विश्वामित्र

हमारे सप्तऋषियों में एक माने जाने वाले ऐसे एक ऋषि मुनि यानि महर्षि विश्वामित्र। उन्हें राजर्षि भी कहा जाता है क्योंकि वे राजा के पुत्र थे। वैसे विश्वामित्र महर्षि वशिष्ठ के समकालीन थे। दोनों में राज्य और जनसत्ता को लेकर बहुत झगडे़ हुआ करते थे। विश्वामित्र का राज्य मिल्ट्री शासन था। जबकि वशिष्ठ का राज्य स्वयं शासित था। जिसके मूलभूत में ही जहां भिन्नता हो वहां यह बात स्वाभाविक थी। मिल्ट्री राज्य में न्याय के डंडे से प्रजा को जल्दी सीधा किया जा सकता है। वहां लोकतांत्रिक समाज में जनमानस को उस ओर मोड़ना बहुत ही कठिन कार्य होता है। उन दोनों के राज्य भी अगल-बगल में ही होने के कारण यह झगड़ा सहज था। स्वयं शासित का मतलब अपनी जिम्मेदारी स्वयं समाज के सामने से उठाया हुआ कार्य। फिर रात को बारह बजे भी गाड़ी लेकर निकले और रेड लाईट दिखे तो बिना पुलिस के भी अपने आप नियम से चलना यह होता है। समाज हो या घर अगर बंदा अपना फर्ज इमानदारी से निभाए तो फिर उसे अपना हक मांगने की जरूरत नहीं पड़ती। वह अपने आप मिल जाता है। और एक मुख्य बात थी उन दोनों में की विश्वामित्र राजा के पुत्र थे जब की विशिष्ठ ब्राह्मण के पुत्र थे। इस वजह से जिन्स का गुणानुवाद तो होना ही था। फिर भी विश्वामित्र ने अपने कर्तुत्व से सप्तर्षियो में स्थान पा ही लिया था।

उस काल में गाधीराजा का बहुत ही प्रभावशाली राज्य हुआ करता था। उनके राज्य में प्रजा सब सुख उपभोग करती थी। राजा भी बड़ा कर्तुत्ववान और न्यायप्रिय था। किंतु उनको कोई अपत्य नहीं था। तब राजा ने अपत्य के लिए सोमयज्ञ किया। उसके प्रसाद से उनके यहां एक पुत्री का जन्म हुआ। जिसका नाम सत्यवती रखा गया। यज्ञ के प्रसाद के कारण उसका सौंदर्य लोकोत्तर था। बुद्धिमान और गुणवान वो थी। अपने सौंदर्य को लेकर उनको अस्मिता थी लेकिन अभिमान नहीं था। लेकिन ऐसी त्रैलोक्य सुंदरी ऋचीक ऋषि को देख के उसके प्यार में दीवानी हो गई। ऋचीक भी उनके सौंदर्य के आगे अपने बूढी और कर्तुत्व से हाथ निचे रख दिए। वह उससे शादी करने हेतु सीधा गाधीराज के पास आ गए और उन्होंने सत्यवती का हाथ मांग लिया। सीधा मना नहीं कर सकते थे इसलिए उन्होंने शादी के लिए एक शर्त रखी, जहां एक ऐसा घोडा भी बहुत मुश्किल से मिलता है वह उन्होंने दुर्मिळ ऐसे एक हजार श्यामकर्ण घोडे उन्होंने उनको लाकर देने को कहा। ऋचीक बुद्धिमान के साथ कर्तुत्ववान भी थे उन्होंने आज के उत्तराखंड और गढ़वाल में लोगों का जीवन उन्नत हो इसलिए बहुत काम किया था। वह वहां गए और वहा के लोगों ने उनको ऐसे एक हजार घोड़े इकठ्ठा करके दे दिए। फिर तो सत्यवती और ऋचीक की शादी हो गई। लेकिन सत्यवती से उन्होंने उपभोग के लिए शादी नहीं की थी। वह तो सौंदर्य के उपासक थे। इसलिए दोनों में संसारिक मतभेद हुआ करते थे। वो वक्त डिवोर्स लेने का नहीं था। एक दिन सत्यवती ने अपने पति से एक अपत्य के लिए मांग की। और वो मान गए। सत्यवती ने यह बात अपनी मां को जाकर बताई। वह बोली हमारे बीच एक बात का जगडा था और वो अब खत्म हो गया है। तब उसकी माँ ने कहा तेरा भी कोई भाई नहीं है, तू अपने पति से मेरे लिए भी एक अपत्य मांग ले। सत्यवती ने यह बात ऋचीक को बताई तब उन्होंने उसके लिए भी हामी भर दी। उन्होंने मंत्र शक्ति से दो घड़े तैयार किए। सत्यवती के पिता क्षत्रिय थे तो उनकी राणी के लिए क्षात्र तेज से भरपूर और अपनी पत्नी के लिए ब्रह्म तेज से भरपूर ऐसे दो घड़े बनवाए और वो सत्यवती को दे दिए। सत्यवती वो दोनों घड़े लेकर अपनी माँ के पास आई और उसने माँ को दोनों घड़े दिखाए। तब उनकी माँ ने मन में सोचा ऋचीक बहुत ही बुद्धिमान और कर्तुत्ववान है तो उसने अपने लिए बनवाया हुआ घड़ा ज्यादा श्रेष्ठ होगा। उन्होंने सत्यवती से उसका घडा बदलवा लिया और इसके कारण सत्यवती के यहां क्षात्र तेज से युक्त और उसके पिता गाधीराज के यहा ब्रह्म तेज से युक्त संतान हुई। जो क्रमशः विश्वामित्र और जमदग्नि के नाम से जाने गए। यानि यह दोनों ऋषि मामा भांजे थे।

