हमारे बुजुर्ग, हमारी धरोहर हैं …..

हमारे बुजुर्ग, यानी हमारे घर के वृद्ध लोग हमारी धरोहर हैं I यह ऐसे व्यक्ति है, जिन्होंने खुद के जीवन को मिटाकर हमारे जीवन को उजाला दिया है। यह ऐसी व्यक्ति है जिन्होंने खुद एक समय का खाना खाकर हमें तीन समय खाना खिलाया है, यह ऐसा भी व्यक्तित्व है, जिन्होंने खुद की पहचान जोखिम में डालकर हमारी पहचान दुनिया में बनाई है। यह ऐसी व्यक्ति है जिन्होंने खुद फटे हुए कपड़ें पहनकर या तो एक-दो कपड़ें में जिन्दगी गुजारी ली और हमें ढेर सारे कपडे दिलवाए । लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि आज 21 वीं सदी में जब हम बड़े हो जाते हैं तो अपने घर से ऐसे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति को घर से आसानी से निकाल देते हैं ,जिससे वे वृद्धाश्रम में रहने पर मजबूर हो जाते हैं I यह जानकार आश्चर्य होता है कि सारी जिन्दगी जिन्होंने हमारे लिए न्योच्छावर कर दी, ऐसे व्यक्ति को लोग भूल गए हैं और साल में एक बार मिलने भी नहीं आते हैं I उसमें कई बुजुर्ग तो ऐसे भी होते हैं , जो अपने बच्चों का नाम लेना भी नहीं चाहते । चाहे भले ही उन्हें भूखा मरना पड़े I देश में हमारे ज्यादातर बुजुर्गों कि ऐसी स्थिति देखने के बाद भी हम सीनियर सिटिज़न डे मनाते हैं I

वृद्धावस्था या बुढ़ापा जीवन की वह सच्चाई है जिसे न चाह कर भी हमें स्वीकार करना पड़ता है। यह ऐसी अवस्था है, जहां हमारा जीवन खत्म होने के समीप आ जाता है। बुढ़ापा धीरे-धीरे आता है, जो जीवन की एक स्वभाविक और प्राकृतिक प्रक्रिया है। वृद्ध का शाब्दिक अर्थ होता है बढ़ा हुआ, पका हुआ, या परिपक्व। कहा जाता है बिना प्रयास के केवल एक चीज जो आपके पास आती है वह है, बुढ़ापा। जीवन की कोई आयु सीमा नहीं है। ये सुनहरे साल है, इसलिए जीवन आपको जहां भी ले जाए, पूरे मन से जाएं।

उम्र बढ़ने के साथ-साथ हमारा शरीर कमजोर होने लगता है क्योंकि उपापचय की क्रिया धीमी पड़ जाती है। यदि व्यक्ति का खान- पान और सेवा -सत्कार सही नहीं रहा तो वृद्ध होने पर कई व्यक्तियों को, कई तरह की मानसिक और शारीरिक बीमारियां जैसे शुगर, मोतियाबिंद, हायपर टेंशन , कम सुनाई देना, हृदय रोग, आर्थराइटिस, कब्ज रहना आदि होने लगता है। साथ ही कई बुजुर्गों को मानसिक रूप से डिप्रेशन, डिमेंशिया, नींद की दिक्कत, नशा करना आदि समस्याएं आने लगती है। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि एक तो हम कभी खुद को बूढ़ा देखना नहीं चाहते और दूसरा हमारे समाज में बुढ़ापे को कई लोग बोझ मानते हैं। लोग अक्सर कहते हैं , आप केवल उतने ही बूढ़े हैं जितना आप महसूस करते हैं। आयु शरीर से अधिक मन की अवस्था है। अगर आपको कोई आपत्ति नहीं है, तो कोई बात नहीं! और बुढ़ापा आपको परेशान कतई नहीं करेगा ।

