मनुष्य की बौद्धिक शक्ति……

भगवान ने मनुष्य और प्राणियों को एक ही तरह की सुविधाएं दे रखी है। मनुष्य के हाथ-पैर है तो प्राणियों के भी हाथ-पैर है। मनुष्य बोल-सुन-देख सकता है तो प्राणियों में भी यह गुण विद्यमान है। मनुष्य खाता है वैसे ही प्राणी भी खाते हैं। तो फिर प्रश्न यह है कि हम मनुष्यों और प्राणियों में फर्क क्या है? हमारे वेद-उपनिषद के अनुसार मनुष्य और प्राणियों में जो फर्क है वह सिर्फ, मन और बुद्धि का ही है। ईश्वर ने हमें मन और बुद्धि दी है, जो प्राणियों के पास नहीं है, प्राणी सोच नहीं सकते,प्राणी अपने मन की क्रिया कर नहीं सकते, प्राणी माहिती संग्रह नहीं कर सकते, जो सब कुछ मनुष्य कर सकता है। मनुष्य सोच सकता है, सोच के क्रिया कर सकता है, अपने विचारों के मुताबिक कार्य कर सकता है। जानकारी एकत्रित कर सकता है और एकत्रित जानकारी को एक निश्चित कार्य के रूप में परिवर्तित कर सकता है। और इसलिए तो हमारे वेदों ने 84 लाख योनियों में हमारे मनुष्य जन्म को श्रेष्ठ जन्म माना है।

अब बात आती हैं मनुष्य का यह श्रृंगार, मन और बुद्धि के बारे में। जिसके बारे में तुलसीदास जी कहते हैं —- मन लोभी मन लालची मन चंचल मन चोर, मनके मत ना चलिए पलक पलक मन ओर ‘‘नहाये धोये क्या भया जो मन मैल न जाय, मीन सदा जल में रहे धोय बास न जाय’’ प्रारब्ध पहले बना पीछे बना शरीर, तुलसी यह मन जानके धारण कर ले धीर।। तुलसीदास जी ने भी मन के बारे में बहुत कुछ लिखा है। उन्होंने कहा कि मनुष्य का मन लोभी, लालची, चोर और बार बार बदलने वाला है। उनके अनुसार सिर्फ नहाने धोने से मनुष्य साफ नहीं होता, मनुष्य की सफाई मन के मैल से होती है, जब तक मन साफ नहीं तब तक जीवन बेकार है। मनुष्य का प्रारब्ध उसके शरीर के पहले बन जाता है, इसलिए जो होना है वो निश्चित ही है, मनुष्य को अपने जीवन में धीरज रखकर आगे चलना है। लेकिन वास्तविक रूप से हमारी बुद्धि वही कार्य करती है, जो उसका मन करने को कहे। लेकिन यह मन, भगवान ने बहुत चंचल बनाया है, बार-बार बदल जाता है, बार-बार फिसल जाता है। मन का महत्त्व हमारे शरीर में 90% से भी ज्यादा है क्याेंकि मन ही बुद्धि को नियंत्रित करता है और मन स्वयं संचालित है। गीता में भी श्रीकृष्ण ने अर्जुन को जो उपदेश दिया उसमैं मन की मजबूती पर ही भार लगाया है। भगवान श्री कृष्ण ने अर्जुन को कहा कि तू अपनी बुद्धि से विचार मत कर, अपने मन की बात सुन, क्याेंकि मन हमेशा सही-गलत का फैसला लेता है, लेकिन बुद्धि अच्छे-बुरे की सोचती है। मन दृश्यमान नहीं है इसलिए विज्ञान मन को नहीं मानता।

हमारे जीवन की हर उच्च कक्षा की भावनाए, जैसे सुख, दुःख, सफलता, टेंशन यह सब मन की पैदा की गई बातें ही हैं। इसलिए हमें अपने मन को मजबूत एवं उच्च विचारवाला बनाना पड़ेगा, जो कभी कुछ बुरा सोचे ही नहीं। हमारे ऋषि मुनियों ने इसलिए तो मन को मजबूत करने के लिए हमें प्राणायाम, योग, सूर्यनमस्कार, चित-एकाग्रता यह सब प्रयोग दिए हैं, जिनके माध्यम से हमारा मन इतना प्रबल हो जाता है कि सारी बातें अपने आप होने लगती हैं। जब हम लोग अमीर और गरीब की बात करते हैं, तब यह मन से है, विचार से है, धन-दौलत से नहीं। मन से अमीर लोग हमेशा दुनिया को सही मानकर चलते है, वो लोग हर घटना का जिम्मेदार खुद को ही मानते है, वो लोग अपने जीवन में निरंतर सीखते रहते हैं, और जीतने के लिए ही खेलते हैं। जब मन से गरीब लोग हमेशा खुद को सही साबित करने में ही वक्त निकालते हैं, वो लोग हर घटना का जिम्मेदार दूसरो को मानते हैं, उनको हमेशा यह लगता है कि मुझे सीखने की कोई जरूरत नहीं है क्याेंकि मैं सब कुछ जानता हूँ और वो जीतने के लिए नहीं लेकिन हार से बचने के लिए खेलते हैं। अमिर मन के लोग हमेशा अवसरों पर ध्यान देते हैं  और अमीरी पर समर्पित होते हैं। लेकिन मन से गरीब लोग अवसरों के बदले बाधाओं पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। दूसरों की गलतियां निकालने में वक्त बर्बाद कर देते हैं और फिर हमेशा अमिर बनना चाहते हैं। इसलिए हमें मन को अमिर रखना है, अगर मन अमीर है तो हम भी कभी न कभी अमीर बन सकते हैं, गरीब मन वाले लोग हमेशा गरीब ही रहते हैं। मन को अगर मजबूत करना है तो उसको अच्छा सुनने की आदत डालनी पड़ेगी। दुनिया में हर चीज और हर काम अपने सन्दर्भ का नहीं होता, यह मन को समझाना पड़ेगा। अपनी इच्छा शक्ति नियंत्रित करनी पड़ेगी और संकल्प शक्ति को आगे बढ़ानी होगी।

