सामान्यतः लोग कहते हैं कि जीवन में आगे बढ़ने के लिए या सफलता पाने के लिए, हमारे पास एक तो पैसा (Money) चाहिए और दूसरा प्रतिभा (Talent) चाहिए। इसमें भी सभी की अलग-अलग राय देखने को मिलती है। कई लोग कहते हैं कि पैसा नहीं होगा तो चलेगा लेकिन प्रतिभा या कौशल तो चाहिए ही चाहिए और कई लोग यह कहते हैं कि, प्रतिभा चाहे कितनी भी हो लेकिन पैसों के बिना नहीं चल सकती। लेकिन व्यक्ति के पास यह दोनों चीजे, पैसा और प्रतिभा न हो तो भी चलेगा, अगर उसने अपने भीतर की चीजों का सही रूपांतरण कर लिया, तो यह भीतर की चीजें हमारे मूलभूत भारतीय संस्कार पर आधारित है, जो हर व्यक्ति के भीतर जन्म के साथ होती है, लेकिन उसमैं से 5-10» लोग ही उसका सही रूपांतरण करके जीवन जीते हैं, और वहीं लोग समाज के सबसे सफल लोग कहे जाते हैं।
हमारे भारतीय संस्कृति के दस अवतार हैं। भगवान श्री राम, श्रीकृष्ण, बुद्ध और महावीर उन्होंने अपने निजी गुणों के द्वारा ही तो अपना जीवन जिया, जो आज भी करोड़ों लोगों के प्रेरणा स्वरूप हैं। तो फिर प्रश्न यह उठता है कि यह भीतरी चीजे क्या है और उसका रूपांतरण कैसे करना है। एक सफल व्यावसायिक बनने, एक सफल पिता बनने या एक सफल मनुष्य बनने के लिए हमारे भीतर की चीजाें का सबसे ज्यादा महत्त्व होता है हमारे नैतिक सिद्धांतो का, मतलब नैतिकता (Ethics), प्रामाणिकता (Authenticity), ईमानदारी (Honesty)। यह सब बातें सीखने के लिए विश्व में कोई स्कूल या कॉलेज नहीं है, क्योंकि यह बातें व्यक्ति के भीतर ही होती हैं, जिसे वह अपने निजी संस्कारों के द्वारा ही अपने जीवन में ला सकता है। हमारे पास कितनी भी बड़ी डिग्री हो, कितना भी ज्यादा अनुभव हो, कितना भी ज्यादा पैसा हो। लेकिन अगर नैतिकता और प्रामाणिकता नहीं है तो, यह सब कुछ किसी काम का नहीं रहता और जीवन में कभी भी हमें नीचे गिरने में देर नहीं लगती। व्यक्ति अगर संस्कारों से साफ-सुथरा है तो लोग बाकि के अवगुणों को नजर अंदाज कर सकते हैं। इसका उदाहरण है देश के पहले गृह मंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल, पूर्व दिवंगत प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व दिवंगत राष्ट्रपति डॉ- अब्दुल कलाम और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी का नाम लेते हुए लोग थकते नहीं। इसका मुख्य कारण यहीं हैं कि इन सभी लोगों ने अपनी छवि हमेशा ही साफ-सुथरी रखी। कोई भी कह नहीं सकता कि उन्होंने एक पैसे कि भी गड़बड़ी कि हो या कोई भी गलत काम किया, किसी रिश्तेदार को अपने ओहदे से लाभ करवाया।
