हमारे वैदिक वांग्मय में बुद्धि को चमकाने का वो पारसमणि छिपा है, अगर उसकी वो गहन महता और गहन बातों को आज के काल में अगर समझने की भी चेष्टा मानव कर ले तो भी इस कलियुग में हम सबका जीवन धन्य हो जाए। वेदों की वैदिक गर्जना हरेक के बस की बात नहीं है, लेकिन अगर मनुष्य चाहे तो उसमें, नर का नारायण बनाए ऐसी जड़ी बुट्टी जरुर है। भगवान ने गीता में भी 9वें अध्याय में, भगवान का बनने का राज मार्ग दिखाया है। अगर हम उस पर चलें तो…! किंतु हम अपने रास्ते से भटक कर, शार्टकट में लगे रहते है इसी कारण हमारी मंजिल हमें मिल नहीं पाती। लेकिन इस राह से हम भटक न जाएं, इसलिए भगवान अपने देवदूत समान ऋषि मुनिओं को हमारे लिए इस धरा पर भेजते रहते है। ऐसे ही एक महान ऋषि मुनि थे महर्षि पराशर।
भगवान राम को जिन्होंने उपनयन संस्कार दिए, उनको पढ़ाया, उनकी शादी कराई और सुखी गृहस्थाश्रम बने एसा आशीर्वाद देने का सौभाग्य जिनको मिला ऐसे प्रातः स्मरणीय वशिष्ठ और अरुंधती को हम सब जानते ही है। वशिष्ठ एक बार जंगल से गुजर रहे थे तब उन्हें वेदों के मंत्र का गान सुनने में आया। उन्होंने आस-पास देखा तो एक सगर्भा स्त्री वहां से जा रही थी और उसके गर्भ से यह मन्त्र ध्वनी सुनाई दे रही थी। पता करने पर पता चला की वो उन्हीं के पुत्र शक्ति की पत्नी अद्र्श्यंती है और उसके गर्भ में उन्हीं का पोता है। जो गर्भ से ही वेदों का पठन करता इस धरा पर आया हो वो गत जन्मांतर का पुन्य शैली ऐसा जीव यानि महर्षि पराशर थे। जिन्होंने समाज में स्वयं शासित समाज निर्माण किया हो, ऐसे प्रकांड पराक्रमी दादा के वो कर्मनिष्ठ ऐसे पोते थे।
जिनके पिता को विश्वामित्र के सैन्य ने मार डाला था। वशिष्ठ और विश्वामित्र की लड़ाई में, विश्वामित्र ने वशिष्ठ के कई पुत्रें का नाश किया था। उनमें से एक ऐसे वीर प्रतापी शक्ति भी थे। पराशर जैसा पोता पाकर वशिष्ठ को भी लगा की शायद नियति को अभी हमारे कुल में विश्वास है इसीलिए उन्होंने ऐसा पोता हमारे कुल में भेजा है। बड़ा होने तक पराशर को पता नहीं था की वशिष्ठ उनके पिता नहीं दादा है। यह बात उनकी माता ने उन्हें समझाई और बताया की कैसे उनके पिता की हत्या हुई थी। पराशर युवान थे तेजस्वी थे, बुद्धिशाली और बल शाली थे। उन्हें सारी बातें जानकर क्रोध आ गया। गुस्से से लाल अपने पोते को रूप देख के वशिष्ठ ने उसे पास बिठाकर समझाया हर राक्षस इस लायक नहीं है कि उसे दंड दिया जाये। उसे मारने से वो वृति खत्म नहीं होगी। इसलिए राक्षस को मारो नहीं उसके दुर्गुणों का नाश करने का काम करो। क्योंकि बुराई को मारो बुरे को नहीं।