विश्वामित्र और वशिष्ठ दोनों के राज्यों में मूलभूत अंतर यह था की मिल्ट्री में पगार पर काम करने वाले सैनिक थे जब की वशिष्ठ के यहा अपने राज्य को केंद्र में रखकर देश भक्त सैनिक थे। इस कारण दोनों राज्यों मूलभूत दृष्टड्ढा फर्क था जो विश्वामित्र को नहीं भाता था। उन्होंने वशिष्ठ को हराने के लिए बहुत कोशिशें की लेकिन हर बार देश भक्ति के आगे भाड़े के टटूओं को हार का सामना करना पड़ा। एक बार विश्वामित्र ने मेनका को देखा और उसकी तरफ आकृष्ट हो गए उनकी संतान यानि शकुंतला। लेकिन वह भी भक्ति और तपसे (जो दुसरों को निचा दिखाने और हराने के लिए प्राप्त की हो ऐसी) पाई शक्ति क्षीण हो गई तब उनको अहसास हुआ। और सोचने लगे मेरी शक्ति एक स्त्री में खत्म हो गई। तभी वह मेनका को छोड़ जाने लगे, तब मेनका ने उन्हें कहा अगर आप मुझे छोड़ सकते है तो मै भी शकुंतला को छोड़ के जा रही हूँ। उसी शकुंतला का पुत्र हुआ भरत, जिसके नाम से हमारे हिंद का नाम भारत हुआ। विश्वामित्र ने कौशिकी नदी के किनारे बहुत ही काम किया था और वहा उन्होंने कर्तुत्ववान समाज निर्माण किया वशिष्ठ के साथ उनका जो सैद्धांतिक झगड़ा था वह आपस में ज्ञान पूर्ण तरीके से सुलझा लिया। दोनों समकालीन थे दोनों बुद्धिमान और कर्तुत्ववान और समाज की उन्नति के लिए काम करने वाले ऐसे ऋषि मुनि थे। समाज को उन्नतिशील बनाने में दोनों ने बहुत काम किया है और ऐसे कर्तुत्ववान समाज में ऐसे काम करने वाले लाखों लोग निर्माण किए जिन्होंने इस परंपरा को आगे बढ़ाया। धन्य है ऐसे भारत के सप्तर्षियों को जिन्होंने इस धरा को सुजलाम सुफलाम बनाने के लिए दिन रात मेहनत की थी। ताकि हमारी संस्कृति और वेदों का गान यू हीं आगे बिना रुके बढ़ता रहे। दोनों ने भगवान राम के जीवन में भी बहुत महत्वपूर्ण भूमिकाएं निभाई है।

-संजय राय

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