पुराने जमाने में हमारे ऋषि मुनियों का महत्त्व बहुत ज्यादा रहता था, राजा स्वयं अपने राज्य में उनको नमस्कार किये बिना और उनकी आज्ञा के बिना राज्य नहीं करता था, उसका कारण यही है कि हमारे ऋषि मुनियों ने अपने भीतर की सभी चीजों का सही रूपांतरण किया हुआ था और इसलिए उनके शब्दों को प्रमाण माना जाता था। यह बातें हमारे जीवन में लाने के लिए कठिन भी है और सरल भी, निर्भर उस पर है कि हमारे देखने का नजरिया कैसा है। लेकिन एक बात निश्चित है कि अगर हमने इन बातों को अपने जीवन में साकार कर लिया, तो पैसा और प्रतिभा का कोई मूल्य नहीं। वो सब अपने-आप ही आ जाएगा।
भीतर की चीजों की दूसरी बात है हमारी अभिवृत्ति (।Attitude)। हमारे पास कुछ भी हो लेकिन अगर हमारी अभिवृत्ति सही नहीं है तो, कोई भी चीज ज्यादा देर रह नहीं सकती। आज ज्यादातर लोग नकारात्मक विचार के हो गए हैं, काम शुरू करने से पहले ही सोचने लगते है कि यह काम तो मेरे लिए मुश्किल होगा। अब यह अधिगम सीखने के लिए हम कौन से कॉलेज में जाएंगे?— कौन सी यूनिवर्सिटी हमें सकारात्मक सोच करने के लिए सिखाएंगी?—कोई भी नहीं। यह बातें हमारे भीतर ही है, जिसे हमें बाहर निकालकर उसका सही दिशा में रूपांतरण करना पड़ेगा। हम इस बात को समाज के भीतर आसानी से महसूस कर सकते हैं। कई लोग ऐसे होते हैं कि हम उनके पास जाने के लिए डरते हैं, क्याेंकि उनका अभिगम ठीक नहीं होता। कितना भी कौशल हो, कितनी भी प्रतिभा हो, कितना भी पैसा हो, लेकिन अगर अभिगम ठीक नहीं है तो लोग पास नहीं आयेंगे। भीतर की चीजों की तीसरी बात है हमारी भाषा, हमारी गतिविधि, जिसे हम अंग्रेजी में बॉडी लेंग्वेज (Body Language) कहते हैं। कैसे बोलना है, क्या विचार करना करना है, विचारों को प्रदर्शित कैसे करना है, कैसे हंसना है, इन सभी सवालों का जवाब हमारे भीतर ही उपलब्ध है। हमें ही तय करना होगा कि हमारी गतिविधि कैसी होनी चाहिए, हमारे हावभाव कैसे होने चाहिए, हमें कैसे मुस्कुराता हुआ रखना चाहिए। हमारी जितनी बॉडी लेंग्वेज अच्छी रहेगी, उतना ही हम जीवन में ज्यादा सफल बन पाते हैं। क्याेंकि आज जमाना दिखावे यानी प्रस्तुतीकरण का है। शेर जंगल का सबसे ताकतवर जानवर नहीं है, फिर भी वो जंगल का राजा कहलाता है, उसका कारण एक ही है उसका प्रस्तुतीकरण। उसकी दहाड़ ही सभी जानवरों में कम्पन ला देती है, उसकी चाल ही जंगल में विशिष्ट है। इसीलिए हमें भी इस बात को ध्यान में रखकर जब हम अपनी बॉडी लेंग्वेज को सही करेंगे तो हमारा प्रभाव भी बना रहेगा और दुनिया भी सलाम जरूर करेगी।
भीतर की चीजों की चौथी बात है, सीखने का हुनर और तैयारी करने की हौंसला। आज व्यक्ति थोड़ा-बहुत पढ़ लेता है तो उसे लगता है की विश्व का सर्वश्रेष्ठ ज्ञानी हूँ, थोडा सा ज्यादा पैसा आ जाता है तो लोग अपने-आप को श्रेष्ठ गिनने लगते हैं। लेकिन सीखते रहने का हुन्नर व्यक्ति के जीवन में होना बहुत जरूरी है। व्यक्ति कभी भी सर्व गुण संपन्न नहीं होता, हर व्यक्ति में कोई न कोई कमी जरूर होती है और इसलिए उन्हें सीखते रहने के गन को अपने जीवन में