मासिक धर्म में या गर्भवती न करें।  स्लिप डिस्क में अभ्यास करने से बचें। कपालभाति करते समय, हृदय रोगियों की साँस छोड़ने की प्रक्रिया धीमा होना चाहिए।

उज्जयी  प्राणायामः

उज्जायी प्राणायाम के फायदे और इसे करने की विधि

उज्जायी प्राणायाम के फायदे और इसे करने की विधि

प्रक्रियाः सबसे पहले जमीन पर बैठ जाएं और शरीर को आराम दें। प्राणायाम शुरू करने से पहले आंखें बंद कर लें। उज्जयी प्राणायाम करने के लिए, श्वास नथुनों से अंदर और बाहर बहती है, होंठ धीरे से बंद रहते हैं। सांस लंबी होनी चाहिए, जिससे हवा फेफड़ों की सभी कोशिकाओं तक पहुंच सके। श्वास लेते समय, फेफड़े कमर के किनारे, पीठ तक, और हंसली तक सभी तरफ फैलें । यह आंतरिक अंगों की भी धीरे-धीरे मालिश करता है सिस्टम में बहुत अधिक ऑक्सीजन भेजता है तथा प्राण ऊर्जा बढ़ाता है। शुरुआत में, यह कठिन लग सकता है, पर अंत में सहज हो जाता है।

फायदे: नाड़ियों को साफ और ताजा करता है। मानसिक स्पष्टता और फोकस बढ़ता है। प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत करता है, तंत्रिका तंत्र को शांत औरजीवंत करता है, थायराइड से संबंधित समस्याओं में फायदा और उच्च रक्तचाप और हृदय संबंधी परेशानी दूर करने में मदद करता है।

शीतली प्राणायाम:

शीतली प्राणायाम

शीतली प्राणायाम

प्रक्रियाः जमीन पर दरी बिछा कर सिद्धासन, सुखासन में बैठ जाएँ। जीभ बहार निकालकर उसे मोड़ कर पाइप जैसा बना लें। जीभ के माध्यम से लम्बी व् गहरी स्वांस खींचकर अपने पेट में वायु को भरें , बहार निकली हुई जीभ को अन्दर करें और मुहं को बंद कर लें। गर्दन आगे की ओर झुकाकर जबड़े के अगले हिस्से को छाती से लगा लें। स्वांस को नाक से  बाहर दपांसमद  ध्यान रखें सांस  धीरे -धीरे बहार दपासम ।यह क्रिया 20-25 बार दोहरायें।

फायदेः  शरीर से गर्मी बहार निकल जाती है और पूरा शरीर ठंडा हो जाता है। यह पाचन क्रिया, ह्रदय रोग ब्लड प्रेशर कम करने, अधिक प्यास को करे कम  करने में मदद करता है।

सावधानियां: इसे सुबह -सुबह खाली पेट करना चाहिए।सर्दियों में नहीं करना चाहिए। दमा, कफ , खांसी, लो ब्लडप्रेसर  होने पर नहीं करना प्राणायाम के समय साँस लयबद्ध और गहरी होनी चाहिए।

अनुलोम विलोमः

अनुलोम-विलोम

अनुलोम-विलोम

प्रक्रियाः ध्यान में बैठने की मुद्रा चुनें। रीढ़ और गर्दन को सीधा रखें और आंखें बंद कर लें। मस्तिष्क में विचार ना आये। दाहिने हाथ का उपयोग करते हुए, मध्यमा और तर्जनी को हथेली की ओर मोड़ें। अंगूठे को दाहिने नथुने पर और अनामिका को बाएं नथुने पर रखें। दाहिने नथुने को अपने अंगूठे से बंद करें और अपने बाएं नथुने से धीरे-धीरे और गहराई से श्वास लें, जब तक कि आपके फेफड़े भर न जाएं। श्वास पर ध्यान दें। इसके बाद, अपना अंगूठा छोड़ें और अनामिका से बाएं नथुने को बंद करें।दाहिनी नासिका से धीरे-धीरे सांस छोड़ें। अब इसे उल्टा करें, इस बार दाएं नथुने से सांस लें और बाएं से सांस छोड़ें। पूरी प्रक्रिया के दौरान, श्वास के प्रति सचेत रहें और देखें कि यह शरीर और मन दोनों को कैसे प्रभावित करती है।

फायदेः  इससे शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।  धैर्य, ध्यान, और नियंत्रण प्राप्त होता है।  तनाव और चिंता से मुक्ति मिलती है।

सावधानियां: अनुलोम विलोम को खाली पेट करना चाहिए, खासकर खाना खाने के 4 घंटे बाद। इसके लिए वातावरण  शांत व् आरामदायक होना चाहिए।

