दीपावली

भारतीय त्योहारों में हिंदु केलेंडर के अनुसार सबसे अंत मे आनेवाला और सबसे महत्वपूर्ण ऐसा त्यौहार यानी दीपावली। यह त्यौहार वैसे पांच दिन का होता है। दीवाली यानि दीपोत्सव का त्यौहार। वैसे तो इन दिनों अश्विन मास की अमावस्या होने के कारण काला अंधकार होता है। किंतु हर घर के आँगन में सजाये गए दियो की रौशनी से पूरा महोल्ला पूरा गांव, शहर और देश ज़गमगा उठता है। भारतीय पुराणों के अनुसार दीवाली के दिन अपने 14 वर्ष के वनवास के बाद भगवान श्री राम, सीता माता और भाई लक्ष्मण अयोध्या वापस पहोंचे थे। तब अयोध्या वासियों ने, उनके स्वागत में, अपने आँगन में दिए जलाकर उनका स्वागत किया था। लोगों ने नए कपडे पहन कर हर घर में मिठाई बनाकर सबको बाँट कर त्यौहार की तरह यह दिन मनाया था। महाभारत में भी, पांडव अपने 12 साल के वनवास और एक साल के अज्ञातवास के बाद हस्तिनापुर इसी दिन वापस आए थे।

दीवाली के अगले दिन यानि छोटी दीवाली या नरक चतुर्दशी के दिन श्री कृश्न्ने नरकासुर के अत्याचार से उसके जेल से कैदखाने से 16 हजार राजकुमारीओं को छुड़ाया था। नरसिंह अवतार में भी भगवान नरसिंह ने हिरण्यय कश्यप का वध इसी दिन किया था।

दीवाली के दूसरे दिन को गोवर्धन पूजा होती है। पुराणों के अनुसार इसी दिन बाल कृष्ण के कहने पर गोकुल वासियो ने इंद्र की उपासना छोड गोवर्धन की पूजा शुरू की थी। इसीलिए इस दिन बाल गोपाल को छप्पनभोग लगाए जाते है। वामन अवतार में बलि का सात्विक वृति का नकाब भगवान ने वामन अवतार लेके उतर कर उस से त्रिपदा भूमि दान में लेकर उसे पाताल लोक भेज दिया था।

गोवर्धन पूजा के दूसरे दिन भाई दूज यानि यम द्वितीय के दिन भाई बहन के घर आता है। कहा जाता है मृत्यु के देवता यमराज ने भी अपनी बहन यमुना के घर इस दिन खाना खाने गए थे। उपनिषद में कही गई नचिकेत की बात जो छह साल का बच्चा यमराज के द्वार गया था और तत्व ज्ञान का बोध लिया था वो यही दिन था। वैसा ही एक पुत्र ध्रुव अपनी नै माँ के अनुसार भगवान को पाने के लिए तपश्चर्या कर भगवान को प्रसन्न किया था वो भी यही दिन था।

ऐसे बहुत सारे मांगलिक त्योहारों का गुलदस्ता यानि दीपावली। जो सामान्य मानवीय जीवन में दुःख निराशा अज्ञानता से उसे प्रकाश और ज्ञान की तरफ आगे ले जाता है। जैसे पश्चिम देशो में क्रिसमस का महत्व है वैसे ही भारत में इस त्यौहार का महत्व है। दीपावली से पहले सब अपने घर को साफ करते है। रंग रोगाण करके सजाते है। सब नए कपडे, नई चीजे मिठाइयाँ बनाते है। भगवान की पूजा अर्चना करते है। फटाके जलाते है, और हर्षोल्लास के साथ यह त्यौहार मनाते है।

अगर इंसान बहार के साथ अपने भीतर अंतर मनमे भी ज्ञानका दिया जलाता है, तो सही मायने में दीपावली मनाई जाती है। वैसे भी इन दिनों में महालक्ष्मी, महासरस्वती, और माँ काली की उपासना करके अपने जीवन में इन तीनो माँ का आशीर्वाद प्राप्त करना होता है।

इस तरह धन तेरस के दिन माँ लक्ष्मी की उपसना करके, गृह मंदिर में भगवान के सामने घर के सारे गहने जेवर रखकर उन पर माँ की कृपा आए ऐसा करना होता है। दूसरे दिन यानि काली चौदश यानि नरक चतुर्दशी यानि छोटी दीवाली के दिन माँ काली की उपसाना होती है। दीपावली के दिन माँ सरस्वती की यानि पूरे साल का एकाउंट। यानि देशी भाषा में लेखा जोखा निकाला जाता है। और उस किताब का पूजन किया जाता है। दीवाली के दूसरे दिन गोवर्धन पूजा और गुजराती ओका नया साल या नव् वर्ष प्रारंभ होता है। इस प्रात: मंदिरों में जाकर दर्शन करके गाँव में सभी बड़े लोगो के पांव छूकर आशीर्वाद लिया जाता है। मिठाईयां देकर मुह मीठा किया जाता है। भाई दूज के दिन भाई अपनी बहन जो ससुराल में है उसके घर खाना खाने जाता है। और यथा शक्ति उसे भेंट देता है। इस तरह दीवाली पांच दिनों का उत्सवों का गुलदस्ता बन सबके जीवन में मोह अज्ञान के अंधकार से ज्ञान और प्रकाश रूपी तेज लाता है।

  • संजय राय, “शेरपुरिया”

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