हमने नेपोलियन बोनापार्ट का नाम तो सुना ही है। जब उन्होंने अंग्रेजों के सामने लड़ाई शुरू की तब अंग्रेजों के 50,000 सैन्य के सामने उसके पास सिर्फ 5,000 सैन्य शक्ति ही थी। लेकिन उसका मन मजबूत था, संकल्प शक्ति मजबूत थी, उन्होंने तय कर लिया था की चाहे कुछ भी हो जाए मैं विजयी होकर ही लौटूंगा। इसलिए तो उनके नाम के आगे अजेय लगता है। मन कोई प्लानिंग नहीं करता, कोई एनालिसिस नहीं करता, कोई भी मैनेजमेंट नहीं करता फिर भी सभी कलाओं का उद्भवस्थान मन ही है। आज हम जिस टेक्निक के गुलाम बन गए हैं, वो माइक्रोसॉफ्रट के उद्भव कर्ता बिल गेट्स हैं। जब वो छोटे थे तभी उन्होंने अपने मन में एक विचार किया कि, मैं ऐसी कम्पनी बनाऊंगा, जिसके साथ सारी दुनिया जुड़ जाए। उन्होंने 13 साल की उम्र से ही कम्प्यूटर की नई-नई खोज करनी शुरू कर दी थी और आज हम उस मन की इच्छा-शक्ति को महसूस कर सकते हैं। हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि मन एक राजा है। उसकी कोई बंधन या सीमा नहीं होती। वो एक स्वयं संचालित कम्प्यूटर है, जो चाहे कर सकता है।

अब हम बुद्धि के बारे मैं कुछ बात करेंगे। वेशलर (1939)के अनुसार, बूद्धि एक समुच्चय या सार्वजनिक क्षमता है, जिसके सहारे व्यक्ति उद्देश्यपूर्ण क्रिया करता है, विवेकशील चिंतन करता है और वातावरण के साथ प्रभावकारी ढंग से समायोजन करता है।य् इस तरह देखें तो बुद्धि एक मानसिक शक्ति है, जो हमारे मन के द्वारा दिए गए आदेशों का पालन करती है। बुद्धि कई प्रकार की होती है, तार्किक बुद्धि, मानसिक बुद्धि, संवेगात्मक बुद्धि, आध्यात्मिक बुद्धि —। हमारी बुद्धि ही शरीर की हर क्रिया पर कंट्रोल करती है, हमें आगे जाना है या पीछे यह तय करने का काम बुद्धि का ही है। बहुत अच्छी बुद्धि शक्ति होने पर व्यक्ति दुनिया में टॉप पर भी पहुँच सकता है और नीचे भी गिर सकता है। आतंकवाद कर के बॉम्बे ब्लास्ट करने में भी बुद्धि का उपयोग होता है और कोई नई वैज्ञानिक खोज करके दुनिया का उद्धार करने के लिए भी बुद्धि का ही उपयोग किया जाता है। इसका मतलब यह है कि हमें हमारी बुद्धि को नियंत्रण में रखना सीखना होगा। बुद्धि को सही मार्ग पर चलने का रास्ता दिखाना पड़ेगा। यह कार्य सिर्फ आध्यात्मिक बुद्धि से ही होता है। आध्यात्मिक बुद्धि का मतलब कोई धर्म या समुदाय से नहीं है, लेकिन हमारे हर दिन होने वाली क्रियाओं में उपयोगी गुणों, प्रामाणिकता, नैतिकता, चरित्र जैसी बातों से है। अगर आध्यात्मिक बुद्धि के द्वारा हमने इन सब बातों को जीवन में साकार कर लिया तो, बाकि हर बात अपने आप ठीक हो जाएगी।