भ्रामरी प्राणायाम 

प्रक्रियाः एक शांत, हवादार कोने में आंखें बंद करके सीधे बैठ जाएं। अपने चेहरे पर कोमल मुस्कान बनाए रखें।  कुछ देर आंखें बंद करके रखें। शरीर में संवेदनाओं और भीतर की शांति का निरीक्षण करें। तर्जनी को कानों पर रखें। गाल और कान के बीच एक कार्टिलेज है। तर्जनी उंगलियों को कार्टिलेज पर रखें। गहरी सांस अंदर लें और सांस छोड़ते हुए कार्टिलेज को धीरे से दबाएं। मधुमक्खी की तरह जोर से गुनगुनाये । फिर से सांस लें और 3-4 बार इसी क्रम को जारी रखें।

फायदेः इससे तनाव, क्रोध और चिंता तुरंत दूर होता है। उच्च रक्तचाप से पीड़ित लोगों के लिए बहुत लाभकारी है। माइग्रेन कम करने में मदद करता है। एकाग्रता और याददाश्त में सुधार होता है। आत्मविश्वास बढ़ता है। ध्यान की तैयारी में मन शांत करने में मदद करता है।

सावधानियांः उंगली कान के अंदर नहीं बल्कि कार्टिलेज पर लगा रहे। इसे ज्यादा जोर से न दबाएं। गुनगुनाते समय अपना मुंह बंद रखें। अपने चेहरे पर दबाव न डालें।

आसन और प्राणायाम के बाद अब हम कुछ सूर्यनमस्कार के बारे में बात करते है, जो मनुष्य जीवन का एक अभिन्न अंग कहलाया जाता है I

सूर्यनमस्कार :

हमारा शरीर पंच महाभूत तत्वों का बना है | हमारे शरीर की रचना ही ऐसी की गई है की उसका विकास अपने आप ही होता रहता हैं | लेकिन कुछ ऐसे  बाह्य परिबल है जिस से जिस से सिर्फ शरीर का ही नहीं लेकिन अन्दर की शुषुप्त शक्तियां भी खके बहार आती है | सामान्यत: हम दिनचर्या में कही न कही व्यस्त रहते है और इसी वजह से हम अपने शरीर को स्वस्थ रखने के लिए की तरह के आधुनिक साधनों का इस्तेमाल करते रहते है | परंतु हमारे शास्त्रोमें प्राचीन काल से ही जो हमारे सर पर रोज आता है और जिससे हमारे दिन की शुरुआत होती है उस सूर्य का एक अलग और अनोखा महत्व बताया गया है| आज भी उस सूर्य का महत्व सिर्फ इन्सान ही नहीं इस पृथ्वी के सभी जिव-जंतु और प्राणियों के लिए ही नहीं परंतु इस धरती की हर एक चीज जैसे फल-फुल, अन्न-जल सबकी उत्पति और विकास आधार भी सूर्य ही है | इस लिए सूर्य नमस्कार का महत्व हमारे जीवन में महत्वपूर्ण है |

वैसे तो हमारे शुक्ष्म शरीर में ७२००० नाडीयां है, परंतु इनमे तिन महत्वपूर्ण है, इडा, पिंगला और शुसुष्णा | हमारी आज की जीवन शैली देखते ये बात तो तय है की इन्सान आर्थिक रूप से कितना भी मजबूत हो लेकिन शारीरिक रूप से अगर कमजोर रहा तो उसके शरीर को प्रयाप्त रूप में पोषण नहीं मिलेगा | और इसके लिए आज के ज़माने का सर्वश्रेष्ठ उपाय है सूर्य नमस्कार, उसकी अलग-अलग तरह की बारह शैलियाँ बच्चो से लेके बड़ो तक सभी के लिए उपयुक्त है | आज कल हम ऐसे कई बच्चो को देखते है की जिनकी जीवनधारा ही इतनी आधुनिक हो गई है की वो अपने जीवन का लक्ष्य तक नहीं सेट कर पा रहे है | उसका कारण बचपन से उनके माँ-बाप ने उन्हें उस तरह की तालीम ही नहीं दी गई की किस तरह से वो अपने शरीर का शारीरिक और मानसिक विकास कर सके | बच्चो में शारीरिक विकास १२ से १४ साल की उम्र में होना शुरू हो जाता है और उस पड़ाव में शरीर में प्रीटूटीड ग्लेंड का विकास होना शुरू हो जाता है जिसके रहते शरीर में काम-वासना से लगते होर्मोन्स बनाने की प्रक्रिया शुरू हो जाती है जिस के रहते बच्चे स्कूल से कॉलेज में पढने जाते है तो  वो एक अलग तरह की तबदीलियों का अनुभव करने लगता है | और इसी लिए बच्चे जब स्कूल में होते है तभी से अगर उसे सही शिक्षा दी जाये तो तो वो इस बदलाव का सामना करने में सक्षम हो सके | हमारे भारत में ऐसे कई स्कूल है जहा इस तरह की जानकारी और उसकी योग्य तालीम हर हप्तेमें दो बार दी जाती है |

