योग शब्द सामने आते ही, हमें समाधी लगाए हुए बाबा नजर आने लगते है, जिसकी आज के ज़माने में सारे युवाओ को एलर्जी है I लेकिन ऐसा बिलकुल नहीं है योग का अर्थ संकृत के “यज” धातु से होता है, जोड़ना I योग हमें, उच्च-नीच, रंगभेद, जाती-पाति, भाषा, सम्प्रदाय से ऊपर उठाकर मानवता, समानता और सह-अस्तित्व में जीना शिखाता है I मन की संकुचित परिघि को तोड़कर, वह उसे असीम और सर्वभोम बनाता है I योग से हमारे मन पर अंकुश रहेता है I लुप्त इन्द्रियों को संयमित करने में यह मदद करता है I योग हमें, तन, मन, प्राण और आत्मा की कार्यप्रणाली की सम्पूर्ण जानकारी देकर स्व-शासित और स्व-नियंत्रित करता है I योग के मार्ग पर चलकर, समाज का हर व्यक्ति अपने जीवन को इश्वर की पूजा बना शकता है I योग का मतलब सिर्फ, आसन, प्राणायाम और सूर्य नमस्कार ही नहीं है, लेकिन भगवद गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है की, “योग: कर्मसु कौशलम”, मतलब की अपने कर्म में कुशलता भी योग है I योग का मतलब है, आत्मा को परमात्मा से जोड़ना, अर्थात जन्म और मृत्यु से मुक्ति प्राप्त करना I हमारे जीवन रूपी बूंद को परमात्मा रूपी सागर में समा देना I योग से मनुष्य, अपने तन, मन, और प्राण को मिलाकर, अपने जीवन में संतुलन और नियमन स्थापित कर शकता है I
हमारे वेद-उपनिषद ने कहा है की, “शरीर स्वस्थ तो मन स्वस्थ, और मन स्वस्थ तो बुध्धि स्वस्थ”I इसका अर्थ ही यही है की, अगर हमें हमारे मन और बुध्धि को श्रेष्ठ बनाना है, तो शरीर को स्वस्थ और सुद्रढ़ बनाना बेहद जरुरी है I भगवद गीता के प्रचारक एवं तत्वज्ञानी प.पू. पांडुरंग शास्त्री जी ने कहा है की, भगवद गीता के अनुसार, योग तिन प्रकार के होते है, ज्ञान योग, कर्म योग और भक्ति योग I मनुष्य इस तिन में से कोई एक या तो तीनो पथ पर चल सकता है I लेकिन गीता के अनुसार, कर्म में कुशलता को मनुष्य जीवन में प्राधान्य दिया गया है I लेकिन यह तीनो में सबसे पहेला है, ज्ञान योग I मनुष्य ध्यान और आसन का संतुलन करके यह योग को सिध्ध कर शकता है I महर्षि पतंजली, योग के धाता है I उनके अनुसार, “योग का मतलब है, चित्रवृतियो को नियंत्रित करना”I यहाँ पर वृति का मतलब विचार है I हमारे सारे शरीर को हमारा मन और बुध्धि ही नियंत्रित करता है I हम हमारे शरीर के लिए तो, कई प्रकार के उपचार करते रहेते है, डॉक्टर-वैध्य का भी इस्तमाल करते है, पर हमारे मन और बुध्धि की शुध्धि के लिए, कभी कोई कुछ काम नहीं करता I अगर हमारे पास गाड़ी है तो, हम उसकी हर महीने सर्विस करवाते है, घर की हर साल मरम्मत करवाते है, शरीर का दिन-प्रतिदिन ख्याल करते है, लेकिन यह सब को नियंत्रित करनेवाले मन और बुध्धि को सतेज करने के लिए बिलकुल ख्याल नहीं करते I