लाना जरूरी है। पूर्व राष्ट्रपति और भारत रत्न, डॉ- अब्दुल कलाम एक बार अपने वक्तव्य में कहा था कि, आज मैं एक शिक्षक तो हूँ ही, लेकिन एक अच्छा शिक्षार्थी भी हूँ, आज भी मैं नई-नई चीजें सीखने का आग्रह रखता हूँ । इसका मतलब यह है कि सीखने की कोई उम्र नहीं होती, व्यक्ति को जीवन पर्यंत सीखने की कला भूलनी नहीं चाहिए। यह सीख हमें कोई अच्छे पुस्तक से मिल सकती है, अपने साथ काम करने वाले कोई व्यक्ति से मिल सकती है, अपने बॉस से या अपने नीचे काम करने वाले व्यक्ति से भी मिल सकती है, धर्म और अध्यात्म से मिल सकती है, अच्छे गुरु से मिल सकती है। हम कोई सम्पूर्ण व्यक्ति नहीं है, इसलिए हमें जीवन पर्यंत किसी न किसी से, कुछ न कुछ सीखते रहना चाहिए। सीखने के इस गुण के साथ हमारे भीतर किसी काम के लिए पूर्व-तैयारी (Pre-Preparation) करने की भी आदत होनी जरूरी है। आज के जमाने में हर किसी को सभी चीजें तैयार चाहिए।
भीतर के चीजों की पांचवीं बात है हमारा चरित्र और एक अच्छे सुनने वाला व्यक्तित्व। चरित्र का मनुष्य जीवन में बहुत ज्यादा महत्त्व है । हमने अगर एक बार अपनी इज्जत/चरित्र खो दी तो जिन्दगी भर बहुत कुछ भुगतना पड़ता है। विश्व भर में ऐसे बहुत से ऐसे जाने-माने व्यक्ति है जो मामूली सी गलती कि वजह से अपने चरित्र का ध्यान नहीं रहते और इसकी वजह से वह अपनी पद-प्रतिष्ठा से नीचे गिर जाते हैं। इसलिए हमें अपने जीवन में चरित्र शुद्ध और सात्विक रखने के साथ हमें अपने जीवन में दूसरों को सुनने की आदत भी डालनी चाहिए। भीतर की चीजों में ध्यान रखने वाली एक और जरूरी बात है कि, हमें सुबह में एक निर्धारित लक्ष्य के साथ और सुबह जल्दी उठना है, अपने-आपको प्यार करना है, अपने से बात करनी है और हमें मिली हर चीज के लिए भगवान का शुक्रिया अदा (Thank you) करना है। पहले जमाने के लोग सुबह चार बजे उठते थे और अपने से छोटे लोगों को भी सुबह जल्दी उठने के फायदे बता कर ऐसा करने कि सलाह देते थे। लेकिन आज कि युवा पीढ़ी इसे पुराने जमाने की सोच मानती है और रात के 12-01 बजे तक जगकर फेसबुक और वाट्सअप चौटिंग करने में ही अपनी भलाई समझती है। लेकिन अगर सफलता का स्वाद चखना है तो आज कि युवा पीढ़ी को अपनी इस आदत को बदलना पड़ेगा और दूसरी महत्वपूर्ण बात कि जो व्यक्ति खुद को प्यार नहीं करता। वो किसी और को भी प्यार नहीं कर सकता। हमें अपने स्वास्थ्य, अपने मन, अपनी बुद्धि का ख्याल रखना चाहिए। हर रोज अपने-आप को आईने में देखकर अपने से बात करनी चाहिए। जब तक हम अपने-आप को श्रेष्ठ नहीं समझेंगे, हम उस राह पर चल भी नहीं सकेंगे।
