भगवान राम (सप्तम अवतार)

भगवान विष्णु के दस अवतारों में से आज हम पूर्ण मानव अवतारों में से तीसरा और दस अवतारों में से सातवां अवतार यानि सभी के रुदय सम्राट ऐसे भगवान राम। कहते है काल सबका रस छीन लेता है। किंतु भारतीय वैदिक शास्त्रें के अनुसार भगवान के दस अवतारों में से राम और कृष्ण अवतार ऐसे है जिनको काल भी मिटा नहीं सका है। आज भी जब भी भगवान राम उया कृष्ण जन्म की तिथि आती है तो लोगो में इतना ही उत्साह और भाव देखने को मिलता है।

परशुराम अवतार में भगवान ने परशु लेके उदंड क्षत्रियों को सबक सिखाया और फिर से सु-शासनकाल शुरू करवाया। परशुराम काल में क्षत्रिय भी अपनी भूल समझ चुके थे। और उन्होंने उसे सुधारते हुए अपने मुलभुत काम में अपनी शक्ति और अपनी कर्तव्य परायणता लगा थी। यानि संस्कृति की रक्षा करना और उसका संवर्धन करना। यह करते करते समाज की रक्षा करते समाज के लोगो का जीवन उत्कृष्ट बनाना। सुनियोजित राज्य बनाकर उसे चलाना उह राजा का काम होता है। यह बात परशुराम अवतार में अच्छे से सिखाई गई थी। इसी लिए उस काल में क्षत्रिय राजा सुधर कर राक्षस, भोग लंपट, मिजाज खोर न बन कर राजर्षि, देव और ऋषि तुल्य बन कर पावित्र्य और एकता के प्रतीक के रूप में एक महान कार्य हेतु एकत्रित होते दिखाई देते है।

भगवान राम के बारे में क्या बताए। उनकी कहानी तो बच्चा बच्चा जानता है।  बडे हो या महिला या पुरुष या कोई भी कद का इंसान सब के दिलो में बसे है राम। शायद इसी लिए राम जन्म भूमि अयोध्या का आज भी इतना ही महत्व है।

इसी कारण आज बीजेपी की सरकार भी उनके जन्म स्थान पर उन्हीका भव्य मंदिर बनवाने जा रही है। आज भी सभी राम काल के रामराज्य की कल्पना करते है। वैसा राज्य की कामना सभी के दिलो में है। क्या हमने कभी यह जानने की कोशिश की रामराज्य क्यों चाहिए सभी को।

परशुराम के समय में राज सत्ता के उपर भी एक सत्ता थी वो थी धर्म सत्ता। अंतिम निर्णय ऋषि गण का रहता था। उसके आगे राजा भी नहीं बोल पाते थे। क्योंकि ऋषि यानि बल और दाढ़ी बड़ा के पंचांग देखनेवाले या राज मुहूर्त देखके राज्य की दी हुई भिक्षा पर गुजारा करनेवाले ऋषि नहीं थे। यह समग्र भूखंड उन्ही की महेनत से कमाये हुए सारे राज्य थे। जिनको एक राजा अच्छे से चला सकता है। अगर ऋषि ही उसे चलाने लगे तो समाज में लोगो को सु-संस्कृत करने का काम कोन करेगा ? इसी कारण वो सारे राज्य अलग अलग राजाओ को चलाने हेतु दिए हुए थे। हमने सुना भी है की परशुराम से पहले वशिष्ठ और विश्वामित्र का जगडा चला आ रहा था। क्योंकि विश्वामित्र दंड साशन पर आधारित राज्य को मानके चलते थे। उनका मानना था जब तक लोगो को न्याय का भय न दिखाओ तब तक लोग सही रस्ते नहीं चलेगे। किंतु वशिष्ठ का मानना था, स्वयं शासित समाज अगर बनाया जाए तो कायदा या न्याय की जरुरत ही नहीं है। और उनका यह प्रयोग सफल भी हुआ था। जिनको लेके ही दोनों में जगडा होता रहता था। वशिष्ठ के इसी प्रयोग के तहत उस काल में अयोध्या के आस पास के सभी गाव ऐसे ही स्वयं शासित और स्वयं संचालित थे। सभी लोग अपना कर्तव्य समज के सब काम करते थे। न कोई बोस था न कोई नोकर। अपनी भूल पर वे लोग अपने आप ही उसकी सजा तय कर उसका प्रायश्चित कर लेते थे। ऐसे सुनियोजित राज्यों में वहा के लोगो के कर्म और वहा की प्रजा की भक्ति से अभिभूत होके भगवान ने वहा जन्म लिया। यह सब आभारी है वशिष्ठ के कर्तुत्व को। जिनकी अथाग महेनत से यह कार्य संपन्न हो सका। और भारत वर्ष को राम जैसा रुदय सम्राट और शांत और धर्म की रक्षा करने वाला राजा मिला।

वेद और पुराणों में तिन राम का उल्लेख देखने को मिलता है। भार्गव राम, राघव राम और यादव राम। इनमें से भार्गव राम यानि सूर्य जैसे तेजस्वी परशुराम। जिनके सामने देखने की किसी की हिम्मत नहीं। जैसे सूर्य के सामने सब देख नही सकते। दुसरे यादव राम यानि कृष्ण के बड़े भाई बलराम। वैसे वे थे तो चन्द्र वंशी किंतु हमेषा द्वारका और हस्तिनापुर को उडा देने वाली भाषा बोलनेवाले वो महाबली थे। इसलिए उनको केवल महाबली की ही उपमा दी जाती है। और तीसरे राघव राम यानि रामचंद्र। रामचंद यह नाम उनकी बुआ का रखा हुआ नहीं है। किंतु उन्होंने अपने कर्तव्य से कामो से अपने गुणों से चंद्र की उपमा पाई है। आज भी राम का चरीत्र इतना ही शांत सरल सहज देखने को मिलता है। जिनका नाम लेने मात्र से जीवन में शीतलता आ जाती है वो है श्री रामचंद्र। उनके इन्ही गुणों के कारण हनुमान ने उन्हें भगवान राम का दास मान लिया था। वर्ना हनुमान जी बहुत बुद्धि शाली और बलवान थे। राम में यह सारे गुण वशिष्ठ के आश्रम में पढाई के दोरान उनके गुरु ने विकसित किए थे और उन्हें क्षात्र तेज से भरपूर और शस्त्र विद्या में पारंगत बनाया था। शायद यही काम हमारे ऋषि मुनिओ ने इतिहास में किया है। जिनके कर्मों और कर्तव्यों के कारण भगवान को इस धरा पर मानव अवतार लेकर उनकी समझाइ और सिखाई बातों पर चलकर अपना कर्तव्य पूरा करना पड़ा था।

भगवान राम के जीवन में सभी बाते उत्कृष्ट देखने को मिलती है। श्रेष्ठ पुत्र, श्रेष्ठ पति, श्रेष्ठ भाई, श्रेष्ठ मित्र और श्रेष्ठ राजा। अपने जीवन काल में एकाद अच्छा गुण लाने में कितनी महेनत करनी पड़ती है। तो यह एक ही जीवन में इतने सारे गुण लाना और उसका अपने जीवन में उत्क्रांत करना यह मामूली बात नहीं है। शायद इसी कारण आज भी लोग राम राज्य की कल्पना करते है। रामने अपने जियन काल में कोई भी मर्यादा का उल्लंघन नहीं किया था इसीलिए लोग उन्हें मर्याद पुरुषोत्तम भी कहते है। क्योंकि सामान्य नर से उत्तम पुरुष बनने का सफर उन्होंने तय किया था।

-संजय राय

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