भारतीय आई.टी. उद्योग के बादशाह और करोडो की सम्पति दान करने वाले देश के बिल गेट्स ….. अजीम प्रेम जी

दुनिया के सबसे महान उद्योगपतियों में से एक अज़ीम प्रेमजी  भारत में जन्मे
एक ऐसे उद्योगपति है,जिनका नाम पूरी दुनिया में आदर और सम्मान के साथ लिया
जाता है। भारत की तीसरी सबसे बड़ी आईटी कम्पनी के संस्थापक अज़ीम प्रेमजी का
जन्म 24 जुलाई,1945 को मुंबई के एक मुस्लिम परिवार में हुआ था। उनके पूर्वज
गुजरात के कच्छ के निवासी थे। एक व्यापारिक परिवार में जन्मे अज़ीम प्रेमजी
का पूरा नाम अज़ीम हाशीम प्रेमजी है। उनके पिता हाशीम प्रेमजी एक जाने
माने व्यवसायी  थे,जो राइस किंग ऑफ बर्मा’ के नाम से मशहूर थे। हाशीम
प्रेमजी ने साल 1945 में  महाराष्ट्र के जलगाँव  जिले में ‘वेस्टर्न इंडियन
वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ की स्थापना की। यह कंपनी ‘सनफ्लावर वनस्पति’
और कपड़े धोने के साबुन ‘787’ का निर्माण करती थी। साल 1947 में  जब
भारत-पाकिस्तान का  विभाजन हुआ तब मोहम्मद अली जिन्नाह ने अज़ीम के पिता
यानी की मोहम्मद हाशीम प्रेमजी को पाकिस्तान आने के लिए आमंत्रित किया,
लेकिन  हाशीम प्रेमजी ने जिन्नाह के इस आमंत्रण को ठुकरा दिया और भारत में
ही रहने का फैसला किया। साल 1966 में हाशीम प्रेमजी का निधन हो गया। उस समय
अज़ीम प्रेमजी स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, यूएसए से इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग
की पढ़ाई कर रहे थे। पिता के निधन की खबर जैसे ही अज़ीम प्रेमजी को पता चली
वह सब कुछ छोड़कर उसी समय भारत आ गए और अपने पिता के द्वारा खड़ी की गई कंपनी
‘वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ की कमान संभाली। उस समय
प्रेमजी मात्र 21 साल के थे। प्रेमजी इस कंपनी को उंचाइयों पर पहुंचाने के
लिए दिन- रात कड़ी मेहनत और संघर्ष कर रहे थे और धीरे- धीरे इसमें कामयाब भी
हो रहे थे। लेकिन बाद में उन्होंने कंपनी में साबुन के काम को बंद कर दिया
और कंपनी को बेकरी वसा, जातीय घटक आधारित टॉयलेटरीज , हेयर केयर साबुन,
बेबी टॉयलेटरीज, लाइटिंग उत्पाद और हाइड्रोलिक सिलेंडर में विविधता प्रदान
की।कई सालों तक सफलतापूर्वक बिजनेस चलाने के बाद भी अज़ीम प्रेमजी संतुष्ट
नहीं थे। वह कुछ नया,कुछ अलग और कुछ खास करना चाहते थे। साल 1980 का दौर
अज़ीम प्रेमजी के लिए बहुत महत्वपूर्ण रहा ।1980 के दशक में ही युवा
व्यवसायी अज़ीम प्रेमजी ने उभरते हुए इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के महत्व और
अवसर को पहचाना और कंपनी का नाम बदलकर विप्रो कर दिया। उस समय भारत में
आई.बी.एम. के निष्कासन से देश में  आई.टी. के क्षेत्र में एक ख़ालीपन आ गया
था जिसका भरपूर फायदा अज़ीम प्रेमजी ने उठाया और अमेरिका के सेंटिनल
कंप्यूटर कार्पोरेशन के साथ मिलकर मिनी-कंप्यूटर बनाने की प्रक्रिया
प्रारम्भ कर दी। इस प्रकार उन्होंने साबुन के स्थान पर आई.टी. क्षेत्र पर
ध्यान केन्द्रित किया और आगे चलकर इस क्षेत्र में भारतीय आईटी उद्योग के
बादशाह के रूप में अपनी पहचान बनाई। प्रेमजी ने जब अपने इस नए काम को शुरू
किया तो उस समय भारत में कंप्यूटर की शुरुआत हो रही थी और उन्हें महसूस हुआ
कि भविष्य में कंप्यूटर लोगों के काम करने के तरीकों में एक बड़ा और
क्रांतिकारी बदलाव ला सकती है।  शुरुआत में प्रेमजी ने हार्डवेयर और
सॉफ्टवेयर दोनों पर ध्यान केंद्रित किया। लेकिन बाद में उन्होंने हार्डवेयर
पर से ध्यान हटाकर सॉफ्टवेयर पर केंद्रित किया। आज विप्रो देश की तीसरी
सबसे बड़ी आईटी कंपनी है। इस कंपनी ने  देश में आईटी के क्षेत्र में युवा
पीढ़ी के लिए न सिर्फ रोज़गार के रास्ते खोले ,बल्कि उन्हें आगे बढ़ने का अवसर
