मकर संक्रान्ति

भारत के ऋषियों ने बहुत सोच समझ के विज्ञानं को धर्म के साथ जोड़ के उसे उत्सवों का रूप दे दिया और शुष्क इसे मानव जीवन में उत्साह और उमंग भरने का प्रयास करते दिख रहे है। हिंदु धर्म और केलेंडर के अनुसार हमारे हर महीने में कोई न कोई त्यौहार आता दिखाई देता है। त्यौहार ही तो है रोजिंदी मशरूफ जिंदगी में कुछ नया पन लाने का प्रयास करते दिखाई पड़ते है। अंग्रेजी केलेंडर जनवरी के अनुसार 14 जनवरी यानि भारत के हिन्दुओं का बड़ा पर्व यानि मकर संक्रांति। जो सूर्योपासना का महत्व प्रदान करता है। वैसे भी जनवरी में कुदरती सौन्दर्य पुर बहार में खिला होता है। गुलाबी ठंड की भी दस्तक चालू होती ही है। ऐसे मेव रजाई ओढ़े बैठे, सामान्य जन मानस को बहार निकलने के लिए हमारे ऋषियों ने मकर संक्राती का पर्व दिया है। इसी बहाने सब लोग, ठंड से आई आलस को दूर करके घरो से बहार निकलकर प्रकृति का सौंदर्य निहारते इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाते है। वैसे भी संक्रांति का पर्व यह निसर्ग का उत्सव कहलाता है। हिंदु केलेंडर के मुताबिक पोश मास में यह पर्व आता है। हर साल अंग्रेजी केलेंडर के मुताबिक 14 जनवरी को यह पर्व आता है। जो भारत एशिया और नेपाल में भी मनाया जाता है। भारत के लगभग हर राज्य में,  इसे अलग नाम से और अलग तरीके से मनाया जाता है। इस त्यौहार के दिन से सूर्य पृथ्वी की अपनी परिभ्रमण की दिशा बदलता है। सूर्य थोडा उत्तर की तरफ मुड़ता हुआ अपना परिभ्रमण करता है। सूर्य धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश करता है, शायद इसीलिए मकर संक्रांति कहा जाता है। महाभारत के युद्ध के दरमियान अर्जुन के 999 बाण से घायल भीष्म पितामह ने भी अपनी इच्छा मृत्यु के वरदान से अपनी मृत्यु मकर संक्रांति तक रोक दी थी।

