कहीं दूर जब दिन ढल जाए

बॉलीवुड में एक से बढ़कर एक गीत देने वाले मशहूर गीतकार योगेश गौड़ आज बेशक इस दुनिया में नहीं है, लेकिन उनके लिखे गीत आज भी संगीत प्रेमियों के बीच अमर है। 60 और 70 के दशक में कई मशहूर गीत लिखने वाले योगेश गौड़ को सभी प्यार से योगेश कह कर बुलाते थे।उस जमाने में उन्होंने अपने लिखे गीतों के माध्यम से बॉलीवुड फिल्मों में चार चांद लगा दिया था। उन्होंने फिल्म जगत में कई यादगार और सदाबहार गीत लिखे हैं, जो आज भी दर्शकों के बीच अक्सर सुने जाते हैं। 19 मार्च 1943 को लखनऊ में जन्मे योगेश ने कभी नहीं सोचा था कि वह गीतकार बनेगे । उनकी जिंदगी भी बड़े आराम से गुजर रही थी, लेकिन योगेश जब किशोर अवस्था में थे, तभी उनके पिता का देहांत हो गया। घर की माली हालत ठीक नहीं थी इस कारण उनके लिए नौकरी करना जरूरी हो गया। योगेश के बड़े भाई विजय गौड़, जो उनकी बुआ के पुत्र थे, मुंबई की फ़िल्म इंडस्ट्री में बतौर लेखक काम कर रहे थे। योगेश उनसे मदद की उम्मीद लिए उनके पास मुंबई पहुंचे और उनसे फ़िल्म जगत में किसी भी तरह के काम को करने की इच्छा जताई, जिससे उनके परिवार की आर्थिक स्थिति ठीक हो। लेकिन विजय गौड़ ने योगेश की कोई मदद नहीं की और न कोई दिलचस्पी दिखाई । बड़े भाई के इस तरह व्यवहार से योगेश बहुत निराश हो गये और वापस लखनऊ जाने की सोचने लगे। लेकिन इस मुश्किल दौर में योगेश का सहारा और हिम्मत बने उनके करीबी दोस्त सत्तू ।दोनों की मित्रता इतनी गहरी कि जब योगेश ने पढ़ाई छोड़ी और मुंबई काम ढूंढने तो सत्तू भी उनकी मदद के लिए उनके संग हो लिए। योगेश का तिरस्कार सत्तू से देखा नहीं गया और उन्होंने योगेश से कहा कि अब चाहे जो हो, तुझे फ़िल्म जगत में ही काम करना है। पांच सौ रुपए लेकर लखनऊ से मुंबई आए योगेश ने सत्य प्रकाश सत्तू के साथ पारसी पंचायत रोड, अंधेरी पूर्व की एक चाल में ठिकाना बनाया। कुछ दिनों बाद बाद सत्यप्रकाश सत्तू को सीताराम मिल में नौकरी मिल गई. सत्‍तू ने योगेश को कभी नौकरी नहीं करने दी ।सत्तू काम करके पैसे लाते और योगेश अकेले दिन भर कमरे में रहते। अकेलेपन में पैदा हुए भाव से कविता, गीत का निर्माण होता। धेरी पूर्व की जिस चाल में दोनों दोस्त रहते थे उसमें बिजली और पानी का कनेक्शन तक नहीं था। अंधेरी स्टेशन से पैदल चलकर चाल तक पहुंचने में 45 मिनट लगते थ…चाल के इसे अंधेरे में उनके मन में गीत के अंकुर फूटे। इसके बाद योगेश ने अपने अंदर की भावनाओं को गीतों में गढ़ना शुरू कर दिया।
गीतकार बनने के लिए योगेश निर्माताओं के दरवाज़े पर भटक रहे थे ।गीतकार के रूप में साल 1962 में आई फिल्म ‘सखी रोबिन’ से बॉलीवुड में कदम रखा।इस फिल्म में उन्होंने छह गीत लिखे थे।फिर एक दिन अचानक कुछ ऐसे संयोग बने कि योगेश संगीतकार सलिल चौधरी से मिले और फिर निर्देशक हृषिकेश मुखर्जी तक पहुंचे। और उनकी पहली फ़िल्म आईं ” आनन्द “, जिसमें उन्होंने गीतकार गुलज़ार के साथ मिलकर गीत लिखे। उनका पहला गीत बना ” कहीं दूर जब दिन ढल जाए “। उसके बाद तो जो सिलसिला शुरू हुआ कि योगेश शुद्ध प्रेम को शब्द देने वाले जादूगर बन गए। इसके बाद योगेश ने फिल्म रजनीगंधा (1974),मंजिलें और भी हैं (1974),मिली (1975 ),प्रियतमा (1977 ), बेवफा सनम (1995 ) आदि आदि फिल्मों के लिए शानदार और लाजवाब गीत लिखे।उनके लिखे मशहूर गीतों में ‘जिंदगी कैसी है पहेली (आनंद)’, ना जाने क्यूँ होता है ये (रजनीगंधा),रिमझिम गिरे सावन(मंजिल), ‘ना बोले तुम ना मैंने कुछ कहा(बातों बातों में ), ओ दिल तोड़ के हंसती हो मेरा(बेवफा सनम), अच्छा सिला दिया तूने मेरे प्यार का (बेवफा सनम) आदि शामिल हैं। योगेश के लिए कहना कत्तई गलत नहीं होगा कि उन्होंने उस दौर में शुद्ध प्रेम को बयां करने वाले हिन्दी गीत लिखे। हिंदी फिल्मों में एक से बढ़कर एक अमर गीत लिखने वाले योगेश प्रोडक्शन कंपनियों में कभी भी जल्दी काम मांगने नहीं जाते थे।कहा जाता है कि इसका कारण उनके अंदर का डर था। दरअसल योगेश ने व्यवस्थित तरीक़े से गीतकार की ट्रेनिंग नहीं थी।इसलिए उन्हें डर था कि हिंदी सिनेमा में इतने बड़े -बड़े गीतकार होते हुए वो शायद गीत नहीं लिख पाएंगे। लेकिन हुआ इसका ठीक विपरीत। योगेश ने हिंदी सिनेमा के लिए ऐसे -ऐसे ख़ूबसूरत गीत लिखे , जिसे आज भी दर्शक शौक से सुनना और सुनाना पसंद करते है। योगेश ने फिल्म में गीतों के अलावा कई टेलीविजन धारावाहिकों की कहानियां भी लिखी है। सरल और सहज स्वभाव के योगेश हर युवा गीतकार लिए सरलता, सहजता, सौम्यता की मिसाल हैं। योगेश गौड़ आज हमारे बीच नहीं है। 29 मई,2020 को 77 वर्ष की उम्र में योगेश गौड़ का निधन हो गया। उन्होंने अपने मुंबई के गोरेगांव में स्थित अपने आवास पर आखिरी सांस ली। योगेश बेशक दुनिया को अलविदा कह गए हैं ,लेकिन वह अपने गीतों के माध्यम से हमेशा अपने चाहने वालों के दिलों में जीवित रहेगें।

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