हमें अपने-आप को हमेशा हर परिस्थिति में आगे बढ़ने के लिए तैयार और मजबूत रखना चाहिए, क्याेंकि जो व्यक्ति एक जगह चिपक कर बैठा जाता है, वो तरक्की नहीं कर सकता और दूसरो का भला भी नहीं कर सकता। भगवद् गीता में भी कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपने स्थान के प्रति ममत्व नहीं रखना चाहिए। एक बार एक गाँव में गुरु नानक देव गए हुए थे, और सारा गाँव उनको नमस्कार करने के लिए आता था। तब गुरु नानक देव हर अच्छे इंसान को फ्उजड़ जाओय् और हर बुरे व्यक्ति को फ्बसे रहोय् का आशीर्वाद दे रहे थे। किसी ने पूछा कि, गुरूजी यह क्या बात हुई?— आप अच्छे लोगों को उजड़ जाने की और बुरे लोगों को बसे रहने की बात क्यों कर रहे हैं?— तब उन्होंने कहा कि, भलाई जितनी बंटे उतनी अच्छी होती है और बुराई जितनी उधर ही रहे वो जरूरी है। अच्छे लोग यहाँ से उठ कर बाहर जाएंगे तो,ओर कितने सारे लोगों का भला होगा और बुरे लोग यहाँ पर बसे रहेंगे तो उनकी बुराई बाहर दूसरे लोगों के पास नहीं जायेगी। अर्थात अगर जीवन में सफलता पानी है तो एक जगह पर ही रहने की आस नहीं रखनी चाहिए। भगवान राम और कृष्ण भी जगह-जगह घूमे, हमारे ऋषि मुनि भी गाँव-गाँव घूमते रहते हैं और इसलिए ही समाज का कल्याण होता है। भीतर की चीजों में सही रूपांतरण करने में हम समय की कीमत (value of time) और नियमितता (Regularity) को कभी भी भूल नहीं सकते, क्याेंकि व्यक्ति के आगे बढ़ने में यह दोनों बातों का बहुत महत्त्व है। जो व्यक्ति समय की कद्र नहीं करता, समय उसकी कद्र कभी नहीं करता।’’ इसके साथ ही हमें अपनी हर बात में नियमितता रखनी चाहिए क्याेंकि नियमित जीवन ही व्यक्ति के प्रगति का रास्ता है।
इसके साथ ही जीवन में कर्म भी करने होते हैं, वहि कर्म मनुष्य जीवन के लिए श्रेष्ठ है। कर्म किये बगैर कुछ भी मिलता नहीं और किया हुआ कर्म कभी व्यर्थ जाता नहीं, यह भगवद् गीता का सन्देश है इसलिए हर किसी को अविरत अपने जीवन में कर्म करते रहना है। असफलता ही सफलता की निश्चित राह है, इसलिए असफलता मिलने पर निराश होने के बदले और अधिक एवं अच्छा प्रयत्न करके कार्य को आगे बढ़ना है, जो हमें सफलता की मंजिल पर ले जायेगा। कर्म में दूसरी बात यह है कि हमें हमारे कार्य के प्रति प्यार होना (love for work) बहुत जरूरी है। जो व्यक्ति अपने कार्य को प्यार करता है वो उस कार्य को श्रेष्ठ तरीके से कर सकता है। उतना ही नहीं लेकिन हम जो कार्य कर रहे है, उसको अपेक्षा से ज्यादा (more than expected) करने की कोशिश करनी है। कर्म के सिद्धांतो को अगर हमने जीवन में साकार कर लिया तो जीवन धन्य बन जाएगा और सफलता कदम चूमेगी। यह सभी बातें किसी भी स्कूल कॉलेज में सिखाई नहीं जाती। यह बातें हमारे भीतर ही हैं, उसे हमें खुद ही बाहर निकालकर बदलना पड़ेगा। कई बार भीतर की चीजों का रूपांतरण करने में हमारे माँ-बाप, गुरु, मित्र का सहयोग भी मिल सकता है, लेकिन दूसरा कोई भी व्यक्ति हमें सिर्फ सलाह दे सकता है, उस राह पर चलने का प्रयत्न हमारा ही होना चाहिए।…..