हमारे समाज में आज बुजुर्ग अकेले रहने को विवश है और शहरों – शहरों में वृद्धाश्रम की संख्या बढ़ रही है, क्योंकि उनके अपने बच्चे ही साथ रहना या रखना नहीं चाहते हैं। ज्यादातर बुजुर्ग घर में अकेले ही रहते हैं, और बच्चों को अपने काम में व्यस्तता के चलते अपने माता-पिता से बात करने का समय ही नहीं है। कई बार जीविका के कारण बच्चे अलग -अलग शहरों में रह रहे होते हैं, ऐसी स्थिति में वे अपने माता- पिता का पूरा ध्यान नहीं रख पाते और माता- पिता अकेले ही जीवन गुजार देते हैं। कुछ परिवार ऐसे भी हैं जहां वास्तव में बुजुर्गों की अवहेलना और अपमान किया जाता है। उनको बात -बात पर यह एहसास कराया जाता है कि अब वो बच्चों के भरोसे हैं। फिर भी सत्य यही है कि सभी परिवार की स्थिति भिन्न होती है इसलिए किसी भी पीढ़ी को दोष देना कठिन है।

अमेरिकन आर्किटेक्ट और लेखक फ्रैंक लॉएड राइट कहते हैं, ‘‘जितना अधिक मैं जीवित रहूंगा, जीवन उतना ही सुंदर होता जाएगा।‘‘ पर अस्वस्थता और अकेलापन के चलते वरिष्ठ नागरिकों का जीवन चुनौतीपूर्ण हो सकता है, लेकिन पीछे मुड़कर देखने और पिछले अनुभवों के साथ उसका सही उपयोग करने के लिए उनके पास पर्याप्त समय भी होता है। हम कई वरिष्ठ नागरिकों को देखते हैं कि वे इसका सही उपयोग कर समृद्ध और सार्थक जीवन जी रहे हैं। जब मन परिपक्व होता है, तो शरीर क्षीण हो जाता है। आप किसी भी चीज के लिए कभी बूढ़े नहीं होते। महान लेखक कन्फ्यूशियस कहते हैं, ‘‘बुढ़ापा…एक अच्छी और सुखद बात है। यह सच है कि आपको मंच पर धीरे से कंधा दिया जाता है, लेकिन फिर आपको दर्शक के रूप में आरामदायक फ्रंट स्टाल दिया जाता है। वृद्धावस्था का एक फायदा यह है कि आपके रहस्य जो आपके मित्रों के पास सुरक्षित हैं – अब वे उन्हें याद भी नहीं रख सकतें! हालांकि, कई वरिष्ठ नागरिकों ने अपने जीवन को बेहतर बनाने के लिए ऐसे संघ स्थापित किए हैं जहां वे किताबें और समाचार पत्र पढ़ने में समय बिता सकते हैं। मासिक या साप्ताहिक बैठकें आयोजित की जाती हैं जिनमें लोग अपने अनुभव बताते हैं, और पुराने गीत गाने और कविता पाठ करने में बहुत आनंद मिलता है।

आज से 50 साल पहले देखें तो लोग आमतौर पर अपने बाकी जीवन जीने के बारे में इतनी चिंता नहीं करते थे जितनी आज कर रहे हैं क्योंकि उस समय उनके बच्चे आमतौर पर संयुक्त परिवार का हिस्सा होते थे। पर आधुनिकीकरण और वैश्वीकरण के साथ परिवार अपने देश या विदेश में भी बिखरे हुए हैं।संयुक्त परिवार का ताना बाना टूट रहा है और एकल परिवार सामान्य बात होती जा रही है। भारत में निःसंदेह विकास हुआ है और बुजुर्गों की 12 फीसदी आबादी ने देश की प्रगति में काफी योगदान दिया है, पर उन्हें अपने लिए सार्थक, टिकाऊ अस्तित्व बनाए रखने के लिए उचित सहयोग नहीं मिल रहा है।

उनके लिए चिकित्सा सुविधाएं भी सीमित है, इसलिए कई गंभीर बीमारी के साथ, विशेष रूप से जो आर्थिक रूप से विवश और लाचार हैं, उन्हें गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवा पहुंचानी जरूरी है। इसके लिए सरकारी अस्पतालों और वृद्धाश्रमों को अपग्रेड किया जाना चाहिए ताकि वरिष्ठ नागरिक बिना किसी परेशानी के दिन बिता सकें और स्वस्थ लाभ ले सकें। निजी अस्पतालों में भी उनकी देखभाल और उपचार सुनिश्चित करने के लिए सख्त नियम होने चाहिए।