मनुष्य के पास अपार बुद्धि शक्ति होती है, लेकिन विज्ञान के अनुसार हम अपनी बुद्धि का सिर्फ 2 से 3% ही उपयोग करते हैं। वैज्ञानिक अलबर्ट आइनस्टाइन दुनिया के सबसे बुद्धिमान व्यक्ति माने जाते थे, लेकिन उन्होंने अपनी बुद्धि का अंदाजित सिर्फ 4% उपयोग किया था, ऐसा कहा जाता है। मनुष्य की बौद्धिक शक्ति की वजह से ही आज हमारा विज्ञान इतना आगे बढ़ गया है, आज हम चन्द्र पर जाकर अपनी गतिविधि कर सकते हैं, आज अच्छे से अच्छे साधन-सामग्री हमारे उपयोग के लिए उपलब्ध है। बुद्धि विचारों का जगत है, जो ह्युमन बॉडी को कंट्रोल करता है और इसके लिए जरूरी है अनुभव और जानकारी का होना। हमारी आवश्यकता की खोज बुद्धि के द्वारा ही होती है और इसलिए हम अच्छा-बुरा, नफा-नुकसान जैसी बातों पर ध्यान केन्द्रित करते हैं। बुद्धि चाहे तो हमें मजबूत बना सकती है और चाहे तो कमजोर। इसलिए हमें बुद्धि को सचेत करने के साथ उसकी क्रियाओं को वश में करने का काम भी करना होगा और यह काम हम सिर्फ आध्यात्मिक बुद्धि के माध्यम से ही कर सकते हैं। हम समाज में भी देखें तो विध्वंस करने वाले लोगों की कोई अहमियत नहीं है, लेकिन कुछ निर्माण करके समाज के लिए उपयोगी होने वाले लोगों की एक खास कीमत है, समाज में एक निश्चित स्थान है। समाज को हमें आगे लेकर जाना है लेकिन विध्वंस के मार्ग से नहीं बल्कि निर्माण के मार्ग से, और यह काम निश्चित रूप से हमारी बुद्धि का है। बुद्धि सब के पास होती है, सिर्फ प्रश्न यह है कि बुद्धि का उपयोग कौन करता है और कैसे करता है। वैसे यह बात निश्चित है कि, सिर्फ मन से या सिर्फ बुद्धि से कुछ नहीं हो सकता। हम कोई खोज करके अगर वैज्ञानिक बनने का मन बना लें लेकिन अगर इसके लिए अगर हम बुद्धि का उपयोग करके, तय किए हुए रास्ते पर चलते नहीं, तो यह बात असंभव है। वैसे ही अगर हम कितने भी बुद्धिमान हो, पर अगर हम हमारे मन से कुछ सोचते ही नहीं तो बुद्धि का उपयोग कहाँ करेंगे! इसलिए मन और बुद्धि दोनों का हमारे जीवन में सही महत्त्व है।

भगवान ने अगर हमें मनुष्य बनाकर मन और बुद्धि प्रदान किया है तो हमें जीवन के हर मोड़ पर उनके उपकारों को भी याद रखना पड़ेगा और समय समय पर कृतज्ञता व्यक्त करनी पड़ेगी। हमारे देश के लौह पुरुष सरदार वल्लभ भाई पटेल को तो हम जानते ही है। जब देश आजाद हुआ तब देश के अलग-अलग राज्यों में विविध राजाओं का राज था। सरदार पटेल ने अपने मन से विचार किया और निश्चय किया कि वह इस समस्या का समाधान करेंगे। उन्होंने अपना काम शुरू किया, अपनी बुद्धि शक्ति को सतेज बनाया और हर राजा को मिलाकर उसका राज्य भारत में विलीन करने के लिए प्रयत्न किया। आिखर में वे सफल हुए और एक अखंड भारत का निर्माण हुआ। सरदार पटेल ने अपने मन और बुद्धि का विवेकपूर्ण उपयोग किया, वरना यह सब राजाओ को एक करना और अखंड भारत बनाने का कार्य बहुत मुश्किल था। हमारे देश में ऐसे कई महानुभावों का जन्म हुआ है। छत्रपति शिवाजी महाराज, बाजीराव पेशवा, महाराणा प्रताप, रानी लक्ष्मीबाई जैसे कई वीर लोगों ने अपने मन की निश्चय शक्ति से और बुद्धि का विवेकपूर्ण उपयोग करके मातृभूमि की रक्षा की है। हर किसी को अपने जीवन में यह निश्चय अवश्य करना चाहिए कि हम हमारे मन को मजबूत और दृढ़ निश्चयी बनाएँगे, मन का शुद्धिकरण करके उसे सही दिशा में चले ऐसा प्रयास करेंगे और यह शुद्ध मन की मदद से हमारी बुद्धि को सही दिशा में काम करने के लिए प्रेरित करेंगे। क्योंकि, जिसने अपने मन और बुद्धि पर काबू कर लिया वह दुनिया का श्रेष्ठ मनुष्य बन सकता है।

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