वह समाज सच्चे का था। सच्ची बातों पर चलने वालों का था। आज के समाज में राक्षस तो है ही, लेकिन वो शूट बूट वाले टाई पहने हुए है। जिसकी सोच स्व केंद्रित है जो सिर्फ अपने स्वार्थ का ही सोचता है वो राक्षस ही कहलाता है। उसकी सोच ही उसकी प्रवृति बन जाती है। जो हमेशा दुसरों के बारे में सोचता है, दुसरों की मदद करने का विचार करता है उसी को तो राम कहते है। यही तो मूल भूत फर्क है राम और रावण में। रावण कितना भी शक्तिशाली बलशाली वीर पुरुष था, उसके पास ज्ञान का भंडार था लेकिन वो केवल अपने उपभोग के लिए ही सोचता था। जब की राम दूसरों के जीवन में खुशियां लाने के लिए ही हमेशा संघर्षरत रहे। तभी तो आज भी लोग अपने बच्चों का नाम राम रखना चाहेंगे रावण नहीं। यही सारी बातें पराशर को उसके दादा ने समझाई और उसके गुस्से को शांत किया। वो ऊपर से तो शांत हो गए किंतु उनके मन में उनके पिता को मारने वालों के प्रति गुस्सा शांत नहीं हुआ। जब भी वशिष्ठ तीर्थ यात्र के लिए आश्रम से बाहर गए उन्होंने राक्षसों को मारना शुरु किया तब पुलह और पुलत्स नामक ऋषि उनके पास आए और उन्होंने वही बात वापस उन्हें समझाई, व्यक्ति के अंदर के दुर्गुणों को मारो व्यक्ति को मारना उसका उपाय नहीं है। तब पराशर शांत हुए और अंतर मुख होकर उन्होंने अंतर भक्ति शुरू की।
वैसे भी सभी ऋषियों ने अपना कार्य क्षेत्र हमेशा से नदी या समंदर का किनारा ही चुना है। पराशर की पत्नी भी काली एक मत्स्य कन्या ही थी। आज के समय भी जहां और कोई वांग्मय नहीं मिलता वहा पराशरस्मृति को मापदंड मानने को कहा जाता है। उन्होंने एक उत्कृष्ट तत्वचिंतक की भांती पराशर तत्व ज्ञान लिखा है। उनके लिख् ज्यादा ग्रन्थ तो अभी उपलब्ध नहीं है किंतु फिर भी उनकी बातों को शास्त्र प्रमाणित माना जाता है। बहुत ही ज्वलंत और जीवनोंपयोगी ऐसी लेखनी उनके ग्रंथो में पढ़ने को मिलती है। उन्होंने बहुत से ग्रंथ और पुस्तकें लिखी है। पुराणों में कहते है भगवान के दो मुह कहे है। एक अग्नि जिससे वो खाते है, दूसरा ब्राह्मण, जो ब्रह्म का काम करता है, जिसके द्वारा वो बोलते है। इसीलिए शायद हिंदु संस्कृति में शादी के वक्त मंत्रेच्चार के साथ, अग्नि और ब्राह्मण की साक्षी में ली जाती है तभी वो सात जन्मों का बंधन होता है।
पराशर ने तात्विक, बौद्धिक और कौटुम्बिक सत्य सिद्धांतो को वास्तविक जीवन में साकार करने का भागीरथ प्रयास किया। उनकी लिखी दस बातें समाज के दृढ़िकरण में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। किंतु कहते है काल सबका रस पी जाता है, वैसे ऐसे महान तत्वचिंतक की कही हुई बाते काल के पेट में समा गई। कही एक कोने में दब गई है। यही पराशर का मन मत्स्य कन्या (एक मछुआरा पालक पिता होने के कारण) सत्यवती पर आ गया था। ऐसा त्रैलोक्य को लुभाने वाला सौंदर्य सत्यवती के पास था। किंतु उसके शरीर से मछली की गंध आती थी। वह नाविकों को गंगा पार कराने का काम करती थी। उसी नैया में पराशर उनके करीब आ गए और एक लोकोत्तर ऐसी विभूति इस धरा पर आई जिनका नाम था वेद व्यास। पराशर का संग पाकर सौंदर्य तो था ही लेकिन उसके शरीर की गंध उन्होंने निकाल दी। आगे जाकर वो हस्तिनापुर की महारानी बनी। शांतनु राजा की दूसरी पत्नी, और जिनके कारण भीष्म पितामह बने वह उनकी सौतेली माँ बनी। जिससे आगे जाकर कुरुवंश आगे बढ़ा। महाभारत के पांडव और कौरव बने, भगवान कृष्ण के स्वमुख से गीता जैसा महाग्रंथ विश्व को मिला। ऐसे महर्षि पराशर को शतशः प्रणाम।