सरकारी अधिकारीयों को भी इस बात को दृढ करना चाहिए कि, वरिष्ठों को नियमित रूप से वृद्धावस्था पेंशन मिल रहा है या नहीं। कुछ लोग कहते हैं अब जब मैं बुजूर्ग हो गया हूं, तो मेरा सब कुछ साथ छूटना शुरू हो गया है! मेरे घुटने, मेरी पीठ, मेरी गर्दन इत्यादि। विकल्प पर विचार करें तेा बुढ़ापा इतना बुरा नहीं है। डेविड बोवी कहते हैं, ‘‘उम्र बढ़ना एक असाधारण प्रक्रिया है जहां आप वह व्यक्ति बन जाते हैं जो आपको हमेशा से होना चाहिए था।‘‘

हालांकि, लोगों को यह भी याद रखना चाहिए कि उम्र बढ़ने के कुछ फायदे भी हैं। इस धरती पर जन्म लेने वाला प्रत्येक व्यक्ति अंततः बूढ़ा हो जाएगा। इसलिए जीवन को समग्र रूप में लिया जाना चाहिए जिसमें युवा और वृद्ध समान रूप से महत्वपूर्ण हैं और विकास में योगदान दे सकते हैं और देते हैं। बुढ़ापा चिंतन और आध्यात्मिक शांति और उन्नति का समय होता है। उत्साहवर्धक लेखिका लैला गिफ्टी अकिता कहती हैं, “आत्मा कभी बूढ़ी नहीं होती, हमेशा जवान रहती है।‘‘ बुढ़ापा अनिवार्य है, लेकिन बड़ा होना वैकल्पिक है।

सभ्यता के शुरुआत से ही, वरिष्ठ नागरिकों ने समाज में एक आवश्यक भूमिका निभाई है। उन्होंने ऐतिहासिक रूप से ज्ञान का प्रतिनिधित्व किया है, अनुभव से भरे जीवन का समाज में काफी महत्व है । विशेषज्ञ मानते हैं कि रूढ़ियां बदल रही हैं, वरिष्ठ नागरिक अपने क्षेत्र में विशेषज्ञों के रूप में, संरक्षक के रूप में, कौशल और ज्ञान के अमूल्य स्रोतों के रूप में सेवा करना जारी रख सकते हैं। औसत जीवन प्रत्याशा बढ़ी है, देश में अब पहले से कहीं अधिक वरिष्ठ नागरिक हैं। कई लोगों के पास खुश और स्वस्थ रहने के लिए आवश्यक संसाधन नहीं हैं। दुनिया भर के लेखकों और वक्ताओं ने वरिष्ठ नागरिकों के महत्व पर विचार दिया है, जो अक्सर नई राहें दिखाते हैं।

“किस्मतवाले होते हैं वो लोग जिनके सिर पर बुजुर्गों का हाथ होता है” कुछ ऐसा ही कहा जाता है, हमारे समाज में बुजुर्गों के सम्मान के लिए। क्यूंकि जिस घर में बुजुर्गो का सम्मान होता है वहां नई पीढ़ियों को कदम -कदम पर अपने बुजुर्गों के जीवन के तजुर्बां का मार्गदर्शन मिलता रहता है और वो कभी भी मुश्किलों से घबराते नहीं हैं । अपने दादा-दादी के रूप में उनके सर पर एक ऐसा मजबूत हाथ होता है जो उनके अंदर के डर को खत्म कर समाज के साथ चलने में मदद करता है। बुजुर्गों के पास शिक्षा एक ऐसा खजाना है, जो दुनिया के किसी भी किताब में नहीं मिलता। दुनिया की कई ऐसी घटनायें हैं जो हम किताबों में पढ़ते हैं। उसके वो प्रत्यक्षयदर्शी होते हैं, जिसे वो हमें समझाने में और मदद करते हैं जिससे हमें अपने जीवन की कई सारी समस्याओं को हल करने में सुविधा मिलती है।

