होमी जहाँगीर भाभा एक परमाणु वैज्ञानिक थे| उन्होंने भारत के परमाणु उर्जा कार्यक्रम की कल्पना की | मुट्ठीभर वैज्ञानिकों की सहायता से उन्होंने मार्च 1944 में नाभिकीय उर्जा पर अनुसन्धान आरम्भ किया| उन्होंने नाभिकीय विज्ञान में तब कार्य प्रारंभ किया, जब अविच्छिन्न श्रंखला अभिक्रिया का ज्ञान नहीं के बराबर था | इतना ही नहीं, उस समय नाभिकीय उर्जा से विद्युत् उत्पादन की कल्पना को कोई मानने के लिए तैयार नहीं था|
उनकी कीर्ति सारी दुनिया में फैली| भारत को परमाणु शक्ति बनाने के मिशन में प्रथम कदम के तौर पर 1945 में उन्होंने मूलभूत विज्ञानं में उत्कृष्टता का केंद्र टाटा इंस्टिट्यूट आफ फन्डामेंटल रिसर्च (टीआईएफआर) की स्थापना की| डॉ भाभा एक कुशल वैज्ञानिक और प्रतिबद्ध इंजीनियर होने के साथ साथ एक समर्पित वास्तुशिल्पी, सतर्क नियोजक एवं निपुण कार्यकारी थे| वे ललित कला व संगीत के उत्कृष्ट प्रेमी तथा लोकोपकारी थे| 1947 में भारत सरकार द्वारा गठित परमाणु उर्जा आयोग के प्रथम अध्यक्ष नियुक्त हुए| 1953 में जेनेवा में अनुष्ठित विश्वपरमाणुविक वैज्ञानिकों के महासम्मेलासं में उन्होंने सभापतित्व किया| भारतीय परमाणु उर्जा कार्यक्रम के जनक का 24 जनवरी 1966 को मोंट ब्लॉक, फ्रांस में एक विमान दुर्घटना में निधन हो गया था| लेकिन यह दुर्घटना या हत्या थी इस पर अनुमान करना आज भी कठिन है| पूर्व सीआईए संचालक राबर्ट क्राउली अपनी किताब में होमी जहाँगीर भाभा की हत्या में सीआईए को शमिल होने की बात कही है |दावा किया गया कि भारतीय परमाणु कार्यक्रम को पंगु बनाने के लिए इस घटना में केंद्रीय खुफिया एजेंसी की संलिप्तता थी|
डॉ होमी जहाँगीर भाभा बचपन से ही चाँद, तारे और अंतरिक्ष के सम्बन्ध में जिज्ञासु थे| विचारों की तीव्रता के कारण रात में सोते समय घंटों तक उन्हें नींद नहीं आती थ |15 वर्ष की आयु में उन्होंने महान वैज्ञानिक आइन्स्टीन के सापेक्षता का सिद्धांत को समझ लिया था| उन्होंने मुंबई से कैथड्रल और जान केनन स्कूल से पढ़ाई की| एल्फिस्टन कालेज, मुंबई और रॉयल इंस्टीटयूट ऑफ़ साइंस से बीएससी पास किया| मुंबई से पढाई पूरी करने के बाद भाभा 1927 में इंग्लॅण्ड के कैअस कालेज , कैम्ब्रिज में इंजीनियरिंग की पढाई करने गए| कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से 1930 में स्नातक की उपाधि और 1934 में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की | जर्मनी में उन्होंने कास्मिक किरणों पर अध्ययन और प्रयोग किये| इंजीनियरिंग पढने का निर्णय उनका नहीं था | परिवार की ख्वाहिश थी कि वे एक होनहार इंजीनियर बने | होमी ने सब की बातों का ध्यान रखते हुए, इंजीनियरिंग की पढाई जरुर की | लेकिन अपने प्रिय विषय फिजिक्स से भी अपने को कभी अलग नहीं किया |न्यूक्लियर फिजिक्स के प्रति उनका लगाव जुनूनी स्तर तक था| आखिर कैम्ब्रिज से ही पिता जी को पत्र लिखकर उन्होंने अपना इरादा बता दिए थे कि फिजिक्स ही उनका अंतिम लक्ष्य है|
देश आजाद हुआ तो होमी जहाँगीर भाभा ने दुनिया भर में कार्यरत भारतीय वैज्ञानिकों से अपील की कि वे भारत लौट आएँ| उनकी अपील से कुछ वैज्ञानिक भारत लौटे भी| इन्हीं में से एक थे मैनचेस्टर इम्पीरियल कैमिकल कंपनी में कार्यरत होमी नौशेरवां जी सेठना| मिशिगन यूनिवर्सिटी से पोस्ट ग्रेजुएट सेठना में भाभा को काफी संभानाएं दिखाई दी | ये दोनों वैज्ञानिक भारत को परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनाने में जुट गए | यह कार्यक्रम मूल रूप से डॉ भाभा की ही देन था, लेकिन यह सेठना ही थे, जिनकी वजह से डॉ भाभा के निधन के बावजूद न तो यह कार्यक्रम रुका और न ही इसमें कोई बाधा आई | उनकी लगन का नतीजा था कि 1974 में सेठना ने शांतिपूर्ण परमाणु विष्फोट की तैयारियां पूरी कर ली थी | तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी से हरी झंडी मिलने के बाद अति गोपनीय रूप से केरल में परमाणु विष्फोट का कार्यक्रम संपन्न हुआ| डॉ सेठना ने 1959 में ट्राम्बे स्थित परमाणु ऊर्जा प्रतिष्ठान में प्रमुख वैज्ञानिक अधिकारी पद का कार्यभार सम्भाला| यही प्रतिष्ठान आगे चलकर भाभा परमाणु अनुसन्धान केंद्र बना| वहां उन्होंने नाभिकीय ग्रेड का यूरेनियम तैयार करने के लिए थोरियम संयंत्र का निर्माण कराया | उनके अथक प्रयास और कुशल नेतृत्व से 1959 में भाभा परमाणु अनुसन्धान केंद्र में प्लूटोनियम अलग करने के लिए प्रथम संयंत्र का निर्माण संभव हो सका | डॉ सेठना के मार्गदर्शन में ही 1967 में जादूगोड़ा, झारखण्ड से यूंरेनियम हासिल करने का संयंत्र लगा | डॉ सेठना अनेक संस्थानों के अध्यक्ष और निदेशक रहे |
वे 1966 में भाभा परमाणु अनुसन्धान केंद्र के निदेशक नियुक्त हुए | उन्होंने भारतीय परमाणु ऊर्जा कार्यक्रम को नयी दिशा दी |उन्हें पद्मश्री, पद्मभूषण और पद्मविभूषण जैसे तमाम अलंकरणों से नवाजा गया | आज अगर भारत को एक परमाणु शक्ति के रूप में पूरी दुनिया में मान्यता मिली है, तो इससे डॉ होमी जहाँगीर भाभा के बाद सबसे अधिक योगदान डॉ सेठना का ही है | डॉ भाभा के नेतृत्व में भारत में एटामिक एनर्जी कमीशन की स्थापना की गयी | डॉ भाभा वर्ष 1956 में जेनेवा में आयोजित यूएन कांफ्रेंस आँन एटामिक एनर्जी के चेयरमैन भी चुने गए थे|