सूर्य नमस्कार का प्रभाव हमारे पुरे शरीर के नाडीतंत्र पर पड़ता है, और इस वजह से शरीर में जो अलग अलग तरह के होर्मोन्स का स्त्राव जिसे ग्रंथिया कहा जाता है उन पर भी पड़ता है | अन्तस्त्रावकी ग्रंथियां यानि की इन्कोक्राइन ग्लैंड अत्यंत आधुनिक कही जाने वाली वैज्ञानिक शोध के मुताबिक पुरे शरीर का संचालन इस ग्रंथि से बहने वाले स्त्राव से होता है | और इन सभी ग्रंथियों पर कन्ट्रोल  प्रीटूटीड ग्लेंड का रहता है जो मस्तिस्क के अग्रभाग में आई हुई है, और जिसका विकास सूर्य नमस्कार से होता है | जिसका सीधा प्रभाव मस्तिस्क में रही सभी उर्जा शक्तियो को जागृत करता है और उसके चलते ष्मरण शक्ति का विकास होता है | हाथ,पैर,पेट और कमर के स्नायुओं पर उसका सीधा प्रभाव पड़ने के कारण इन्सान की अधिक चरबी पिघलने लगती है और व्यक्ति सोंदर्यवान होने लगता है यानि वो सुंदर दिखने लगता है |

वैसे तो व्यायाम करने के बहोत से तरीके है इस आधुनिक जगत में | नए नए आधुनीक उपकरणों से अलग अलग तरह के हेल्थ क्लब और जिम है जहाँ जाके लोग व्यायाम करते है  और अखाड़ो में या घर में दण्ड, बैठक, कुस्ती और एरोबिक डांस ऐसे कई तरीके है | ये सब आपके शरीर की अधिक चरबी घटाने में जरुर मदद करेगा आपकी मांसपेशिया भी मजबूत होगी लेकिन आपकी आतंरिक मनकी कमजोरी पे उसका कोई प्रभाव या बदलाव नहीं आयेगा | लेकिन सूर्य नमस्कार से आपका मानसिक, शारीरिक और बौधिक विकास जरुर कर सकते है | मनकी अंदरकी आतंरिक चेतना और प्राणशक्ति को जगाने का काम सूर्य नमस्कार से अवश्य होगा, और उसके लिए कोई साधना की जरुरत नहीं है | इसे कोई भी अबाल, वृद्ध,स्री या पुरुष आसानी से सूर्य नमस्कार का अभ्यास कर सकता है |

ज्यादातर हमारे भारत में प्रसूति के बाद शरीर फुल जाने की फरियाद ज्यादातर महिलाओ को होती है | ज्यादा वजन से ज्यादातर महिलाओ को स्नायुओ की जकडन, जोड़ो का दर्द होने की सम्भावना ज्यादा होती है | और उस वक्त अगर सूर्य नमस्कार का सहारा लिया जाये तो शरीर की अधिकतर चरबी पिघल जायेगी और शरीर और मनमें स्फूर्ति का संचार होगा |

आसन और प्राणायाम का श्रेष्ठ समन्वय

सूर्य नमस्कार आसन और प्राणायाम दोनों का सर्वश्रेष्ठ हो ऐसा व्यायाम का तरीका है | शिथिलीकरण व्यायाम करने के बाद करने से शरीर लचीला और स्फुर्तिला बनता है और ये सूर्य नमस्कार से आसान और  संभव है | सूर्योदय और सूर्यास्त दोनों समय सूर्य नमस्कार कर सकते है | शुरुआत सूर्य की तरफ मुह रखके यह श्लोक बोल के की जाती है….