एक मशहूर किस्सा है कि -‘ एक छोटे से गांव में एक लकड़े की शादी हो रही थी, लेकिन लड़की वालों ने यह शर्त रखी कि, अगर बारात में एक भी बूढ़ा लेकर आए तो शादी नहीं होगी I लोगों ने तय किया कि, इस बारात में एक भी बूढ़ा नहीं जाएगा I बारात तो चली गई, लेकिन एक बूढ़ा चुपके से गाड़ी की डिक्की में घुस गया I लोग लग्न-मंडप पर गए तो लड़की वालों ने फिर एक शर्त रखी कि, हमारे गांव की नदी में पानी की जगह दूध बहा दो, तो शादी होगी I लोग मुश्किल में आ गए और वो काम नहीं कर पाने पर बारात वापस लौटने लगी I तभी वो छुपा हुआ बूढ़ा बाहर निकला और पूछा कि, बारात क्यों वापस जा रही है ?… लोगों ने कहा कि वे लोग नदी में दूध बहाने का बोल रहे हैं , जो नामुमकिन है I बूढ़े ने कहा कि चिंता मत करो, जाकर उनको बोल दो कि पहले आप पानी की भरी हुई नदी खाली करवा दो, तो तुरंत ही हम दूध बहाने का इंतजाम करेंगे I बारात वापस गई और और बूढ़े आदमी ने जो कहा था वो बोल दिया I तब वहां के लोगो ने बोला कि, कहो न कहो, लेकिन आपकी बारात में एक बूढ़ा जरुर है, क्योंकि हमारे सवाल का जवाब एक बूढ़ा ही दे पाता I’ इस कहानी से यह साफ़ हो गया है कि अगर घर में या परिवार में एक बुजुर्ग व्यक्ति हो तो उसका यह फायदा होता है कि, जो काम कोई सोच भी नहीं सकता वो बुजुर्ग लोग कर दिखाते हैं I
वो हमें बताते है कि जीवन के कठिन से कठिन परिस्थितियों में खुद को कैसे संभालना है। बुजुर्ग अपने दवारा किये गए कार्यों जैसे खेती, सिलाई, लकड़ी काटना और उससे सामान बनाने का काम, सामान की खरीद -बिक्री का काम, डांस, गाना, बजाना, पेंटिंग, आदि जैसे बहुत सारे कार्य हैं, जो जीवका चलाने में सहायक साबित होंगे वो काम वह अपने पीढ़ियों को बता और सीखा सकते हैं । बुजुर्ग ही है जो बच्चों को बताते हैं कि , ईमानदारी से किया गया कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता,धन कमाना तो आसान है, लेकिन उसे किस तरीके से कमा रहे हैं ये तय करना भी जरुरी है।

आजकल के भागदौड़ और महंगाई भरी जिंदगी में अपने घर और बच्चों की जरूरतों को पूरा करने के लिए माता- पिता दोनों को कमाने के लिए घर से बाहर जाना पड़ता है। ऐसे में बच्चों का पालन-पोषण बहुत कठिन हो जाता है I ऐसे घरों के लिए दादा- दादी वरदान साबित होते हैं , जो न सिर्फ उनका पालन-पोषण करते हैं बल्कि बेटे -बहू के बच्चों को नेक इंसान बनाने में भी मदद करते हैं।आजकल माता- पिता पैसे के बल पर अपने बच्चों के देखभाल के लिए नौकर तो रख लेते हैं। लेकिन उसके बलबूते अपने बच्चों को नेक इंसान नहीं बना सकते।
ऐसा देखा गया है कि जिन बच्चों की परवरिश में उनके माता- पिता का योगदान न के बराबर होता है, वैसे बच्चे अधिकतर गलत संगति में ऐसे राह पर निकल पड़ते हैं जहां से उनको वापस लाना मुश्किल हो जाता है। इसलिए जो बच्चे दादा- दादी के प्यार में पलते हैं वो हमेशा अच्छा ही करते हैं I इसलिए बुजुर्ग कड़ी धुप में उस छतरी के सामान है, जो हमें शीतलता प्रदान करते हैं और इन्हें अगर सही से संभाल कर नहीं रखा गया, तो वो उड़कर टूट जाते हैं मतलब ज्यादा दिन जी नहीं पाते हैं । दादी- दादी उनके पोते पोतियां के लिए खुशियों का खजाना होता है, जिसे संभाल कर रखना उनके माता- पिता के हाथों में हैं ।

हर साल 21 अगस्त को बुजुर्गों के सम्मान में सीनियर सिटिज़न डे मनाया जाता है लेकिन यह तभी सफल होगा जब देश का हर नागरिक अपने बुजुगों का सम्मान करेगा और तभी हमारा जीवन भी सफल होगा I

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