महर्षि वेदव्यास

इस विश्व को भगवान का घर मानने वाले और उसे स्वच्छ और सुंदर बनाने की प्रक्रिया में अपना जीवन न्योछावर करने वाले ऐसे महान हितकारी ऐसे भारत देश की भूमि में जन्मे अनेक ऋषि गणों की वजह से आज भी इस धरा की खुशबू, उसके संस्कार, आचार और विचार पूरे विश्व में उसे ‘विश्वगुरु’ बनाने के लिए सक्षम है। उसके पीछे हमारे ऋषि मुनिओ के अथाग प्रयत्न और कड़ी महेनत है। उन्होंने उस धरा को अपने लहू से सिंचा है। और अपने कर्मयोग के बल पर इस धरा को सिंचा है। इसलिए तो हमारी संस्कृति पर कई आक्रमण हुए किंतु ऋषि मुनिओं की मेहनत और संतो के कार्य से ऐसी संस्कृति की नींव डगमगा नहीं पाए। उसका सबसे बड़ा सबूत है अकबर के दरबार में बीरबल की हाजरी।

आज ऐसे ही एक महान ऋषि के बारे में जानते हैं जिनके नाम से आज भी समाज में जो भी कोई अच्छे काम या कोई धार्मिक कार्य के लिए बैठता है तो उस गद्दी को ‘व्यास पीठ’ कहा जाता है। हमारे जी हा वेदव्यास मुनि। जिनके कारण आज भी उस गद्दी को व्यासपीठ कहा जाता है। कहते है पूरा विश्व की जूठन है। वेद व्यास जी ने समाज को एक नई दिशा और राह बताई। वेद-उपनिषद की भाषा सामान्य जन के पल्ले पड़ने वाली नहीं थी, इसलिए उन्होंने उसे सरल, सहज बनाकर, सामान्य जन को समझ में आए ऐसे उदाहरण के साथ सारी बाते समझाई और लोग वो चीजें समझ कर लोगों ने अपने जीवन बदल कर उस राह पर चलने के लिए सुझाव भी दिया। इतिहास की ऐसी महान विभूतियों में से एक हमारे वेद व्यास जी थे। शायद इसीलिए गुरुपूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।

ऐसे ही इतिहास के एक महान ऋषि पराशर और मत्सय कन्या सत्यवती के पुत्र यानि वेद व्यास थे। महान पराशर के पुत्र अंश होने के कारण वो तेजस्वी, ओजस्वी और बुद्धिमान थे। किंतु मत्सय कन्या सत्यवती के पुत्र होने के कारण उनका रंग सावला था। इस वजह से उन्हें कृष्ण भी कहा जाता है। और वे यामुनाद्विप में जन्मे थे, इसलिए द्वैपायन भी कहा जाता है। जिनकी तुलना में और कोई नहीं आता ऐसे दार्शनिक यानि युनिवर्शल होने के कारण उनकी तुलना किसी से नहीं की जा सकती। जिन्होंने स्वत्रंत ऐसी प्रज्ञा बुद्धि से काम किया हो, जिनका मस्तक ज्ञान से भरा हो, जिनके हृदय में भाव और भक्ति का संगम हो ऐसे महान कर्मयोगी जो खुद एक त्रिवेणी संगम हो उनके बारे में तो यही कहा जायेगा की वेद व्यास। वेदों को जिन्होंने सरल भाषा में लोगो तक पहुंचाई। इस कारण उन्हें महर्षि भी कहा जाता है। जिनके कारण हमारी संस्कृति और सभ्यता उनकी आभारी है, और खुद भगवान के लिए जिन्होंने इस धरा पर जन्म लिया है।