वैसे भी ठंड के चार महीने में गर्म कपडे और रजाई से मुक्ति दिलाने के लिए भी यह त्यौहार मनाया जाता है। रबी पाक खेत में आ गया होता है। उसका भी भोग भगवन को लगाकर मानव एक दुसरे में बाट के हर्षोल्लास से यह त्यौहार मनाते है। इसी कारण इस त्यौहार में खेतो में तिल का पाक होता है। गेहू , बेर, गन्ना और बहुत से पाक को एक दुसरे को दे कर इस त्यौहार को मनाते है। सूर्य को नियमितता का प्रतीक माना जाता है। जिस दिन सूर्य का प्रकाश धरती पर सही तरीके से नहीं मिलता उस दिन समग्र मानव जाती अपने निजी जीवनमे शुष्कता का अनुभव करती है। सूर्य अपने उदय और अस्त दोनों से मानव जाती को संदेश देता है। मानवी जीवनमे उसके उदय और अस्त के वक्त उसे भी अपना रंग बदलना नहीं चाहिए। घरका मुखिया, देश का नेता या राजा कैसा होना चाहिए, उसका प्रतिबिंबित करता  है। मुखिया राजा या प्रमुख को कितना जलना या दोड़ना पड़ता है यह भी वह बताता है। उसके जलने से ही पृथ्वी का तापमान सही रहता है। अगर जरा भी तापमान में गिरावट आती है तो ठंड बढती है और बढ़ जाता है तापमान तो गर्मी बढ़ जाती है। कितना कंट्रोल वह अपने आप में रखता होगा तब साडी चीजे संभव हो पति है। समुदर में पानी बढ़ने या घटने की घटना भी सूर्य चन्द्र की स्थिति पर निर्भर होती है।  वैसे भी इस पर्व को अंधकार से उजाले पर विजय का प्रतीक माना जाता है। अन्धकार यानि मृत्यु और उजाला यानि जीवन। मृत्यु से जीवन की तरफ आगे बढने का संदेश देता है मकर संक्रांति का पर्व भारत के ऋषियों ने बहुत सोच समझ के विज्ञानं को धर्म के साथ जोड़ के उसे उत्सवों का रूप दे दिया और शुष्क इसे मानव जीवनमे उत्साह और उमंग भरने का प्रयास करते दिख रहे है। हिंदु धर्म और केलेंडर के अनुसार हमारे हर महीने में कोई न कोई त्यौहार आता दिखाई देता है। त्यौहार ही तो है रोजिंदी मशरूफ जिंदगी में कुछ नया पन लाने का प्रयास करते दिखाई पड़ते है। अंग्रेजी केलेंडर जनवरी के अनुसार 14 जनवरी यानि भारत के हिन्दुओ का बड़ा पर्व यानि मकर संक्रांति। जो सूर्योपासना का महत्व प्रदान करता है। वैसे भी जनवरी में कुदरती सौन्दर्य पुर बहार में खिला होता है। गुलाबी ठंड की  भी  दस्तक चालू होती ही है। ऐसे मेव रजाई ओढ़े बैठे, सामान्य  जन मानस को  बहार निकलने के लिए हमारे ऋषियों ने मकर संक्राती का पर्व दिया है। इसी बहाने सब लोग, ठंड से आई आलस को दूर करके  घरोसे बहार निकलके प्रकृतिका सौंदर्य निहारते इस पर्व को हर्षोल्लास से मनाते है। वैसे भी संक्रांति का पर्व यह निसर्ग का उत्सव कहलाता है। हिंदु केलेंडर के मुताबिक पोश मास में यह पर्व आता है। हर साल अंग्रेजी केलेंडर के मुताबिक 14 जनवरी को यह पर्व आता है। जो भारत एशिया और नेपाल में भी मनाया जाता है। भारत के लगभग  हर राज्य में,  इसे अलग नाम से और अलग तरीके से मनाया जाता है।  इस त्यौहार के दिन से सूर्य पृथ्वी की अपनी परिभ्रमण की दिशा बदलता है।  सूर्य थोडा उत्तर की तरफ मुड़ता हुआ अपना परिभ्रमण करता है। सूर्य धनु राशी से मकर राशी में प्रवेश करता है, शायद इसीलिए मकर संक्रांति कहा जाता है। महाभारत के युध्ह के दरमियान अर्जुन के 999 बाण  से घायल   भीष्म पिता मह ने भी अपनी इच्छा मृत्यु के वरदान से अपनी मृत्यु मकर संक्रांति तक रोक दी थी।

वैसे भी ठंड के चार महीने में गर्म कपडे और रजाई से मुक्ति दिलाने के लिए भी यह त्यौहार मनाया जाता है। रबी पाक खेत में आ गया होता है। उसका भी भोग भगवान को लगाकर मानव एक दुसरे में बाट के हर्षोल्लास से यह त्यौहार मनाते है। इसी कारण इस त्यौहार में खेतो में तिल का पाक होता है। गेहू , बेर, गन्ना और बहुत से पाक को एक दुसरे को दे कर इस त्यौहार को मनाते है। सूर्य को नियमितता का प्रतीक माना जाता है। जिस दिन सूर्य का प्रकाश धरती पर सही तरीके से नहीं मिलता उस दिन समग्र मानव जाती अपने निजी जीवन में शुष्कता का अनुभव करती है। सूर्य अपने उदय और अस्त दोनों से मानव जाती को संदेश देता है। मानवी जीवनमे उसके उदय और अस्त के वक्त उसे भी अपना रंग बदलना नहीं चाहिए। घर का मुखिया, देश का नेता या राजा कैसा होना चाहिए, उसका प्रतिबिंबित करता है। मुखिया राजा या प्रमुख को कितना चलना या दोड़ना पड़ता है यह भी वह बताता है। उसके जलने से ही पृथ्वी का तापमान सही रहता है। अगर जरा भी तापमान में गिरावट आती है तो ठंड बढती है और बढ़ जाता है तापमान तो गर्मी बढ़ जाती है। कितना कंट्रोल वह अपने आप में रखता होगा तब सारी चीजे संभव हो पाति है। समुदर में पानी बढ़ने या घटने की घटना भी सूर्य चन्द्र की स्थिति पर निर्भर होती है।  वैसे भी इस पर्व को अंधकार से उजाले पर विजय का प्रतीक माना जाता है। अन्धकार यानि मृत्यु और उजाला यानि जीवन। मृत्यु से जीवन की तरफ आगे बढने का संदेश देता है मकर संक्रांति का पर्व।

  • संजय राय, “शेरपुरिया”

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