हिरण्यमयेन पात्रेन स्थापिहितम् मुखम |

तत त्वं पुशन अपावृणु सत्य धर्माय द्रष्टये ||

{ढक्कन से जैसे बर्तन ढका हो वैसे तुम्हारे “सूर्यमंडल’ से सत्य छिप गया है, इस लिए हे सूर्य ! यह आवरण दूर हटा के मुझे आप सत्य के दर्शन करा दो }

सूर्य नमस्कार करने के दो तरीके है | एक में बारह स्थिति में नमस्कार करने होते है |  और दुसरे में दस स्थिति में करने होते है | प्रत्येक सूर्य नमस्कार से पहले ओमकार के साथ बिजमंत्र के साथ सूर्य के नाम का  उच्चारण किया जाता है |

 

  • हाँ मित्राय नम:
  • ह्रीं रवये नम:
  • ह्रू सूर्या नम:
  • ह्रे भानवे नम:
  • ह्री खगाय नम:
  • हुर्म पूष्णेय नम:
  • ह्रआम हिरन्य गर्भाय नम;
  • हीर्म मरीचये नम:
  • ह्रू आदित्याय नम:
  • हिम् सवित्रेय नम;
  • होम अर्काय नम:
  • हूँ भास्कराय नम:

 

सूर्य नमस्कार में हरेक स्थिति में विशिष्ट तरीके से श्वछोश्वास किया लिया जाता है, वो इस प्रकार है |

स्थिति : ( प्रमानासन) पाव को जोड़के और हाथोको नमस्कार मुद्रामें रख के सीधे खड़े होना है और जोर से ॐ कार और बीजाक्षर नामो का उच्चारण करना है |

  1. हस्त उत्तानासन: नमस्कार मुद्रा में ही दोनों हाथो को सर के ऊपर सीधा रखना है, और कमर से जितना हो सके पीछे की तरफ जुकना है | इस स्थिति वे श्वास लेने का प्रयत्न करे | (कोहनी से हाथ और घुटनों से पाव नहीं मोड़ना है)
  2. पाद हस्तासन: आगे से निचे जुक के दोनों हाथो की हथेलिओ को पाव के पंजो के पास जमीं पे टिका दो | सर को घुटनों पे लगा के श्वास को छोड़ो |
  3. अश्व संचालासन: दाया पैर पीछे लो और और दाया घुटन जमीन पे टिका दो | बाया घुटन आगे कर के, बायी जांघों को पीछे से पिंडी को लगा दो | करोड़ रज्जू को एक मोड़ देके ऊपर देख के श्वास को लो |
  4. तुलासन: अब दाया पैर पीछे लो पूरा शरीर एक लाइन में और पर जोड़े हुए | शरीर का जमीं से ३० अंश का कोन, पैरकी उंगलिया और हथेलियो पर पूरा वजन रहेगा श्वास को छोडो |
  5. शशांकासन: घुटनों से पैरो को मोड़ के जमीं पर टिका दीजिये | पैर और हथेलियो की जगह बदले बगेर पीछे एडीओ पे बैठके भाल को जमीं पर टिका दो | पीछे बैठते वक्त श्वास लो, ऐसा करते वक्त भाल को टिकाते वक्त श्वास को छोडो | यह विश्राम की स्थिति है |
  6. अष्टांग प्रनितापाशन:  पैर और हथेली की स्थिति बदले बैगैर श्वास लेके शास्टंग नमस्कार करो | ( दो हाथ,दो पैर,दो घुटन,छाती और भाल ऐसे ८ अवयव इस स्थिति में जमीं को स्पर्श करते है इस लिए स-अस्ट नमस्कार ) पीछे से बेज को उचको ताकि आपका पेट जमीं को छुएगा नहीं, श्वास छोड़ने के बाद थोडा समय रुक जाओ (श्वास छोड़ के उसको लिए बगेर इस स्थिति में रहने की इस स्थिति को ‘बाह्यकुंभक’ कहलाता है )
  7. भुजंगासन: श्वास ले के शरीर को ऊपर उठाओ, सर को एकदम ऊपर उठाके धड को कंधे से ऊपर उठाओ, कम्मर के निचे के हिस्से को जमीं के समान्तर रखके करोड़ रज्जू को भरपूर आकार में रखो और घुटनों को जमीं से ऊपर उठाये रखो |
  8. पर्वतासन: श्वास को छोड़ नितंम्ब को उठाओ और सर को निचे दबाओ | एडी और सर को जमीं पे टिका के रखो | हथेलिओ को जमी पे टिका के रखो |
  9. शशांकासन: श्वास को लेते निचे आईये, और क्रम ५ के मुताबिक विश्राम की स्थिति में रहो | भाल को टिकने के बाद श्वास को छोड़ो |
  10. अश्वसञ्चालसन: श्वास लो और बाया पैर हथेलिओ के बिचमें लाओ | तिन क्रम के अनुसार करोड़ रज्जू को लाकर ऊपर की तरफ देखो |
  11. पादहस्तासन: श्वास को छोड़ के बाया पैर दाये पैर के पास लाईए | सर को क्रम २ के अनुसार घुटनों के बिच में लाईये |
  12. प्रणामसान: श्वास लो उठ के खड़े हो | २-४ श्वास लेके नमस्कार मुद्रा आगे करके सूर्य नमस्कार आगे चालू करो |