मन और बुध्धि को सतेज करने का मतलब है, उसका शुध्धिकरण I मनुष्य जीवन जीते हुए, हमारे सामने कई प्रकार की समस्या, कई प्रकार के द्वेष भाव, कई उलज़ने आती रहेती है I आज मनुष्य जरा सी तकलीफ आने पर मायुश हो जाता है, क्योकि उसका अपने मन और बुध्धि पर कोई कंट्रोल नहीं है, मन और बुध्धि की साधना कभी उसने नहीं की I योग हमें, हमारे मन और बुध्धि को सतेज करने में, हमारे प्राण और संयम को नियंत्रित करने में मदद करता है I योग में मुख्य रूप से दो क्रियाओ का उपयोग होता है, आसन और चित एकाग्रता I आसन सिर्फ एक शारीरिक प्रक्रिया नहीं है, लेकिन आसन के माध्यम से शरीर के, पैर से लेकर मस्तिस्क तक के सभी अंगो को सतेज और नियंत्रित किया जा सकता है I भगवान कोई हमारे धनजीभाई-मनजीभाई नहीं है, की हमें मंदिर में जाकर प्रणाम किया, फुल चढाया और प्रसन्न हो गए I परमात्मा एक अलौकिक शक्ति है, जिसके पास जाने के लिए, एक निश्चित मार्ग हमारे वेद-उपनिषद ने तय किया है, और वो मार्ग है “चित एकाग्रता” I हमारी पांच कर्मेन्द्रिया, पांच ज्ञानेन्द्रिया और ग्यारहवा मन, यह ग्यारह चीजो को नियंत्रित करके ही, परमात्मा की उपासना की जाती है, मन और बुध्धि को नियंत्रित किया जा सकता है I योग में इतनी ताकत है, की महर्षि पतंजलि अनुसार, अगर योग – ध्यान करते हुए मनुष्य यह बात हमेशा महेसुस करे की मेरे भीतर एक हाथी जितनी शक्ति है, तो सालो की उपासना के बाद, यह सिध्ध हो सकता है और मनुष्य सही में एक हाथी जितना ताकतवर हो सकता है I
गोस्वामी तुलसिदास जी ने कहा है की,
अलि, पतंग, मृग, मीन, गज जरत एक ही आंच I
तुलसी वे कैसे जिये, जिन्ही सतावे पांच II
इसका मतलब है की, हर प्राणी-पक्षी में एक प्रकार की वासना –विकार होता है, लेकिन मनुष्य एक ही ऐसा है की, जिसमे पांचो प्रकार की वासना-विकार होती है I यह वासना और विकार जब तक मनुष्य के भीतर से बहार नहीं जाता, नियंत्रित नहीं होता, तब तक मनुष्य अपने मन और बुध्धि को श्रेष्ठ नहीं बना सकता I जैसे, शरीर की भूख को मिटाने के लिए हमें खाना जरुरी है, वैसे ही मन और बुध्धि की भूख मिटाने के लिए, योग, आसन, सूर्यनमस्कार एवं चित एकाग्रता जरुरी है I
योग और आसन क्या है यह जानने के लिए तो कई सारी किताबे है, हम उनमे से यह ज्ञान प्राप्त कर सकते है I और हम यहाँ पर इसकी विस्तृत चर्चा इसलिए भी नहीं कर सकते, क्योकि आसन 60 प्रकार के होते है, प्राणायाम 8 प्रकार के होते है, सूर्यनमस्कार में 12 मुद्राए होती है, और हम यहाँ पर इतनी सारी बाते एक लेख में नहीं कर सकते I आसन, प्राणायाम, सूर्यनमस्कार और चित एकाग्रता (ध्यान) यह चारो बाते मनुष्य जीवन में सोने (GOLD) से भी ज्यादा कीमती है I यह नियमित करने से हमारे शरीर के साथ ही, हमारा मन और बुध्धि अलौकिक बनता है I और यह चार बाते, भारतीय संस्कृति की धरोहर है, जिसका आज हमें अभिमान शायद नहीं है, पर विश्व के कई देशो ने यह बातो को श्रेष्ठतम मानते हुए, अपनी पढाई में, अपनी मुख्य बातो में समावेश किया है I
