jagdeesh chandra basu

अमेरिकन पेटेंट प्राप्त करने वाले भारत के प्रथम वैज्ञानिक, जगदीश चन्द्र बसु (बोस), “नाईट”

डॉ जगदीश चन्द्र बसु भारत के एक प्रसिद्ध वैज्ञानिक थे | इन्हें भौतिकी, जीव विज्ञान, वनस्पति विज्ञान तथा पुरातत्व का गहरा ज्ञान था | वे पह्ले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडिओ और सूक्ष्म तरंगों की प्रकाशिकी पर कार्य किया | अमेरीकन पेटेंट प्राप्त करनेवाले वे भारत के पहले वैज्ञानिक थे | उन्होंने वनस्पति विज्ञान पर महत्वपूर्ण खोजें की  | उन्हें रेडिओ विज्ञान का पिता माना जाता है | उन्हें बंगाली विज्ञानकथा-साहित्य का पिता भी माना जाता है |   उन्होंने अपने काम के लिए कभी नोबेल  नहीं जीता | इनके स्थान पर 1909 में मारकोनी को नोबेल पुरस्कार दे दिया गया |

ब्रिटिश भारत के बंगाल प्रांत में जन्मे बसु ने सेंट जेवियर महाविद्यालय, कोलकाता से स्नातक की उपाधि प्राप्त की | फिर चिकित्सा शिक्षा के लिए लन्दन विश्वविद्यालय गए | परन्तु स्वास्थ्य-समस्या  के कारण  पढाई बीच में छोड़कर पुनः भारत वापस आ गए | भारत आकर प्रेसिडेंसी महाविद्यालय में भौतिकी के प्राध्यापक का पद सम्भाला | जातिगत भेद-भाव का सामना करते हुए भी बहुत से महत्वपूर्ण वैज्ञानिक प्रयोग किये | इन्होने बेतार के संकेत भेजने में असाधारण प्रगति की | रेडिओ संदेशों को पकड़ने के लिए अर्धचालकों का प्रयोग करना प्रारम्भ किया | लेकिन अपनी खोजों से व्यावसायिक  लाभ इन्होने नहीं उठाया |  अपनी खोजों को सार्वजनिक रूप से प्रकाशित कर दिया | ताकि दूसरे शोधकर्ता इनपर आगे काम कर सके | इसके बाद इन्होने वनस्पति जीव विद्या में अनेक खोजें की | इन्होने क्रेस्कोग्राफ का अविष्कार किया  और इसी के द्वारा विभिन्न उत्तेजकों के प्रति पौधों की प्रतिक्रिया का अध्ययन किया | इस प्रकार इन्होने सिद्ध कर दिखाया कि वनस्पतियों और पशुओं के ऊतकों में काफी समानता है | हाल के वर्षों में इनके योगदानों को फिर से मान्यता मिली |

बसु का जन्म 30 नवम्बर 1858 को बंगाल( अब बांग्लादेश) ढाका जिले के फरीदपुर के मेमनसिंह में हुआ था | उनके पिता भगवान चन्द्र बसु ब्रह्म समाज के नेता थे और फरीदपुर, वर्धमान और अन्य जगहों पर उप-मैजिस्ट्रेट या सहायक कमिश्नर थे | इनका परिवार रारीखाल गांव, विक्रमपुर से आया था जो आजकल बांग्लादेश के मुन्शीगंज  जिले में है | ग्यारह वर्ष की आयु तक इन्होने गांव के एक विद्यालय में शिक्षा ग्रहण की | बांग्ला विद्यालय में ही उनकी शिक्षा प्रारम्भ हुई | उनके पिता जी मानते थे कि  अंग्रेजी सीखने से पहले मातृभाषा अच्छी तरह आनी चाहिए | विक्रमपुर में 1915 में  एक सम्मलेन को सम्बोधन करते हुए बसु ने कहा था कि उस समय बच्चो को अंग्रेजी विद्यालयों में भेजना हैसियत की निशानी माना जाता था |

अपने जीवन में इन्होंने भिन्न भिन्न शोध कार्यों  को आगे बढ़ाया |  ब्रिटिश सैद्धांतिक भौतिक विज्ञानी जेम्स क्लर्क मैक्सवेल ने गणितीय रूप से विविध तरंग दैर्घ की विद्युत्-चुम्बकीय तरंगों के अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी, लेकिन इसके सत्यापन के पहले 1879 में उनका निधन हो गया | ब्रिटिश भौतिकविद ओलिवर लांज मैक्सवेल तरंगों के अस्तित्व का प्रदर्शन 1887-88 में तारों के साथ उन्हें प्रेषित करके किया | जर्मन भौतिक शास्त्री हेनरिक हर्टज ने 1888 में मुक्त अंतरिक्ष में विद्युत् चुम्बकीय तरंगों के अस्तित्व को प्रयोग करके दिखाया | इसके बाद लांज ने हर्टज का काम जारी रखा |   हर्टज की मृत्यु के बाद लांज के काम ने बोस सहित विभिन्न देशों के वैज्ञानिकों  का ध्यान आकर्षित किया |

बोस के माइक्रोवेव अनुसन्धान की  पहली उल्लेखनीय पहलू यह था कि उन्होंने तरंग दैर्घ्य को मिलीमीटर स्तर पर ला दिया | प्रकाश के गुणों के अध्ययन के लिए वे लम्बी तरंग दैर्घ्य के  प्रकाश तरंगों के नुक्सान को समझ गए |

1893 में निकोला टेस्ला ने पहले सार्वजनिक रेडिओ संचार का प्रदेशन किया |  एक साल बाद, कोलकाता में नवम्बर 1894 के एक सार्वजनिक प्रदर्शन के दौरान बोस ने एक मिलीमीटर रेंज माइक्रोवेव तरंग का उपयोग बारूद को दूरी पर प्रज्ज्वलित करने और घंटी बजाने में किया |

बोस ने अपने प्रयोग उस समय किये थे जब रेडिओ एक संपर्क माध्यम के तौर पर विकसित हो रहा था | जगदीश चन्द्र बोस पहले वैज्ञानिक थे जिन्होंने रेडिओ तरंग डिटेक्ट करने के लिए सेमीकंडक्टर जंक्शन का इस्तेमाल किया था और इस पद्धति  से कई माइक्रोवेव कम्पोनेंट्स की खोज की थी |  नोबेल पुरस्कार विजेता सर नेविल्ले मोट्ट ने कहा था कि आचार्य जगदीश चन्द्र बोस अपने समय 60 साल आगे थे | बायोफिजिक्स  के क्षेत्र में उन्होंने दिखाया कि पौधों में उत्तेजना का संचार वैद्युतिक माध्यम से होताहै न कि केमिकल माध्यम से |

1917 में बोस को “नाइट” की उपाधि दी गयी |   बोस ने अपना पूरा शोध कार्य विना किसी अच्छे उपकरण और प्रयोगशाला से किया था | इसलिए बोस एक अच्छी प्रयोगशाला बनाने की शोच रहे थे | बोस ‘इंस्टिट्यूट’ इसी सोच का परिणाम है | शोधकार्य के लिए यह एक राष्ट्र का प्रसिद्ध केंद्र है |

About Narvil News