भी दिया।  साल 2001 में उन्होंने ‘अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ की स्थापना की।
यह एक गैर लाभकारी संगठन है जिसका उद्देश्य  गुणवत्तायुक्त सार्वभौमिक
शिक्षा जो एक न्यायसंगत, निष्पक्ष, मानवीय और संवहनीय समाज की स्थापना करना
है। यह फाउंडेशन  भारत के लगभग 13 लाख सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा
के क्षेत्र में प्रगति के लिए काम करता है। इसके साथ ही साल 2010 में
प्रेमजी के अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन ने   अज़ीम प्रेमजी यूनिवर्सिटी की
स्थापना की। यह नॉट-फॉर-प्रॉफिट वेंचर है। जिसकी स्थापना कर्नाटक विधान सभा
के एक अधिनियम के तहत शिक्षा और विकास पेशेवरों के विकास के लिए कार्यक्रम
चलाने, शैक्षिणिक परिवर्तन के लिए वैकल्पिक मॉडल प्रदान करने और शैक्षिक
सोच की सीमाओं को लगातार बढ़ाने के लिए शैक्षिक अनुसंधान में निवेश करने के
लिए भी की गई थी। अज़ीम प्रेमजी द्वारा देश में शिक्षा को लेकर किये गए
उनके इन कार्यों के लिए उन्हें काफी सराहा गया। वह देश के सबसे बड़े  दानवीर
एवं परोपकारी व्यक्तियों में से एक माने जाते है।   अज़ीम प्रेमजी  वॉरेन
एडवर्ड बफेट और बिल गेट्स द्वारा प्रारंभ किये गए अभियान  ‘द गिविंग प्लेज’
का भी हिस्सा भी है। यह एक ऐसा अभियान है जो दुनिया के सबसे धनी व्यक्तियों
को अपनी  संपत्ति का ज्यादातर हिस्सा  समाज कल्याण के लिए दान करने के लिए
प्रोत्साहित करता है। अज़ीम प्रेमजी इसमें शामिल होने वाले पहले भारतीय
हैं। बिजनेस  वीक ने प्रेमजी को महानतम उद्यमियों में से एक माना और
स्वीकार किया कि विप्रो दुनिया की सबसे तेजी से आगे बढ़ने वाली कंपनियों में
से एक है।साल 2000 में अज़ीम प्रेमजी को  मणिपाल अकादमी द्वारा डॉक्टरेट की
उपाधि से सम्मानित किया गया।वहीं साल  2005 में भारत सरकार ने  उन्हें
ट्रेड एंड कॉमर्स के क्षेत्र में उत्कृष्ट कार्य के लिये पद्म भूषण और साल
2011 में पद्म विभूषण पुरस्कार से सम्मानित किया।साल 2006 में ‘राष्ट्रीय
औद्योगिक इंजीनियरिंग संस्थान, मुंबई, द्वारा उन्हें लक्ष्य बिजनेस विजनरी
एवं साल 2009 में कनेक्टिकट स्थित मिडलटाउन के वेस्लेयान विश्वविद्यालय
द्वारा उनके उत्कृष्ट लोकोपकारी कार्यों के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से
सम्मानित किया गया। इसके अलावा भी प्रेमजी को अनगिनत पुरस्कारों से
सम्मानित किया जा चुका हैं।
अज़ीम प्रेमजी की निजी जिंदगी की बात करे तो उन्होंने यास्मीन से शादी की
है और उनके दो बच्चे रिशद और तारिक है। प्रेमजी को देश का बिल गेट्स कहा
जाता है। उन्होंने अपनी निजी संपत्ति में से 25 प्रतिशत से ज्यादा पहले ही
दान कर दिया है। इसके अलावा वह अपनी 18% हिस्सेदारी विप्रो में और 1.45 लाख
करोड़ रुपये अज़ीम प्रेमजी फाउंडेशन को दान कर चुके हैं।देश की दिग्गज आईटी
कंपनियों में शुमार विप्रो के संस्थापक और एग्जिक्यूटिव चेयरमैन व प्रबंध
निदेशक अज़ीम प्रेमजी ने लगभग चार दशकों तक विविधता के माध्यम से विप्रो को
सफलता की उचाईयों पर पहुंचाने के बाद 30 जुलाई, 2019 को रिटायर हो गए ।
अज़ीम प्रेमजी के बाद यह पद उनके बेटे रिशद प्रेमजी को मिला है।फिरहाल
विप्रो आईटी के अलावा एफएमसीजी और हेल्थकेयर जैसे सेक्टर में भी कार्य कर
रही है।
दुनिया के सबसे आमिर और प्रभावशाली लोगों की लिस्ट में शुमार अज़ीम
प्रेमजी के बारे में यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि उन्होंने देश को
आईटी सेक्टर में पहचान दिलाने के साथ -साथ देश के विकास में महत्वपूर्ण
भूमिका निभाई है और विश्व पटल पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है।

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