उन्होंने जीवन में व्रत लिया था की लोगों को ज्ञानपूर्ण भक्ति समझायेंगे, और जिसके कारण समाज में लोगों का जीवन दिव्य और लोकोत्तर बने ऐसा उन्होंने प्रयास किया है। वे लोगों को समझाते की, अगर इंसान कोई उद्देश्य लेकर काम शुरु करता है, उसका इरादा भी नेक है, अथाह प्रयत्नों के बावजूद उसे असफलता मिलती है। तब वह इंसान पत्थर का बन जाता है, भावशून्य बन जाता है। इसलिए प्रत्येक मानव के मन आत्मा को मारे बगैर उसे जीवंत रखकर काम या कर्म करो। यही सबसे बड़ी अहिंसा है, यही उनका अध्ययन था और यही बात वे समझाते थे। उनकी महत्ता इस बात से समझ सकते है कि उनके चारों शिष्य जिन्होंने चारों दिशाओं में चार वेदों की बनाई थी। ऐसे महान उनके शिष्य थे, जो पैल-ऋग्वेद,जैमिन-यजुर्वेद, वैशपायन-सामवेद और यूनिवर्सिटी सुमन्तु-अथर्ववेद। जिन्होंने अपने  अपने तरीके से हमारे चारो वेदों को एक नया आयाम दिया है। वेद व्यास जी को पता था, कलयुग में मनुष्य अकर्मण्य और धर्म से विमुख होता चला जायेगा, जिसके कारण वो नास्तिक, कर्तव्यहीन, पर अल्पायु होता जायेगा। इसी कारण उन्होंने वेदों के चार भाग कर दिए। और चारों शिष्यों को एक-एक वेद पढाया। और रोचक रुप में उस पुराणों को समाज के सामने पेश किया। इसी कारण वो वेद व्यास के नाम से विख्यात हुए थे। उनके पुराणों पर किए गए अत्यंत गूढ़ और निहित ज्ञान को उनके शिष्य रोम हर्षन ने उसे पांचवें वेद के रुप मे संज्ञा दी।

वेद व्यास जी ने ब्रह्मा के कहने पर ‘महाभारत’ जैसे ग्रंथ की रचना भी की है। कहा जाता है, वो जब रचना के लिए बैठे थे, तब उसको कलम से ताम्रपत्र पर उतारने के लिए स्वयं गणेशजी बैठे थे। किंतु दोनों ज्ञानी और दार्शनिक और बुद्धिमान थे। गणेशजी ने शर्त रखी थी, आपकी बुद्धि और जवान जब अटक जाएगी, तब मेरी कलम भी रुक जाएगी’’। सामने व्यास जी ने भी शर्त रखी, मैं जो भी बोलूं, उसे सोच समझ के लिखना आपकी जिम्मेदारी है। और इन शर्तों के साथ समाज के सामने आया ‘महाभारत’ जैसा महान दार्शनिक ग्रंथ।

हमारी वैदिक वाणी में जीवन को उत्कृष्ट बनाने की चाबी छिपी हुई है। जो मानव को नर से नारायण बनने का रास्ता दिखाता है। हमारे वेद कहते हैं अगर नर अपनी करनी करे तो नर का नारायण बन सकता है। यही जय घोष लोगों की समझ में आए ऐसा उन्होंने उदाहरण के साथ लोगों के सामने रखा। इतना ही नहीं ऐसे ऐसे पात्र महाभारत में लिखे की जिसे देख हर पात्र को प्यार करने का मन हो जाये और उसके  जैसा बनने की चाव हर बंदा रखने लगे और उस राह पर चलने के लिए मजबूर हो जाये।

वेद व्यास यानि पांडव और कौरवों के प्रपिता। पांडू, धृतराष्ट्र, विदुर के पिता। उन्होंने अपनी कलम से अपने बारे में भी लिखा है। और सिर्फ अपनी में ही नहीं लिखा है, किंतु अपनी कमियों के बारे में भी लिखा है। ऐसा इतिहासकार न भुतो न भविष्यति। उनकी पत्नी आरुणी से जन्मे शुकदेव जी बाल योगी थे। जिन्होंने ही अपने पिता व्यास जी से ज्ञान लेके समाज में भागवद का उपदेश दिया था। जिसका एक भाग महाभारत और भगवद गीता भी है। जो भगवान के श्रीमुख से कही गई थी। तभी उन्होंने लिखी है। आज से इसा पूर्व 3 हजार साल पहले, आषाढ पूर्णिमा को इतना भव्य और दिव्य चरित्र इस भारत भूमि पर आया था। जिन्होंने पुराणों, महाभारत की रचनाएं तो की थी, साथ में ब्रह्मसूत्रें की भी रचना की थी। ऐसे महान महर्षि वेद व्यास जी को शतशः प्रणाम।

 

About Narvil News

x

Check Also

कल्कि अवतार (दसवां अवतार)

भगवान का दशवा अवतार यानि संभवित ऐसा कल्कि अवतार