आसन, सूर्यनमस्कार, प्राणायाम और चित एकाग्रता करने के लिए, ब्रह्म मुहर्त में उठना जरुरी है I प्रथम प्रहार में ही यह क्रिया करने से उसका लाभ मिलता है I हमें यह लगता है की, इतना जल्दी उठकर हमें अपने दिन को ख़राब क्यों करना है ? लेकिन इतना जल्दी उठकर, अगर हमने यह कर लिया तो, समजो की हमारा दिन प्रफुल्लित और मन-बुध्धि अव्वल रहेगा I इसका उदहारण हमारे माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी है, जो 12-15 घंटा काम करते है फिर भी थकते नहीं, इसका कारण है योग I यही कारण है की मोदी जी ने विश्व स्वास्थ्य संगठन को भी यह समजाया की, योग और ध्यान का कितना महत्त्व है, इतना ही नहीं, आज का जो दिन है, “विश्व योग दिन”, जो हर साल 21 जून को मनाया जाता है, वो इसके ही कारण है I कोई एक दिन मनाने से या एक दिन सब प्रवृति कर लेने से कुछ भी नहीं होता, यह क्रिया हमारे जीवन की निरंतर करनेवाली क्रिया है I हम सब टीवी सीरियल, फिल्मे देखते है, कई जगह पर पढ़ते है की, यह महर्षि को यह ज्ञान था, इतनी शक्ति थी, तब हमें यह एक कथा लगती है, पर यह बात बिलकुल सच है की, योग और साधना से शक्ति तो क्या, इश्वर भी मिल सकता है I
सही माने तो योग और साधना को हमारे स्कुल-कोलेजो के पाठ्यक्रम में लाना बेहद जरुरी है I अगर यह शिक्षा बच्चे को प्रारंभ से ही दी गई तो, उसे कभी बोलना नहीं पड़ेगा की, योग-साधना करना जरुरी है I तो बच्चे को हमें समजाना नहीं पड़ेगा की, सुबह में 4 से 5 बजे के बिच में उठना है I आजकल तो मोबाईल और इंटरनेट का जमाना है, बच्चे और युवाओ रात को 12-1 बजे तक मोबाईल में लगे रहेते है, फिर सुबह में जल्दी कैसे उठ सकते ? दिमाग में दुनिया भर का कचरा अगर डाला है तो उसे साफ भी करना पड़ेगा, और यह साफ करने का अंतरिम उपाय है, “योग और साधना” I
अगर हम को हमारा जीवन श्रेष्ठ बनाना है, हमारे मन और बुध्धि को सतेज और सर्वोतम बनाना है, तो आज के “विश्व योग दिन” के अवसर पर हमें तय करना होगा की, आज से और अभी से, मुजे अपने जीवन में आसन, प्राणायाम, सूर्यनमस्कार और चित एकाग्रता को महत्त्व देना है, वेद-उपनिषद की दिखाई गई यह श्रेठ और नैतिक रह पर चलना है, और “योग ही जीवन है”, यह वाक्य को सिध्ध करना है I ” योग हमें उन चीजो को ठीक करना शिखाता है, जिसे सहा नहीं जा सकता और उन चीजो को सहना शिखाता है, जिन्हें ठीक नहीं किया जा सकता” I
योग वह विज्ञान है जो हमारे शरीर, मन, आत्मा और पूरे ब्रम्हांड को एकाकार करने की क्षमता रखती है। इसके नियमित अभ्यास से व्यक्ति शांति और आनंद प्राप्त करता है जिससे उनका नॉलेज और कोंसंसनियस बढ़ता है। इससे व्यक्ति के व्यवहार और विचार में सकारात्मक परिवर्तन आते है। योग में आसन और प्राणायाम का काफी महत्व है। आसान एक तरफ शरीर को लचीला और स्वस्थ बनता है, तो प्राणायाम के माध्यम से हम श्वास को नियंत्रित करने का अभ्यास करते है।
आजकल योगासन की क्रिया के बीच प्राणायाम का चलन बढ़ता जा रहा है। इसमें आसन के अभ्यास के दौरान सांस को भी नियंत्रित करना शामिल है, जबकि प्राणायाम अपने आप में श्वास की प्रक्रिया का एक अलग व्यायाम है, जो आमतौर पर आसन करने के बाद किया जाता है। योग प्रक्रिया में हठ योग का काफी महत्व है। हठ योग में ह का अर्थ है – हकार अर्थात सूर्य नाडी (पिंगला) और ठ का अर्थ है – ठकार अर्थात चन्द्र नाडी (इडा)। योगासन व प्राणायाम के माध्यम से हम इन दोनों को संतुलित करते हैं।
