नव वर्ष

नये साल का सबको बेसब्री से इन्तजार रहता है। स्वाभाविक ही है, उस दिन घर में सब कुछ नया होता है। घर की सजावट से लेकर कपडे, खाना अपने अपने देव घरों में जाना। सब में नयापन होता है। नया साल यानि नए संकल्प, नया निर्णय लेने का दिन। अपने उदेश्यों के मार्ग पर पुनः कटिबद्ध होकर चलने का दिन अपने तय किए उदेश्य के मार्ग पर आगे बढ़ने का दिन।

कहते है जिनकी सुबह अच्छी उनका पूरा दिन अच्छा। वैसे ही नए साल की शुरुआत अगर अच्छी हो तो आने वाला पूरा साल भी अच्छा जायेगा।  नए साल के उत्सव के उल्लास के बीच अगर मानव अपने मिले मानव जीवन का भी गंभीरता से सोचने का प्रयास करना चाहिए। जीवन मे गंभीरतापूर्वक सोचना अलग बात है और जीवन में निराशाजनक परिस्थितियो से घिर कर जीवन जीने की इच्छा हिम्मत खो देना यह अलग बात है। जीवन में निश्चितता और केयरलेस होना अलग बात है।

मानवी जीवन में भोग और स्वार्थ युक्त बन रहे जीवन में से उचाईयों की तरफ ले जाने के लिए जीवन में जड़वाद से अभिमुख होर इश्वराभिमुख बनने का प्रयत्न करना चाहिए। जीवन में पुराने रागद्वेष को भुला के नए साल में नवतर प्रयोग करके नवजीवन की नइ प्रेरणा लाने का प्रयास करना चाहिए। यह सब करने के लिए जीवन में हमेशा नया उत्साह और आशा का संचार करते हुए नित्य युवा बनने का संदेश देनेवाला बने यही प्रयत्न करना चाहिए।

मानस शास्त्रीय दृष्टिकोण से कहते है जीवन में first impression is last impression. यानि अगर मनमे किसी भी चीज या वस्तुओं की छाप अगर सकारात्मक पड़ती है तो वह काम करने का मजा आता है|

भारतीय नव वर्ष यहा उसकी कोम्युनिटी के हिसाब से अलग अलग मनाया जाता है। हिंदू नव वर्ष और विक्रमादित्य के केलेंडर के अनुसार, हिंदू नव वर्ष प्रतिवर्ष चैत्र महीने की प्रतिपदा को मनाया जाता है।  उसे मराठी में चैत्री पडवा कहते है। तमिलनाडु और केरल में 13 और 14 अप्रेल को नया साल मनाया जाता है। आंध्रप्रदेश में उसी को उगादी के रुप में मनाते है। जब की पंजाब में मार्च महीने में बैशाखी के रूप में मनाते है। जब की कश्मीर में नवरेह के रुप में मनाया जाता है | सिंधी चेटीचंद के रुप में मनाते है। जब की गुजराती और मारवाड़ी अपना नया साल दीवाली के दूसरे दिन यानि बलि प्रतिपदा या गोवर्धन पूजा के दिन मनाते है। बंगाल में भी इसी तिथि के आस पास तमिल नव वर्ष मनाया जाता है।

नया वर्ष यानि कुछ नया करने का दिन। समाज में पल रही गलत विचार धारा और प्रणाली का बदलाव लाने का दिन। जड़वाद से चैतन्यता की बढ़ने का दिन। शायद इस वजह से बलिप्रतिपदा या गोवर्धन पूजा के दिन नया साल मनाना यानि, कृष्ण के कहने से वृंदावन में सभी गोवालो ने अपनी सालो से चली आ रही इन्द्रपुजा को छोड़ गोवर्धन पूजा शुरू कर दी थी।   इसी दिन दीवाली से पहले खेतो में से आया नया धान भगवान को,  छप्पन भोग चढ़ा कर नए साल की शुरुआत की जाती है। समाज में केवल श्रीमंत लोगो को ही नहीं किंतु हमारे काम आने वाले हर इंसान का संमान करने का दिन। उस दिन लोग प्रात जल्दी उठ के, नहा धोकर नए वस्त्र धारण कर भगवान के मंदिरों में दर्शन हेतु जाते है। अपने घर के बहार ध्वजा पताका, तोरण, रंगोली करके आँगन और घर दोनों ही सजाते है। दिन भर सभी जगह चहलकदमी रहती है। बहुत सी जगह धार्मिक कार्यकम का आयोजन होता है। घर के मदिर में भी देव स्थानों का फुल हार और फलो से पूजन होता है। साथ में मिलकर सब मिष्टान करते है। ऐसे अपना और परिवार का पूरा दिन आनंद और उत्साह से व्यतीत करते है। नए साल में भगवान के दर पे माथा टेक के अपने दिन की शुरुआत होती है, तभी पूरा साल अच्छा और आनंदित होके व्यतीत होता है।

  • संजय राय, “शेरपुरिया”

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