(  १० स्थितिओ वाले सूर्य नमस्कार में ५ और ९ की विश्राम की स्थिति टालनी है )

लाभ : ॐ कर ह्र और बीजाक्षर के मंत्रो के विलंबित उच्चार के करके आंखे बंध करके उसमे मन को एकाग्र करने की कोशिश की वजह से दिमाग के अनेक मज्जातंतुओ को उत्तेजना मिलती है | स्वषनसंस्था, पाचन संस्था, रक्ताभिशरण संस्थाओ के मज्जाकेन्द्रों को इस तरह से उत्तेजना मिलने से इस संस्थाओ का कार्य और  आरोग्य में सुधार आ जाता है | सूर्य के अलग-अलग नामो के उचारण से जुड़े मित्रत्व,भक्तिभाव,चापल्य,उत्साह, शक्ति ओर आनंद आदि भावनाओमें इजाफा होता है | आंखे बांध करके उस भावो से मन पर उन भावनाओ पर नियंत्रण रखने का प्रयत्न करना चाहिए |

स्वाभाविक रूप से, मुझे यह क्यों करना है, यह सवाल हमेशा हमारे मन में आ जाता है l कई रोगों का सीधा सम्बन्ध हमारे मन के साथ होता है l ह्रदय रोग, डायबिटीस, अल्सर जैसे कई रोगों को आंतरिक मनोबल से दूर किया जाना शक्य है , और वो आंतरिक बल हमे सूर्यनमस्कार से मिल सकता है l हमारे शरीर की पाचन शक्ति और श्वसन शक्ति पैर भी सूर्यनमस्कार का सीधा असर पड़ता है l सूर्यनमस्कार से हमारे शरीर में ब्लड सर्क्युलेशन सही बनता है, जिनकी वजह से अकाल वृध्वत्व को टाल सकते है और शरीर को तेजवान बना सकते है l शरीर के भीतर आंतरिक चेतना जगाने का काम सूर्यनमस्कार कर सकता है , उसके लिए कोई अन्य साधना की आवश्यकता नहीं है l

भारत में स्वाध्याय कार्य के प्रणेता .पू.पांडुरंग शास्त्रीजी ने सालो पहेले युवानो को सूर्यनमस्कार करने का आह्वान किया और उनके द्वारा प्रस्थापित तत्वज्ञान विद्यापीठ के माध्यम से देश में लाखो युवा वर्ग आज सूर्यनमस्कार कर रहे है l राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ भी अपने तमाम युवाओ को सूर्यनमस्कार करने के लिए आह्वान कर रही है l हमारे देश में योग गुरु के नाम से प्रचलित बाबा रामदेव भी योग और सूर्यनमस्कार को प्राधान्य देते है l इतना ही नहीं , हमारे तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी जी भी देश में युवाओ को योग और सूर्यनमस्कार करने के लिए प्रोत्साहित करते है और आग्रह भी l पांच साल से हमारे देश में योग दिन के नाम से एक प्रवृति भी चालू हुई है l हमारी संस्कृति और हमारे योग को देखकर और पढ़कर, जब विश्व में कई अन्य देश इसको अपना एक अंग बना सकता है तो हमारी ही संस्कृति हम लोग क्यों नहीं अपनाते …? हमारे मुस्लिम भाई अगर रोज पांच बार नमाज पढ़ सकते है तो हम एक बार सूर्यनमस्कार नहीं कर सकते, क्या..? क्या हम अपने आप को स्वस्थ्य रखना नहीं चाहते …?

दोस्तों !.. योग एवं सूर्यनमस्कार एक ऐसा विषय है की, जितना भी ज्ञान ले वो कम है I आज मैंने हमारे रोज-बरोज के जीवन में उपयोगी और हमारे स्वास्थ्य के लिए श्रेष्ठ योग, आसन एवं प्राणायाम के बारे में कुछ जानकारी देने का प्रमाणिक प्रयत्न किया है I अगर हम इसे हमारे जीवन में प्रस्थापित करे तो जीवनभर रोग और डॉक्टर हमसे दूर रहेंगे I इस बात को हमारे प्रधानमंत्री श्री ने देश और दुनिया को समजाया और विश्व के लोगो ने उसे प्रस्थापित किया, वो हम सबके लिए गर्व की बात है I

 

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