महर्षि पतंजली ने योगदर्शन में योग का अर्थ जोड़ना बताया है जो आजकल काफी प्रसिद्ध हो चला है। महर्षि पतंजली के अनुसार योग का मतलब है जीवात्मा का परमात्मा से एकाकार हो जाना। मनुष्य द्वारा चित्त को एक ही जगह स्थापित करना योग है, ‘योगश्च चित्तवृत्ति निरोध‘। उन्होंने योग सूत्र में कहा है ‘स्थिरम सुखम आसनम‘ जिसका मतलब आसन के प्रयाश के पश्चात विश्राम जो हमारे जीवन के हर पहलू में संतुलन प्रदान करता है। यह मुख्य रूप से हमें समर्पण के साथ प्रयास करना सिखाता है और परिणाम से मुक्त होने का ज्ञान प्रदान करता है।
योगासन की प्रक्रिया सजगता के साथ साँसों से तालमेल बिठाकर करना चाहिए। कहने का अर्थ है की योग की क्रिया के दौरान जब हम हाथों को उठाते हैं, तो पहले अपने हाथों के प्रति सजग होते हैं फिर इसे धीरे-धीरे उठाते हैं और सासों के साथ तालमेल बिठाते हुए योगासन करते है। योगासन के दौरान शरीर को उसकी क्षमता से थोड़ा अधिक स्ट्रेच करने पर इसका सकारात्मक प्रभाव हमारे मन मस्तिष्क पर पड़ता है और इसका विकास होता है।
योगासन की प्रक्रिया विभिन्न मुद्राओं में बैठ कर करना ज्यादा लाभप्रद है जिनमें मुख्या रूप से पद्मासन प्रमुख है, जिसे कमल मुद्रा भी कहते है। इसमें हम जांघों के ऊपर पैरों को टिकाकर क्रॉस-लेग रखते है। इस मुद्रा में शारीरिक संतुलन काफी अच्छा होता है। बड़े बड़े ऋषि मुनि इसी मुद्रा में योगासन का अभ्यास करते थे। दूसरा है सिद्धासन जिसे संपूर्ण या पूर्ण मुद्रा भी कहा जाता है। इसमें अपने एक पैर की एडी को मूलाधार के नजदीक लाकर पैरों को क्रॉस-लेग रखते हुए दूसरा पैर ऊपर टिकाते है। और तीसरा है वज्रासन जिसे वज्र मुद्रा भी कहा जाता है। इसमें पैरों के तलवे और घुटने को जमीन पर रखकर नितंबों को एड़ी पर टिकाकर बैठेते हैं।
योग के माध्यम से विभिन्न बीमारियों का इलाज किया जाता है जिनमें शारीरिक और मानसिक व्याधियां भी शामिल हैं। इसके नियमित अभ्यास से हमारी प्रतिरक्षा प्रणाली मजबूत होती है और एक स्वस्थ जीवन शैली प्राप्त होती है तथा शरीर में नई-ऊर्जा का संचार होता है। योगासन और प्राणायाम शरीर को शक्तिशाली, लचीला, तनाव रहित रखता है जो हमारी दैनिक जीवन के लिए आवश्यक है।
सावधानियां
योगासन सामान्यतः खुली एवं ताजी हवा में करना उचित होता है। पर शहरी वातावरण में यह सभी जगह संभव नहीं है, तो कहीं भी खाली जगह पर किया जा सकता है। योगऋषि बाबा रामदेव कहते हैं योगासन और प्राणायाम के लिए ३ग६ फुट का स्थान पर्याप्त है। योगासन और प्राणायाम सीधे फर्श पर बैठकर नहीं करना चाहिए। इसके लिए जमीन पर कालीन या दरी अवश्य बिछा लें। योगासन करने के तुरंत बाद स्नान नहीं करना चाहिए क्योकि योगासन और प्राणायाम करने के बाद शरीर गर्म रहता है, ऐसे में स्नान करने से सर्दी-जुकाम, बदन दर्द जैसी समस्या पैदा होने की सम्भाना बढ़ जाती है। इसके लिए आधा से एक घंटे का अंतर अवश्य होना चाहिए। यदि संभव हो तो योगासन के बाद मालिस अवश्य करें इससे शरीर में रक्तसंचार बढ़ता है और योगासन तथा प्राणायाम का अधिक लाभ प्राप्त होता है। हो सके तो योगासन और प्राणायाम स्नान करे के बाद करे।